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स श्रुतकीर्ति और उनकी रचना की ।
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माका काकी | Irism भहारक श्रुतकीति नदीसंघ बजारकारगण और सरस्वती
TRIP FIRMIRE
इतिहापसे प्रकट है कि.मक मालवाके गच्छके विद्वान थे । यह देवन्धकीतिक प्रशिष्य और सूबेदार दिलावरखों को इसके विप त्रिभुवनकीर्तिके शिष्यों थे। अन्यकर्ताने भ० देवेन्द्रकीर्तिको मार डाला था, और माल गो, स्वतन्त्र पोषित मृदुभाषी और अपने गुरु त्रिभुवनकोतिर्की अमृतवाणरूप स्वयं राजा बन बैठा था । उसकी जपति शिको सद्गुणोंक चारिक बतलाया है। श्रुतकीतिन अपनी 'लधुता इसने मांडवर्गदको खुब मजबूत बनाने की अपनी व्यास करते हुए अपनी अल्पबुद्धि' बतलाया है। इनकी राजधानी बनाई थी। उसीके, वंशमें शाद इयासहीन हुआ. पाया रचनाओं के अवलोकन करनेसे ज्ञात होता है । जिसने मांडवगदसे मालवाका राज्य EMATRIME श्राप अपभ्रशभाषाकि विद्वान थे ।" आपकी उपलब्ध सभी अर्थात् सन् १६९ से RARE क्रिया पवनाएँ अपनश भाषाके पदंडिया छन्दमें ही रची गई है। पुत्रका नाम नसीरशाद था। मदारक वनकोतिन जराटनगर इस समय तक आपी चार कृतियाँ उपलब्ध हो चुकी है। के नेमिनाथ चैत्यालयमें, जहाँ बह रह रहे थे सपना हरि: जिनमें धर्मपरीक्षा आदि और अम्तके कई पत्र खण्डित • पुराण, विक्रम संवत् १५५३. मात्र मा प्रचमी सोमवारक
-फापत्र मात्र मलब्धा । और परमेष्ठिप्रकारासारके दिन हस्तनक्षत्रके समय पूर्ण किया था सा TiF श्री सादिक होतीन पनहीं हैं भाकी चारों कृतियाक 'संवत विक्कमसेण-जरेसर साहिण्यासावभसेसई। नाम...इस प्रकार है:-... Fr. .. णयरजेरहटजिणहरुचंगन, योमिमाजिबिबुअभगउ।
...हरिवंशपुराण २..अपूरी फराकारमार गंथसउण्णु तत्त्थइहजायन, चविसंघसंमणिअणुरायउ और ४ योगसार, ये.चारों ही कृतियों उन्होंने मांडवगड़ माकिण्डपंचमिससिवारई, हुत्थणखतसमत्तुगुणालई। (मांड)के राजा गयासुद्दीन और उसके पुत्र नसीरुपा के राज्य में
" गंथु सउण्गुंजाउसुपविउ, कम्मक्खुउणिमित्त जंउत्तउ ।' कालमें सम्वत् १५५२-५३ में बना कर समान की थीं। "
दूसरी रचना 'धर्मपरीक्षा है । इसकी एकमात्र अपूर्ण , . आपकी सबसे पहली कृति 'हरिवंशपुराण' है. जिसमें ७ संधियों द्वारा जैनियों के २२वें तीर्थकर भ. नेमिनाथके जिसका परिचय उन्होंने अनेकान्त वर्ष
प्रति डा. हीरालाल जो एम० ए० नागपूरके पास है।
किरण २ में जीवनपरिचयको अंकित किया गया है। प्रसंगवश उसमें
दिया है। जिससे स्पष्ट हैं कि उन धर्मपरीक्षा ११ कडवक श्रीकृष्ण आदि यदुवंशियोंका संक्षिप्त चरित्र भी दिया ।
है। हरिषेणकी धर्मपरीक्षा सम्बन्धमें डा. ए. एन. उपाध्ये हुआ है। इस प्रन्यकी, दो प्रतियों अब तक उपलब्ध ,
एम. ए. कोल्हापुरने (Harishenas Dharma paहुई हैं । एक प्रति आरा जैन सिद्धान्त भवन में है और दूसरी
riksha.in.ApabhraPRA),जिसका परिचय उक आमेरके महेन्द्रकीतिक-भण्डारमें मौजूद है, जो संवन्, १६.
शीर्षक लेम्बमें दिया है जो सका १६१२.में भाण्डारकर ०७ की लिखी हुई है। इसकी लिषिप्रशस्ति भी अपभ्रंश भाषामें लिखी गई है। पाराकी वह प्रति स० ११५३ की
रिसर्चइन्स्टीट्यूट पूजाके सिलबर जुबली के एनाल्समें लिखी हुई है, जा मंडपाचलदुर्गके सुलतान ग्यासुहानक वर्षको प्रथम किरणहमें मकाशित हो चुका है। उसमें इस
प्रकाशित हुआ है। राज्यकालमें दमोवादशके जोरहट नगरके महाखान और भोजवानके ममय लिवो गई हैं। ये म 'धर्मपराक्षा' का कोई उल्लेख नहीं है। क्योंकि वह उप
PREFERE. जैरहटनगरके सूबेदार जान पड़ते हैं। वर्तमान में जेरहटनामका
क प्रकाश में नहीं पाई.सी . ntri एक मगर दमोहके अन्तर्गत है, यह माह पहले जिला रहा क्योंकि इसके रचे जानेका अबहेला कविले. प्रासने दूसरे ग्रन्थ
इस ग्रन्थको भी कविने संवत २५५२ में बनाया है। चुका है। सम्भव है यह देमाह उस समय मालव-राज्यमें शामिल हो। और यह भी हो सकता है कि मांडवगढ़के के परमेष्ठिपकाशसार में किया है.r re स्मीम ही कोई जेरहट नाममा सानिमामी भRIE , तीसरी रचना परमेष्ठिपकाशसार है। इस ग्रन्थकी
र भी अभी तक एक ही प्रति आमेर-भंडारमें उपलब्ध हुई वना कम हो जान पड़ती है। क्योंकि उस प्रशस्तिमें। 'दमोवादेश' स्पष्ट रूपसे उल्लिखित है।
*Cambridge shorter History of India.P. 309
जसका-अनुवाद अनेकान्तके ८वें
नाजवानकममय लिम्वा गडहै। ये महाखान भीजम्यान