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वार्षिक मूल्य ६)
वर्ष १३ किरण म
विश्व तत्त्व-प्रकाशक
ॐ अर्हम
न का
नीतिविरोधध्वंसी लोकव्यवहारवर्तकः सम्यक् । परमागमस्य बीजं भुवनैकगुरुर्जयत्यनेकान्तः ॥
वस्तु तत्त्व-संघोतक
वीर सेवामन्दिर, C/o दि० जैन लालमन्दिर, चाँदनी चौक, देहली माघ, वीनिर्वाण - संवत् २४८१, विक्रम संवत २०११
समन्तभद्र-भारती देवागम
फर्वरी
एक किरण का मूल्य 11)
१६५५
नित्यत्वैकान्त-पक्षेप विक्रिया नोपपद्यते । प्रागेव कारकाऽभावः क्व प्रमाणं क्व तत्फलम् ||३७||
'यदि नित्यत्व एकान्तका पक्ष लिया जाय - यह माना जाय कि पदार्थ सर्वथा नित्य है, सदा अपने एक ही रूपमें स्थिर रहता है - तो विक्रियाकी उपपत्ति नहीं हो सकती - श्रवस्थासे श्रवस्थान्तर रूप परिणाम, हलन चलनरूप परिस्पन्द अथवा विकारात्मक कोई भी क्रिया पदार्थ में नहीं बन सकती; कारकों का - कर्ता, कर्म करणादिका - अभाव पहले ही (कार्यात्तिके पूर्व ही ) होता है - जहाँ कोई अवस्था न बदले वहाँ उनका सद्भाव बनता ही नहीं— और जब कारकोंका अभाव है तब ( प्रमानाका भी अभाव होनेसे ) प्रमाण और प्रमाणका फल जो प्रमिति ( मभ्यग्-ियथार्थ जानकारी ) ये दोनों कहाँ बन सकते हैं ? नहीं बन सकते। इनके तथा प्रमाताके श्रभावमें 'नित्यत्व एकान्तका पक्ष लेनेवाले पांख्योंके यहाँ जीवतत्वकी सिद्धि नहीं बनती और न दूसरे ही किसी तत्वकी व्यवस्था ठीक बैठती है ।'
प्रमाण-कारकैर्व्यक्त ं व्यक्त ं चेन्द्रियाऽर्थवत् । ते च नित्ये विकार्यं किं साधोस्ते शासनाद्वहिः ॥३८॥
*( यदि सांख्यमत-वादियोंकी ओरसे यह कहा जाय कि कारणरूप जो अव्यक्त पदार्थ है वह सर्वथा नित्य है, कार्यरूप जो व्यक्त पदार्थ है वह नित्य नहीं, उसे तो हम अनित्य मानते है और इसलिए हमारे यहाँ विक्रिया बनती है, तो ऐसा कहना ठीक नहीं है; क्योंकि ) इन्द्रियांक द्वारा उनके विपयकी अभिव्यक्ति के समान जिन प्रमाणों तथा कारकों के द्वारा अव्यक्तको व्यक्त हुआ बतलाया जाता है वे प्रमाण और कारक दोनों ही जब सर्वथा नित्य माने गये हैं तब उनके द्वारा विक्रिया बनती कौन सी है ? – सर्वथा नित्यके द्वारा कोई भी विकाररूप क्रिया नहीं बन सकती और न कोई अनित्य कार्य ही घटित हो सकता है। हे साधो ! - वीर भगवन् ! - आपके शासन के बाह्य - आपके द्वारा अभिमत