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यह पुस्तक परमात्मा कर्म अष्ट परि त्याग । भेंट भये अमरेश जू सुभग चाहियत भाग १७२७ यह घटना संभवतः संवत् १८३२ की है उस समय दीवानजीकी उम्र २२ वर्षके लगभग थी। दीवानजीके पुत्र ज्ञानचन्दजी थे । और ज्ञानचन्द्रजीके पुत्र उदयवालजी
अनेकान्त
[ वर्ष २३
हुए। जिन्होंने जयपुरमें अजमेरी दरवाजेके बाहर एक बहुत सुन्दर नशियांजीका निर्माण कराया था । उनके पुत्र फतेलालजीका करीब २५ वर्ष हुए तब स्वर्गवास हो गया था । सम्भवतः इस समय दीवानजीके परिवार में फतेहजानजीके पुत्र ईश्वरलालजी विद्यमान हैं।
महापुराण कलिकाकी अन्तिम प्रशस्ति
(गत किरया ७ से धागे)
संवत् चिति आदि जो जन
मोलासह पंच
छठमी सुदि माह अरु गुरु लाह रेवती नखत पवणभले ॥ दुबई कवि महापुरिम गुरु कलिका सुर संबोध-सार
भवि पवोहणाइ बिइ-बुद्धि पयदहु भुवणि कइवणे ॥ साहि अकबर दिल्ली मंडले, हुमाऊं नंदन चकत्ता खंडले । पुब्वा पच्छिम कूट दुहाइ, उत्तर दक्षिण सब अपणाइ । पर खंडहु रसाल पहुँचावर, मालुसम पइ सेवा श्रावइ । महाराज सिर मान मह पति, भगवंत सुखवंत अनि अति । गढ र सहित रोहितगढ़, समदमीम सुप्रतापकरी दिढ । लुवाणि पुरो सुभग रुचि सुन्दरु, सोहा णयरि समान पुरंदरु । महर-टु-बहु वाडी वग्गह, कूवा वाई वर्हति तडागइ । क्रूरमयं उप सुखराज सिरिज
सेव मंडलीइ महि मंडलि, जसु जंपइ जाचक खिति खंडलि । मृलसंध महिमा मंडल, सरसइगच्छ मुखिति खंडलि । नंदि मनाइ गइ जिमि चंदे, कुंदकुंद मुनि राजपवंदे । पद्मनंदि सहुपट्ट भट्टारक हुन सुभचंद सोहंतसारक राहु जिपट्टि जिनचन्द्र महारक, पहाचंदु परिवादि विदारक तापट्टि भूमं लकीरति, जाविति सुचाइ चंदुकीरति । तासु मनाई सुदिक्खा सासनि, मंत्र महोच्छवविधि जिन शासन खंडेलवालखिति मंडलिक, देव-सत्थ-गुरुमति भावक । लोहादिया सुवंस शिरोमणि, साह जगत जिनदेव सुलक्ख बसा - तद्दुवंसिजु सारो, गुण-गणयारो साधूमाह विख्यातजणे । मंद दो भाग सुभग साल्हा पाल्दा सुभगमये । पाल्दा पुत्र तीन सुविलेमो सुबुद्धि मास । बोहिथ केसराज सुन्दर छवि सज्जनमन उल्हासये ॥ दूहडी खेमा पुरा पंच-पंच जग जोधा रतनो पदम जानिये। राजौ खिति खैपाल टील "बोलहु प्रमाणिये । बोहिथ तथा पुत दो मंडल नेमित नेगौ विदू खले 1.
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बू दू बीयो मुहु महिमडलि हुव सो सुभग लखे | बसाल्दा साहु सुचरि सोहोनिधि, नवजू नाम संब पुता पंच कुक्खि उवण्या कुंती जेम खंडले ॥४॥ पदम पुत्र परसिद्ध लोह, बिज्झइ नामाजगि प्रगटु भोइ । जगि जालपुजाकहि गतिमाथि चाचौचितिचाय व सुवाणि । खेत खिति मंद गतिमाथि सीतड पंचम पुई पमाणि । पठमोजु साह बीमासु सुगेहि, बाली मला बहुगु समेहि। छह पुत्र उवा कुक्खितासु, दोदा मरु पढमजु चिति उल्हासु । फलहू जीणो समरत्थ जुत्ति निरपुत्र सुभग सँग्या सुचिन्ति । रणमल घरणि पोमात्रसिद्ध संघनायक पंचजु पुत्तलद्ध । भीवी गोइद साया सुरण, ईसर चांपो सुन्दर सुमन । सुइण्णा, समरत्थ पुत्त उपपन्न तीनि सरवरण फाल्हौ नल्हे सुचीनि । बाला घरितोय विख्यातसार, राइमल ऊंधाले गणति चार । केसा घरि पुस उवश्च दोय, ऊदौ धानो जगि जुगत जोय । सल्हा घर मारै एक पुत, उपपक्ष सुतासुत प्रति बहुत । जालपुके चार नाम सहसे नाथु बीले भवान । चाचौ घरि राणी पुत्र तीन, मूलो कान्हो बोहिथ सुमीत । सीहा धरि पुस उवन्न दोइ, खेतउ गूजर जगि जुगति जोइ ।
साहु खेत मुनि राख देखि अधिक मानि। राहु परि सुभ सीहा सुसीम, परिता सुबर पालय सुनीम । पोखण सुहि सज्जा जगागादानि; पुरजन परिवारहु अधिकमानि । पत्ता-घरि नारि अनूप सलहि भूप शील दानविधि लखरावर तपस्याग अचार वडविधि सार साजु नाम जपोणुभर दुवई - साकुक्खि पुत्र तउवना सुन्दर प्रवह सुभतयो ।
भाभू साहु बीयो जोखो जगि ठाकुर त्रिति सुभमणो तहु कुविख उपभा तीनि पुत्त, तिन्नेव सकल सखया संजुरा । पदम पुरा मा विसाज, सो राजमानि बहु भागिभाव ।