________________
किरण] अस्पृश्यता विषेयक और जैन-समाज
[२१३ निर्दोष और निरपराध माना जाता है जब तक इसके विपरीत है और यह अनुच्छेद केवल सार्वजनिक मन्दिरोंके लिये कानून
और उल्टा प्रमाणित न हो जाय । यह विधेयक इस सिद्धान्त बनानेका अधिकार देता है। 'सार्बजनिक पूजाका स्थान' के विरुद्ध है और यह अदालतको माननेके लिवे अवसर देता इसकी परिभाषा हम विधेयकमें जिस रूपमें की गई है, उसमें है कि अभियुक्र उस समय तक अपराधो है, जब तक कि वे सब मन्दिर आ गये हैं, जो कि किमो एक धर्मके अत्यन्त वह अपनी निर्दोषता प्रमाणित नहीं कर देता।
छोटे समुदायके हैं, या जिनका व्यवहार एक अत्यन्त छोटा दण्डात्मक कानून एक कठोर उपाय है। इसको बड़ो वर्ग करता है, परन्तु किसी भी दृष्टिसे इस प्रकारके मन्दिर सावधानीके साथ और निश्चित रूपमें बनाना चाहिये । यह सार्वजनिक मन्दिर नहीं कह जा सकते । जैन मन्दिर कुछ इतना अधिक कठोर या प्रतिरोधक न होना चापिए कि इस- श्वेताम्बरोंक हैं और कुछ दिगम्बर जैनोंके हैं, पर दिगम्बर का उन लोगोंके विरुद्ध दुरपयोग किया जा सके, जो इसके जैनोंके मन्दिगे श्वेताम्बर भोर श्वेताम्बर जैनियोंके मन्दिरमें कारण भयत्रस्त हो गये हैं। दुर्भाग्यसे इस विधेयकमें ये सब दिगम्बर जैन नहीं जा सकते । जिन जन मन्दिरोंके सम्बन्धमें खरावियाँ हैं । हरिजन जैन धर्म को मानने वाले नहीं हैं, इस प्रवेग करने और उनका व्यवहार करनेके श्वेताम्बरों और कारण यह बहुन सम्भव है कि जैन मन्दिरों और जैन संस्था- दिगम्बर जैनियों में विवाद था, उनका फैसला अदालत द्वारा ओंमें वे इस दंगस प्रवेश करें, जिससे जैनियोंके हृदयको किया गया और प्रत्येक सम्प्रदाय द्वारा उनकी सतर्कनाले चोट पहुँचे । दुर्भाग्यसे विधेयक अन्दर ऐसी स्थितिसं बचाव रक्षा की जाती है। क्या इस प्रकारके मन्दिर सार्वजनिक मंदिकरनेके लिये कोई व्यवस्था नहीं की गई है। जैनियोंक रोमें शुमार किये जा सकते है ? कानू की परिभाषाका शब्ददुश्मन और दोस्त दोनों है, यह विधेयक बदला लेनेके लिये कोष इस प्रकार की इजाजत नहीं देता। उनक हाथमें एक अच्छा हथियार देता है।
इस विधेयके दण्डात्मक उपबन्धोंमें कहा गया है कि जैन अत्यन्त अल्पसंख्यामें हैं । बहु व्यक समाज द्वारा
किमी मन्दिर या धार्मिक मस्थामें हरिजनके प्रवेश करने या जो भिन्न-धर्मावलम्बी है, उसको पूर्ण संरक्षण मिलना चाहिए,
उसका व्यवहार करने में यदि कोई बाधा देगा तो उसको किन्तु न मन्दिरों और अन्य जैन धार्मिक संस्थाओं में हरि
दण्ड मिलेगा। पर हरिजन कौन हैं, यह जाननेका कोई जनोंको उन संस्थाओं में प्रचलित प्रथाओं और विधियों एवं
उपाय नहीं है । यह कैम मालूम होगा. कि प्रवेशकी इच्छा स्यवहागंको माननकी पाबन्दी लगाय-वगैरह प्रवेश करनेका
रखने वाला हरिजन है? दण्डात्मक उपबन्ध कभी भी अनुमति देनेका नतीजा यह होगा कि हर किस्मक अप्रतिष्ठा
अनिश्चित न होने चाहिये। जनक और अनुचित कामोंकी खुली छुट मिल जायगी जो
जैनियोंकी ऐसी धार्मिक संस्थायें हैं जिनमें उच्चतर कि संस्थायीक पुजारियों, उपदशकों, ध्यानस्थों, प्रबन्धकों
धार्मिक व्यवस्था विभिन्न दर्जाक लोग जनधर्मका पालन अन्याको विक्षुब्ध, उद्विग्न और परेशान करनेका कारण
ठीक शास्त्रोक्र विधियांक अनुसार करते हैं। विधेयक हरिजनों होगा।
समेत सब गर जौनयाँको सस्थाओंमें प्रवेश करने और इनका इस विधेयकको भारताय सविनका अविगेधी बनाने
व्यवहार करनेका अधिकार देता है. यद्याप व जैनधर्मका विफल प्रयत्नमें पूजा स्थानका परिभाषा बड़ी कल्पना और
अनुसरण करनेसे इन्कार करते है और जो कोई उनको रोकता चतुरईस की गई है। इस परिभाषाकं सरसरी नजरम देख-
है, उनको भारी दण्ड देनको व्यवस्था करता है । यह हुत
है, उन नमे भी यह मालूम हो जायेगा कि यह न केवल सावजनिक ६
ही अनर्थकारी उपबन्ध है । इसका प्रभाव यह होगा कि मन्दिरों पर ही, वरन निजी पार वयनिक मन्दिरों पर भी शान्तिपूर्वक अपने कनव्य पालन करने वाले अल्पसंख्यक लागू होता है। काई भा साम्प्रदायिक मन्दिर, जिसमें उम समाजको निरुद्द श्यरूपस व्यथम परशान होना पड़ेगा। साम्प्रदायक अनुयायियोंके सिवाय और कोई दूसरा व्यकि मंयुक्त प्रवर समितिन जिसको यह विधेयक भली प्रकार नहीं जा सकता, कैपे सार्वजनिक मन्दिर कहा जा सकता है? जांच करने और उचित संशोधन करनेक लिये दिया गया था, भारतीय मम्बिधानका अनुच्छेद २६ एक ऐमा उपबन्ध है, इस विधेयकके शरारत-भरे प्रभावोंपर ध्यान नहीं दिया। जो विशेष रूपस इस विषयके साथ सम्बन्धित है, और हम इसके दुरुपयोगके विरुद्ध मावश्यक बचावकी व्यवस्था करनेक विषयों में विधान के अन्य सब सामान्य अनुच्छेदोंसे सर्वोपरि बजाय उन्होंने इसको और भी अधिक उम्र बना दिया है ।