SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 155
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अनेकान्त [वर्ष १३ डावर जो कि प्रत्येक दर्शकको अपनेको छूनेसे रोकता है, किया जायगा और जेल भेजा जायगा? यदि जैन दण्डित धर्माचार्य अपनी महिला शिष्याओंका जब वे मासिकधर्म की अवस्थामें हों मन्दिर में जानेसे रोकेगा तो यह प्रस्तावित कानून उसको दह देगा? हरिजन महिलायें भी जैन मन्दिरमें जाने देनेसे न रोकी जा सकेंगी, जबकि वे मासिकधर्मकी अपस्थायें होंगी। परिवार में जब कोई एक व्यक्ति मर जाता है तब उस परिवारके कुछ लोग अस्पृश्यताका पालन करते हैं जिसको कि सूतक कहते हैं। सूतकका पालन एक निश्चित अवधि तक किया जाता है। ये लोग और जो लोग इनको ऐसा करने की सखाह देंगे वे इस विधेयक अधीन इसके पात्र होंगे । विधेयक नं० १४ के विरुद्ध जैनांकी शिकायत न्याय संगत और उचित है । प्रस्तावित कानूनसे उनको बाहर रखा जाप इसके वे सब तरहले पात्र हैं। २१४ ] यदि यह विधेयक इमी रूपमें जैसा कि इस समय है, कानून बन गया तो यह विभिन्न समाजों और समुदायकि मध्य मेत्री और सौहार्द बहाने बाले लड़ाई मायोका कारण होगा और कमजोर धार्मिक अल्पसंख्यकोंके विरुद्ध अन्दरूनी गड़ों और मुकद्दमे करनेके लिये आम जनता उतेजित और भड़कानेका कारण होगा। इस विधेयक ने 'अस्पृश्यता' क्या है, इसकी परिभाषा वहीं की और यह सर्वथा मौन है, जबकि अस्पृश्यताका प्रचार करना या व्यवहार दण्डनीय ठहराया गया है जबकि दीवानी अदालतोंचो किसी ऐसी रीति-रिवाज या प्रथा या विधिको स्वीकार करनेसे रोका गया है, जो कि अस्पृश्यताको स्वीकार करती है, तब इस विधेयक बनाने वालोंके लिये यह आवश्यक हो जाता है कि वे इसकी परिभाषा करते, विशेष स्थितियों में स्पृश्य भी अस्पृश्य हो जाते हैं । क्या मौजमाबादके जैन समाजको ध्यान देने योग्य रहा मौजमाबाद जयपुर से करीब ४२ मील दूर है। यह जयपुर राज्यका एक पुराना कसबा है जो आज भी तहसीलका एक मुकाम है। यह कपबा किसी समय खूब सम्पन है | पर आज यहां अनेक विशाल मकान खण्डहरके रूपमें विद्यमान है । कहा जाता है कि वहीं दो सौ घर जैनियोंके थे। परन्तु आज ४०-४५ पर बतलाए जाते हैं। यहाँ का एक विशाल जैन मन्दिर सम्वत १६६४ से पहले बना है जो बड़ा ही मजबूत है, उसमें नीचे दो बिलाल त घर बने बड़ा हुए हैं जिनमें बडी बडी विशाल मूर्तियाँ विराजमान है। वे मूर्तियाँ छोटे जी कर यहां विराजमान की गई, जीनेसे तरह यह एक आश्चर्यका विषय है। ये अंधेर स्थानमें विराजमान है, जिनका दर्शन पूजन भी ठोक तरहसे नहीं होता है । इस विशाल मन्दिर में संवत् १६६४ की प्रतिष्ठित २३२ सुन्दर मूर्तियाँ विराजमान हैं, परन्तु उनका प्रक्षालन ठीक ढंगले न होनेके कारण पकेद्र पाषाणमें जगह जगह दाग लग -हैं वे मलिन हो गई हैं, मालूम होता है कि उनका माल करते समय सावधानी न वर्तनेके कारण उनपर पानीका अंश रह जाता है बादमें उनमें धूलिक का चिपक गए है जिससे उनका अंग मलिन दिखाई देता है। इतनी अधिक सघन रूपमें रखी हुई मुनियोंका प्राली ढंगले नहीं हो गए पाता । और लोगोंमें पूजन प्रचालकी कोई रुचि भी नहीं ज्ञान होती । इन इसी तरह दूसरे प्राचीन मन्दिरमें भी मूर्तियों विरा मान हैं। इसमें शास्त्रभवहारकी जो दुईशा हुई है उसका बयान करते हुए लेखनी धरांती है वहां संस्कृत- आकृतभाषाके अनेक प्रत्यये पुष्पदमाके यशोधर चरित्रकी सचित्र प्रतियों थी, किन्तु वे आज चारों ही स्खण्डित हैं, और उनके चित्रादि भी मिट गये हैं। उनमें एक भी प्रति पूरी नहीं हो सकती। इसी तरह अन्य दूसरे माल है। कहा । ग्रन्थोंका तो उत्तर मिला हम संस्कृतप्राकृतको नहीं जानते इससे ग्रन्थोंका यह हाल हुआ है। परन्तु छलक सिद्धिसागर जीने व भक्तिश रातदिन परिश्रम करके उन अपूर्ण ए श्रुत खंडित ग्रन्थों की सूची बनाई और उन्हें बेठनों में बांधा, उन पर प्रधोंका नामादि भी अंकित करदिया है। इतना कर देने से उक्त भगडारके कुछ प्रथ जानकारीमें अवश्य श्रागए हैं। परन्तु वे अधूरे ग्रन्थ ऐसी स्थिति में सुरक्षित भी नहीं रह सकते। हाँ, हिन्दी-भाषा सहित ग्रन्थ प्रायः सुरक्षितरूपमें विद्यमान है। यहाँ लोगों में कोई धार्मिक प्रेम नहीं है। क्योंकि वहाँ तुल्लक सिद्धिसागरजी मौजूद हैं, जो उत्कृष्ठश्रावक होनेके साथ साथ निस्पृह और उदासीन वृत्तिको एव
SR No.538013
Book TitleAnekant 1955 Book 13 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1955
Total Pages386
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy