________________
६२1
अनेकान्त
[किरण २
जस वर्गणा और कर्मायवर्गणा । मौदारिक शरीर तो जलमें पड़ने वाले प्रतिबिम्ब धुधले या विकृत हो जायगे, रकमांसादिमय प्रत्यक्ष शरीर है जिसे हम देखते हैं और उसी तरह मारमाके प्रदेशों में पुद्गलकी विद्यमानताके जिसके द्वारा कर्म होते हैं। तेजसशरीर तेजपूर्ण-प्रभामय कारण उसका ज्ञान सीमित या विकृत हो जाता है। शुभ्र शरीर है जो सूचम-पारदर्शक है और पूर्ण शरीरमें पास्माकी शक्तियों या ज्ञान गुणको कम कर देने अथवा व्याप्त है पर उसे हम देख नहीं सकते । तीसरा 'कार्माण' आच्छादित रखनेके कारण ही कर्मपुद्गलोको या कर्माण शरीर जो तेजससे भी अधिक सूचम या महीन वर्गणामोंको पाठ भागोंमें विभक किया गया है। वे हैं प्रास्य पदल वर्गणनासे बना है। यही मानव द्रव्य -ज्ञानावरणी वर्गणाएँ जो पारमाके अनम्तज्ञानको (वचन और शरीर द्वारा किए जाने वाले कर्म) और सीमित करती है;-दर्शनावरणी वर्गणाएँ जो दर्शन भाव (मन द्वारा होने वाले) कोका प्ररक, संचालक बोध या अनुभव शक्तिको सीमित करती है;-वेदनीय
और नियंता है। औदारिक शरीर तो मृत्युके समय यहीं वर्गणाएँ जो सुख दुखका अनुभव कराती हैं;-मोहनीय रह जाता है जबकि तैजस और कार्माण शरीर संसारा- वर्गणाएँ जिससे मनुष्य मोह तथा चरित्रको प्राप्त होता है। वस्थामें बराबर मात्माके साथ साथ रहते हैं। कार्माण- ५-प्रायुष्क, जिससे किसी शरीरमें रहनेको अवधि स मय और नई नई योनियों में नया जम्म लेने सीमित हो जाती है;६-गौत्र कर्म-वर्गणाएं, जिनसे नया शरीर धारण करने करानेका मूल कारण है
अच्छे परिवार और लोगों एवं परिस्थितियों में जन्म होता इन तीनों ही शरीरामें सर्वदा परिवर्तन होता रहता है-नामकर्म वर्गणाएं, जिनसे शरीरकी बनावट ऐसो
स नी होती है कि अच्छे या खराब काम होते हैं,८-अन्तराय माँ के पेट में ही हो जाता है। कार्माण शरीर धारी पारमा
कर्म वर्गणाएँ हैं जिनके कारण कार्य संचालन और जिस समय किसी रजवीर्यके संयोगसे रजकण और वीर्य
तज्जन्य उपयुक्त फलके लाभमें विघ्न-बाधा या रुकावट कणके सम्मिलनसे उत्पन सूक्ष्म शरीरमें प्राता है तो
पड़ती है। इनके भी अलग अलग विभेदोंका विस्तृत वर्णन उसका वही एक निश्चित रूप रहता है। पर बाहरी
शास्त्रोंमें दिया हुआ है।
शराब पीकर कोई व्यक्ति मतवाला हो जाता है या औदारिक शरीरके परिवर्तनसे इस भीतरी कार्माण शरीर
क्लोरोफार्म सूंघकर बेहोश हो जाता है क्लोरोफार्म और का परिवर्तन भावानुकूल बहुत भिन्न होता है । दश प्राणी
शराब दोनों पुद्गल है, इनका असर मनुष्यकी बुद्धि, द्वारा मनुष्य जीवित रहता है. जिसका अर्थ यह है कि
मस्तिष्क और मन पर जोरदार पड़ता है-अधिक शराबजब तक इन प्राणोंके द्वारा दोनों शरीरोके परिवर्तनों में ऐसा साम्य बना रहता है कि एक दूसरेके साथ रह सकें अथवा
के नशेमें मनुष्य बहुतसे नए-नए कर्म या बातें करने लगता कर्माण शरीरकी प्रेरणानुसार बाहरी शरीर कर्म कर सके
है उसी तरह ज्ञानावरणीय और दर्शनावरणीय कर्म भी या संचालित हो सके तब तक तो दोनों साथ साथ रहते हैं
प्रारमाके चेतनामय ज्ञानको भथवा अनुभूति करनेकी अन्यथा कर्माणशरीर प्रात्माको लेकर निकल जाता है
शक्तिको इस तरह संचालित करते रहते हैं कि मानव वैसा
ही व्यवहार करता है जैसा ज्ञानावणीय वर्गणाओं और और दूसरी योनिमे नया जन्म लेकर ऐसा शरीर धारण
दर्शनावरणीय वर्गणाओं द्वारा निर्मित अन्तर-शरीरका वह करता है जो उसकी प्रकृतिके अनुकूल हो।
भाग संचालित होता है जो इन गुणोंको क्रियात्मक रूप मानवके कर्माण शरीरके पाठ भाग किए गए हैं।
देता है। जैसे बिजलीका कोई यन्त्र जो किसी विशेष कामपास्माका गुण है अनन्त शुद्ध ज्ञान । पर जिस तरह शुन्
के लिए बना है वह वही काम कर सकेगा जिसके लिए जलमें यदि मिट्टीके कण या कोई रंग डाल दिए जाय तो
वह यन्त्र बना है और जिसकी बनावटके ब्यौरे (details) & 'जीवन और विश्वके परिवर्तनोंका रहस्य' नामक उसी विशेष कामका ध्यान रखकर निर्माण किए गए है।
अपने लेखमें मैं इस विषय पर संक्षेपमें प्रकाश डाल बिजलीकी शक्ति तो सभी यन्त्रों में एक समान या एक ही चुका हूँ। देखो, 'अनेकान्त'-वर्ष १०, किरण ४.५ होती है पर यन्त्रोंकी बनावोंकी विभिपताके कारण ही (अक्टूबर नवम्बर १९४६)।
उनसे होने वाले कार्य भिन्न होते हैं। विभिन्न मनुष्योंक