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अनेकान्त
[वर्षे १३
परिवारसे युक्त कवि धर्मधरने सम्बत् ११११में श्रावण शुक्ला जो अनेकान्तके वर्ष ८ किरण ८-8 में प्रकाशित हो चुका पूर्णिमा सोमवारके दिन इस अन्यको बनाकर समाप्त किया है। उस समय तक यह अन्य उपलब्ध नहीं हुआ था। अब था । कविने इस ग्रंथकी रचना कविवर पुष्पदन्तके 'नाग यह ग्रन्थ जयपुरके तेरापंथी मन्दिग्के शास्त्र भंडारमें उपसब्ध कुमार चरिउ' को देखकर की है।
हुआ है, उस पर से जो मैने प्रशस्ति नोट की थी उसे कविने ग्रन्थके गुरूमें मूलसंघ मरस्वती गच्छके भट्टारक पाठकोंकी जानकारीके लिए नीचे दिया जा रहा है। पद्मनन्दी शुभचन्द्र और जिनचन्द्रका उल्लेख किया है इस ग्रन्थकी प्रशस्तिमें भी चौहानवंशके कुछ राजाओं जिससे स्पष्ट है कि कवि उन्हींकी पाम्नायका था और उन्हें का परिचय प्रादिका उल्लेख दिया हुआ है वह इस प्रकार गुरुरूपसे मानता था । कविने इस ग्रन्थमें अपनी दूसरी है:-सारंगदेव, इनका पुत्र अभयपान या अभयचन्द्र रचना 'श्रीपालचरित' का भी उल्लेख किया है, जिसे उसने हुा । अभयपालका पुत्र रामचन्द्र था जिसका राज्य सं० इससे पूर्व बनाया था। और जो इस समय अनुपलब्ध
१४४८ में मौजूद था । रामचंद्रका पुत्र प्रतापचंद्र था जिसके है। कविने अन्य किन ग्रंथोंकी रचना की, यह कुछ ज्ञान
राज्यमें रहधूने ग्रंथ रचना की थी। प्रतापचन्द्रका दूसरा भाई नहीं हो सका।
रणवीर (सिंह) था। इनका पुत्र भोजराज था भोजराजकी
पत्नीका नाम शीलादेवी था और उससे माधवचन्द्र नामका ग्रन्थ रचना में प्रेरक
एक पुत्र उत्पन्न हुआ था। माधव चन्द्र के दो भाई और भी इस प्रन्थको कविने यदुवंशी लंबकंचुक (लमेचे) थे कनकसिंह और नृसिंह । ग्रंथ- कर्ता कवि धर्मधरके समय गोत्री साहू नल्हूकी प्रेरणासे बनया है। माहू नल्हु माधवचन्द्र राज्य कर रहे थे। चन्द्रपाट या चन्द्रवाढ नगरके दत्तपल्ली नामक नगरके निवासी थे। उस समय उस नगरमें ब्राह्मण, दत्री, वैश्य और शूद्र
नागकुमार चरित प्रशस्ति
श्रादिभागनामक चातुरवर्णके लोग निवास करते थे। नल्हू साहूके श्रीमंतं त्रिजग संसारांबुधितारकं । पिताका नाम धनेश्वर या धनपाल था जो जिनदासके पुत्र
प्रणमामि जिनेशानं, वृषभ वृषभध्वजम् ॥१॥ थे। जिनदासके चार पुत्र थे शिवपाल- च चलि, जयपाल नमोऽस्तु वद्ध मानाय केवलज्ञानचक्षुषे । और धनपाल | और जिनदास श्रीधरके पुत्र थे। नल्ह- संसारश्रमनाशाय कौघध्वांतभानवे ॥२॥ साहकी माताका नाम लक्षणश्री था । उस समय चौहान
जिनराजमुखांभोज-राजहंसमरस्वती। वंशी राजा भोजराजके पुत्र माधवचन्द्र राज्य कर रहे थे।
मानसे रमतां नित्यं मदीये परमेश्वरी ॥३॥ धनपाल उनके समय में मन्त्रीपद पर प्रतिष्ठित थे। साहूनल्ह- गौतमादीन्मुनीनन्वा श्रुतसागरपारगान । के भाईका नाम उदयसिंह था । साहूनल्ड राज्यमान थे। वक्ष्येऽहं शुक्लपंचम्याः फलं भव्यसुखप्रदम् ॥४॥ और श्रावकोचित व्रतोंका अनुष्ठान करनेमें दक्ष थे। जिन
भद्रं सरस्वतीगच्छे कुंदकुंदाभिधो गुरुः । देवके भक्र थे। इनकी दो पत्नियां थी । जिनमें पहलीका नाम
तदाम्नाये गणी जातः पद्मनंदी यतीश्वरः ॥॥ दूमा और दूसरीका नाम यशोमति था, उससे चार पुत्र
तत्प? शुभचंद्रोऽभूज्जिनचन्द्रस्ततोऽजनि । उत्पन्न हुए थे। तेजपाल विनयपाल, चन्दनसिंह और नर
नन्वा तान् सद्गुरून् भक्त्या करिप्ये पंचमीकथां ॥६॥ सिंह । इस तरह साहू नल्हूका परिवार बड़ा ही सम्पन्न और
शुभां नागकुमारस्य कामदेवस्य पावनीं । धर्मात्मा था। उन्हीं साहू नल्हको प्रेरणाका परिणाम कवि
करिष्यामि समासेन कथां पूर्वानुमारतः ॥७॥ धर्मधरकी प्रस्तुत रचना है। .
समस्तवसुधायोषिदऽलंकारमिवाऽभवत् । चन्द्रपाट या चन्द्रवाट ऐतिहासिक नगर है जो आज चंद्रपाटाभिधं रम्यं नगर स्वःपुरोपमम् ॥८॥ खंडहरके रूपमें विद्यमान है । यहाँ पर चौहान वंशी राजाओं- तद्देशस्ति पुरी रम्या दत्तपल्लीति विश्रुता। का राज्य १२वीं शताब्दी से १६वीं शताब्दी तक रहा है। चातुर्वर्णजनैः पूर्णा कल्पवल्लीव राजते ॥६॥ मैने इस नगरके इतिहास को प्रकट करते हुए एक लेख लिखा चाहुमानान्वये श्रेष्ठः कल्पवृष इवापरः । था, जिसका शीर्षक 'अतिशयक्षेत्र चन्द्रवाट' है, और दाननिर्जितकर्योऽभूदभोजराजो महीपतिः ॥१०॥