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________________ २०.1 अनेकान्त [ .१३ गया है और प्यासकी पीड़ा अपने उग्ररूपमें मुझे सता रही जैन समाजके कुछ बोगोंका अपने मंत्रादिपर कोई विश्वास है। रंगरेजने कहा कि सेठजी घबहाओ मत, अब थोड़ी ही नहीं, इसीजिये बह पावश्यकता पड़ने पर दूसरों के मंत्र-संन्त्र दूर पर एक गांव है उसके पास ही एक अच्छा हुवा है, गंडा-तावीज प्रादि पर अपने ईमानको डिगाता है। इसी. उसका मीठा और ठंडा पानी पीकर अपनी प्यास बुझाइये। लिए वह दर-दरको ठोकरें खाता है। पर सेठजी अधीर होकर बोले-'मैं जल्दी-जल्दीमें अपना कहा जाता है कि एक बार वही रंगरेज शास्त्रसभाके लोटा डोरी भूल पाया हूँ, इसीसे प्राण संकटमें आ गए। बाद जब घर जा रहा था तब उसे कुछ चिन्तित सा देखकर अब क्या करूं । तब वह रंगरेज उन सेठजीको जैसे-तैसे दीवानजीने उससे चिन्ताका कारण पूछा, तब उसने कहा कि धीरे-धीरे उस गाँवके समीप तक ले गया और उन्हें एक मुझे लोग काफिर कहते हैं, ईमान बदला हुआ बतलाते हैं, वृषकी छायामें बैठा दिया और कहा सेठजी सामने कुचा है इसकी मैंने कभी परवाह नहीं की; किन्तु मेरो एक लड़की है इसके पानीसे अपनी प्यास बुझाइये। संठजाने जब कुमां उसका रिश्ता जिस खड़केके साथ तय हुमा था, अब उसने देखा तो और भी घबराये, कुभा मिल गया तो क्या मेरा इंकार कर दिया है, उसके घर वाले कहते हैं कि हम उस तो प्यासके मारे दम निकला जा रहा है । तब उस रंगरेजने । काफिरकी लड़की नहीं लेंगे। इसीसे मैं परेशान हूँ। दीवानकहा सेठजी धीरज रखिये अभी उपाय करता हूं और ! जोने उससे कहा चिन्ता छोड़ो सब ठीक हो जायेगा। अगले आपकी प्यास मिटाता हूँ। उसने गुन-गुनाते हुए कुछ ही दिन दीवानजी ने उस लड़केको बुलवा कर समझाया तब कंकद उस कुएं में डाले जिससे उस कुएंका पाना जमीनकी उसने उस लड़कीसे शादी करना मंजूर कर लिया और उसे सतह तक छा गया और सेठजीसे कहा कि संठजो अब । एक सोनेका जेवरभी भेंट कर दिया, दीवानजीके कहनेसे उस पाप प्यास बुझाइये। सेठजीने पानी छानकर अपनी प्यास रंगरेजकी परेशानी दूर हो गई और यह लड़कीकी शादीकी बुझाई और कुछ देर आराम करनेके बाद जब चलन लगे चिन्तासे मुक्त हो गया। इस तरह दूसरोंके कार्यमें हाथ तब रास्तेमें सेठजीने उस रंगरेजसे पूछा कि भाई तुम यह 'बटाना या उसे सहयोग प्रदान करना दीवानजी अपना तो बताओ कि तुमने उस समय क्या जादू किया था जिससे कर्तव्य समझते थे। पानी जमीनको सतह तक आ गया था । आपने मेरा बड़ा एक बार किसीके सुझाने पर राजाने दीगनजीसे कहा कि उपकार किया, मेरे पर तुमने बड़ी मिहरवानी करी और मेरे आज भापशेरोंको भोजन कराइये, दीवानजीने स्वीकार कर लिया प्राण बचाए । मैं तुम्हारा अहसान कभी नहीं भूलूगा, पर और एक हलवाईसे एक टोकरेभर जलेबी बनाकर देनेको तुम मुझे वह मंत्र अवश्य बतला दो, जिससे यह करिश्मा कहा । जलेबीका टोकरा वहां लाया गया जहाँ शेर बेठा था, हुआ है। उसने कहाकि सेठजी मेरे गुरुने जब मत्र दिया था दीवानजीने पिंजरा खोल देनेको कहा, जब पिंजरा खोल दिया तब यह कहा था कि इसे किसीको नहीं बतलाना । अतः : तब दीवानजी स्वयं सिंहकं सामने गए और वहाँ बैठे हुए मैं उसे किसीको नहीं बतजा सकता । परन्तु सेठजीने उससं शेरसे कहा कि हे मृगराज ! यदि पापका स्वभाव मांस खानेभारी आग्रह किया तब उसने 'णमो अरिहंताणं' कहा, उसका : का है तो मैं सामने मौजूद हूँ और यदि आपको अपनी इतना उच्चारण करना था कि सेठजी झठस बोल उठे कि भूख मिटानी है तो जलेबीका टोकरा मौजूद है, तब शेरने यह मंत्र तो मेरे बच्चोंको भी याद है। पर उसने ऐसा जलंबी खाना शुरु कर दिया, यह सब देख लोग चकित रह करिश्मा तो कभी नहीं दिखाया। तब उस रंगरेजने कहा गए । इमस दीवानजीकी धार्मिक रहता और आत्मविश्वाससेठजी विना अपने एतकादके मंत्र क्या कर सकता है। का पता चलता है। मापको उसपर यकीन ही नहीं है फिर भला वह करिश्मा एक बार राजा शिकार के लिये जंगल में गया। साथमें क्या दिखलाना ? मुझे तो उस पर पूरा एतकाद है, मुझपर दीवानजीसे भी चसनेको कहा। रास्तमें हिरणोंका समूह जब कभी कोई विपत्ति माती है तब वह उस मंत्रके प्रभावसे सामनेसे गुजरता हुअा जा रहा था, राजाने अपना छोड़ा हट आती है। वह मेरा बड़ा उपकारी है मैं उसका रोज उनके पीछे दौड़ाया तब दीवानजीने उन हिरणोंको सम्बोधन जाप करता है। प्रस्तु, वास्तव में प्रात्म-विश्वासके बिना करते हुए कहा कि मय जंगलके हिरणो ! जब रक्षक ही कोई भी वस्तु अपना प्रभाव नहीं दिखलाती। खेद है कि तुम्हारा भनक है तब तुम किसकी शरणमें भागे जारहे हो
SR No.538013
Book TitleAnekant 1955 Book 13 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1955
Total Pages386
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size24 MB
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