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अनेकान्त
[किरण २
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उपस्थितिमें विभिन्न हरकतें, क्रियाएँ होती है और अंतमें वर्गणाओंका विभिन्न रूपों और संगठनोंमें होता ही रहता तरह तरहको मिश्रित या संयुक्त वस्तुएँ (Mixtures & है। एक ग्रह उपग्रह या वस्तुकी ये धाराएं या किरण Coupounds) तैयार होती हैं जिनके गुणादि भी दूसरे ग्रह उपग्रह या वस्तुओं पर लगकर, उनमें प्रवेश अपने अपने अलग अलग होते हैं।
करके क्रिया प्रक्रियादि द्वारा अपना प्रभाव डालती था मानव या किसी भी जीवधारीके शरीरका निर्माण
उत्पन्न करती रहती हैं जिनके कारण भी हर वस्तुमें करने वाली वस्तुएँ या रसायनोंकी संख्या और वर्गणाएँ
सतत परिवर्तन होते ही रहते हैं ।मानव या किसी जीवअनगिनत प्रकारकी हैं। एक एक वस्तुकी वर्गणानांकी
धारीका शरीर भी इस पृथ्वीका प्राय होने से इसके साथही संख्या अलग अलग अगणित अनन्त है । एक बालकी
गतिशील और सर्वदा कम्पन-प्रकापनसे युक रहता है। नोकमें असंख्य वर्गणाओं और अणुओंका समूह रहता है
जो गतियाँ और कम्पन प्रकम्पमादिगाहरी प्रभावों के कारण
होते हैं उनके अतिरिक्त मानव शरीर स्वयं चलता फिरता तो फिर तो एक बड़े दृश्य शरीरमें उनकी संख्या अगणित, असीम अनन्त होगी ही। इन वर्गणाओंमें सर्वदा क्रिया,
है, हलन चलन करता है, हिलता हुजता है, हर क्रियाप्रक्रिया, एवं अणुओं और परमाणुनोंका भादान-प्रदान
कलापमें शरीरका या किसी न किसी अंग अथवा इन्हीं
का संचालन होता रहता है, जिन्हें हम शारीरिक कम्पन या अदला बदली होकर स्वतः परिवर्तन होते ही रहते हैं। फिर हम भोजन पान करते हैं, श्वास निश्वासको छोड़ते
और गतियाँ कह सकते हैं । पुनः मानवका मन जब भी रहते है, प्रकाश किरणे और वायु हमारे शरीरको हर ओर
एक विषयसे दूसरे विषयको बदलता है तब मनोप्रदेशमे से बेधित करते रहते हैं इनके अतिरिक्त भी अनन्त प्रकारकी
कम्पन प्रकम्पन होते हैं और चूकि मन भी शरीरका ही वे किरण और धाराएँ जो हमारे शरीरसे टकराती है,
एक भाग है इससे उसके साथ ही बाकी सारा शरीर भी कुछ भीतर घुसती हैं. कुछ घुसकर निकल जाती है
दृश्य या अदृश्य, अनुभूत था अननुभृत रूपस कम्पित
प्रकम्पित होता है। इत्यादि। ये सभी कुछ पुद्गल निर्मित ही है । शरीरमें
इन सभी गतियों और कम्पन प्रकम्पनादि द्वारा स्वतः इनका प्रवेश होना नए पुद्गलका प्रवेश होना ही है। इस तरह इनकी भी क्रिया-प्रक्रियाग भीतरके रसायनों और
सर्वदा पुद्गलपरमाणुओं. अणुओं और गणात्रोंका
निस्सरण हर वस्तुसे, हर शरीरसे. हर वस्नुका हर वर्गणाओंके साथ हो होकर नई वर्गणाएँ या नए नए रसा
वर्गणा से भिन्न भिन्न संगठनों, धाराश्री, किरणांके रूपमें यन उत्पन्न कर परिवर्तन दिलानी ही रहती हैं।
होता ही रहता है। हर वस्तु और हर शरीरसं पुद्गलोंइनके अतिरिक्त भी विश्वमें जितनी भी वस्तुण हैं वे की इस अवाध धाराका प्रवाह हर दूसरे वस्तु और शरीर सर्वदा विभिन्न गतियों और कम्पन-प्रकम्पनादिस मुक्त से लगकर, घुमकर कमवेश क्रिया-प्रक्रिया द्वारा अपना हैं बड़े बड़े ग्रह सूर्य, पृथ्वी इत्यादि, और इन ग्रहों पर पणिक अस्थायी और स्थायः प्रभाव करता ही रहता है। अवस्थित सभी वस्तुएं अलग अलग कम्पन-प्रकम्पनसे सभी जीवधारियों और मानवोंके साथ भी ये ही बातें होती युक्त है। अपनी अपनी विभिन्न गतियों और अवस्थितिके रहती हैं। बेजान वस्तुओंमें केवल स्वाभाविक या प्राकृतिक अनुसार समी ग्रह-उपग्रह और सभी वस्तुएं एक दूसरे पर कम्पन ही होते हैं पर जीवधारियोंके शरीरोमें उनके कर्मों अपना विभिन्न प्रभाव डालती रहती हैं, जिनके कारण ये और सचेतन हलन चलनके द्वारा भी क्रियात्मक कम्पन गतियाँ भी स्वतः होती रहती हैं और कम्पन-प्रकम्पन भी प्रकम्नादि होते हैं। जिन जीवोंके मन ('Thinking होते रहते हैं और ये सर्वदा ही होते रहेंगे। इनमें कमी faculty ) रहता है उनकी मानसिक हलचलोले अलग बेशी फेर बदल-परिर्वतन हो सकते हैं पर ये गतियां और कम्पन-प्रकम्पन होते हैं। मानवके मन, बुद्धि और हृदयका कम्पन-प्रकम्पनादि बन्द नहीं हो सकते, ये तो-शास्वत और संयोग होनेसे भावनारमक कम्पनादि भी होते रहते हैं। अवाधरूप से होते ही रहेंगे । इन गतियों, कम्पन प्रकम्प- वचन या बोलना भी द्रव्यकर्म ही है। मनोप्रदेशके हलन मादिके कारण हर प्रह-उपग्रह और हर वस्तुसे निर्वाध चलन या मानसिक विचारोमें परिर्वतन होने अथवा भावअविराम शास्वत धारा प्रवाह अणुओं, परमाणुओं और नास्मक प्रवृत्तियोंको "भावकर्म" कहते हैं।