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किरण २
कर्माका रास्थयनिक सम्मिश्रण
नहीं है-वह अपने चारों तरफ एक भरे पूरे विश्वमे घिरा या सिद्धान्तोंको जानना जरूरी है। ऐसा सम्यकदर्शनही हुआ है और सारे विश्वका असर उसके ऊपर और उसके मोक्षमार्गमें सीधा ले जाने वाला है। कर्मोपर प्रवाध रूपसे पड़ता है और वह भी विश्वका इस सदीके प्रारम्भमें कुछ विद्वानोंने सम्यकदर्शनका प्राणी होनेसे विश्व वातावरण और भाग्यको अच्छा बुरा अंग्रेजी अनुवाद Right faith या Right Belief बनाने में अपने कर्मानुसार भाग लेता है। अपने अच्छे पुरे किवा जो प्रचलित हो गये । इनका पुनः भाषामें अनुवाद कर्माका फल तो व्यक्ति स्वयं भोगता ही है देश और करनेसे Faith का अर्थ श्रद्धान होता है और Belief का संसारके अच्छे बुरे काँका फल भी उसे भोगना पड़ता अर्थ विश्वास होता है। इन अनुवादोंका असर अनजानमें है,टीक उसी तरह जैसे कुटुम्बके प्राणीको कुटुम्बके ही दूसरे सभी-जोगों पर ऐसा पड़ा कि समझ लिया सुख दुखका । संसारमें जो एक देश या एक व्यक्ति दूसरे कि जैसा शास्त्रोंमें वर्णित है वैसा ही तत्वों पर देश या दूसरे व्यक्तिको दुखिन रम्बकर भी अपनेको सुखी केवल विश्वास और श्रद्धान बना लेना ही सम्यकदर्शन समझता है वह भारी गलनीमें है। सच्चा सुख शान्ति हो जाता है। पर यह बात या धारणा भ्रमात्मक अकेले-अकेले होना संभव नहीं है। व्यक्ति और समष्टि है। तत्वों पर ऐमी निःशकित समाधानपूर्वक नष्ट अंग और शरीरके समान हैं।
स्वयं हो जाय कि उनकी प्रान्तरिक कार्यवाही, क्रियाविश्वमें जो कुछ रगड़ा झगड़ा, स्वार्थोके टक्कर, रक्त
शीलता सम्बन्धादि हम स्वयं प्रत्यक्ष देखने या अनुभव पात, युद्ध, लूट, अपहरणादि होते रहते हैं वे केवल शुद्ध
करने लग जाय वही सच्चा सम्यकदर्शन है और ऐसे सच्चे ज्ञानकी कमीके ही कारण हैं। यह ज्ञान अनकान्ता
ही दर्शनका धारी सचमुच सम्यकदर्शी या सम्यवर कहा स्मक स्याद्वादके द्वारा ही प्राप्त होना संभव है। जैन- जा सकता है। बाकी तो भ्रमपूर्ण सांसारिक व्यवहार है दर्शनमें वर्णित द्रव्या, तत्वों या पदार्थोंका शुद्ध ज्ञान ही
जो झूठा प्रमाद उत्पन्न करने वाला है। सम्यकदर्शनका सरचा ज्ञान है। परन्तु शुद्ध ज्ञान केवल पढ़कर या दूसरों- अग्र जा
- अंग्रेजी अनुवाद होना चाहिये-Scientific Conceसे सुनकर ही पूरी तरह नहीं हो सकता जब तक स्वयं ption or hijit onception| कुछ लोग समझते उसमे अंतष्टि न प्राप्त करें। वस्तुओं, दन्या, और
हैं कि मम्यकज्ञान और सम्यकदर्शन अलग अलग लिखे या पदार्थोकी क्रियाओंका जब तक अनुर्भावत रूपसे प्रत्यक्ष
व्याच्या किए जानेसं दा चीजें हैं। यह भी एक प्रकारस दर्शन करने वाला ज्ञानमय अनुभूति स्वयं न हो जाय
भ्रमात्मक धारणा है। किसी वस्तुको कहीं दूरसे या सम्यक् दर्शन पूर्ण नहीं है, अधूरा है। सम्यकदर्शनके
नजदीकम देखने पर पहले पहल जो बात धारणा पाती है शास्त्रोमें भी दश भेद कहे गए हैं।
कि-कोई वस्तु है' यही 'दर्शन' है उसके बाद तो तुरन्त ही
'ज्ञान' की मदद की जरूरत पड़ती है, यह जाननेके लिये अतः केवल तत्वांको सुन या पढ़ कर जैसाका तैसा
कि यह वस्तु क्या है अथवा लोकर्म उसे क्या कहते हैं मान लेना मात्र सम्यक्दर्शन नहीं है, वह तो सम्यकदर्शन
इत्यादि । और तब वह प्राथमिक दर्शन भी अधिक साफ का क ख ग घ'-प्रथम वर्णमालाके परिचय स्वरूप है।
होता है। कंवल इसीलिए कि इस तरह किसी नई वस्तुका सम्यक् दर्शन तो सचमुच तभी सम्यक् दर्शन कहा जानेके
प्रथम दर्शन होता है 'दर्शन' का पहला स्थान मिला और योग्य ह जब हम एक रसायनशास्त्री ( Professor of
सम्यकदर्शनकी भी 'मम्यक ज्ञान' से पहले गिनती की गई। Chemistry ) की तरह यह जान जांय कि तत्व या
पर 'सम्यक जान' के बिना 'सम्यक्दर्शन' होना संभव नही पदार्थ सचमुच हैं, क्या चीज और इनका सम्बन्ध प्रारमा
न इन दोनोका एक दूसरे से अलग ही किया जा सकता है और शरीरमे किस प्रकारका है तथा इनका श्रापसी सम्बन्ध
दोनों एकमें एक हैं। केवल शास्त्रचर्चा और व्यवहार और विभेद कहाँ, कब, कैसे. क्यों है। इसके लिए भी
एवं निश्चय दृष्टिकोणों द्वारा समझानेके लिए या अनेकांत आधुनिक रसायनशास्त्रके कुछ प्रारम्भिक नियमों सूत्रों
रूपसे व्यवहार करके किसी बात मसले या प्रश्नका विशेष रूपमें-संचालक, अखिलविश्वजैन मिशन, पो अलीगंज, विधिवत् समाधान या हल करनेके लिए ही दोनीको अलग जिला एटा, से अमूल्य मिल सकते हैं।
रखा गया है इसके अतिरिक्त भी व्यवहारिक रूपमें ज्ञान