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________________ बंगीय जैन पुरावृत किरण २] जैनोंके आदिपुराण आदिमें जिला है कि भोगभूमि कालमें स्त्री और पुरुष साथमें हो उत्पन्न होते थे और सभी मनुष्य एक समान वैभव वाले थे और कोई किसीके मत नहीं था। इसके बाद कर्म-भूमिके समय आदि नाथ ऋषभदेवने पत्रिय, वैश्य और यह इन तीन वर्षों की कल्पना कर लोगोंको उनके योग्य आजीविकाके उपाय बताये । और प्रजाके पालन और शम्सनके लिए राजा नियुक्त किये । जिस जिस राजाका जो नाम रखा गया उन्हीं नामोंसे विभिन्न वंश जैसे- कुरुवंश, हरिवंश नाथवंश, उपवंश बन गये आदिनाथने इ (ख) के रसका संग्रह करनेका उपदेश दिया था इसलिए लोग उन्हें इत्रा । कहने लगे ये कारण अर्थात् वेज के अधिपति थे इसलिये लोग उन्हें काश्यप कहते थे आदिनाथ के पुत्र महाराज भरतने ब्राह्मण वर्णकी स्थापना की थी । आदिय अधिवासी और आर्यजाति । । जैनशास्त्र अनुसार भारतवर्ष ही बायकाम निवास स्थान है । पर पाश्चात्य इतिहासकारोंका मत है किष्टि (ईसा) जन्मके १२०० या २००० वर्ष पूर्व प्राचीन आर्यजाति एशिया खडके मध्य भागमें अवस्थित थी, जो मरुमय पुरातन आवासभूमिका परित्याग कर दक्षिणकी ओर बने गोष्टि जम्मसे पंच शताब्दी पूर्व समय में इन आगयोंके ग्रामों ( Babylon ) और सिर ( Bgypt) देशके प्राचीन साम्राज्य ध्वंस हो गये। वृिष्ठ पूर्व षोडश शताब्दी में आर्य वंशजात काशीष जाति (Kassites, Cassita, Kash — shee ) ने बाविरूष पर अधिकार कर नूतन राज्य स्थापित किया था। वे काशीयगण कार्य जातीय थे प्राचीन भार्यजालिने बोहनिर्मित अस्त्रोंकी सहायतासेटि जन्म से २००० से १२०० वर्ष पूर्व कालमें प्राचीन बाविरुष और बासूर ( Assyria ) राज्योंको जय किया था । 1 इसी आर्य जातिकी एक शाखाने भारतके उत्तरपश्चिम सीमान्तकी पर्वत श्रेणीको भविक्रम कर पंचनद प्रदेशमें उपनिवेश स्थापित किया था। इन लोगोंने क्रमशः पूर्वकी ओर अपना अधिकार विस्तार किया और दो तीन शताब्दी के मध्य ही उत्तरापथके अधिकांश भागको हस्तगत कर लिया और जब भायंगण अपनी बस्ती विस्तार करते [ ४३ करते हुए इलाहाबाद पर्यन्त उपस्थित हुए तब बंग, बगध (मगध) और चेर देशवासियोंकी सम्पतासे ईर्ष्यावश उन्हें धर्मज्ञानहीन और भाषा शून्य पक्षी कह कर इनकी वर्णना वेदोंमें की है। वर्तमान युग पहिलो स्थिर किया है कि आगयोंके बंगाल अधिकार के पूर्व इसमें दाि नामकी एक जाति वास करती थी वह सम्बतामें इन प्रायसे न्यून न थी । प्रत्नविद्या विशारद हाल साहबका मत है कि द्राविदगण अति प्राचीनकाल से भारतवर्ष के निवासी है और प्रागैतिहासिक युगमें इन्हीं लोगोंने सृष्ट जम्मले तीन सहल वर्ष पूर्व विरूप चीर पेशन पर अधिकार कर बाँकी बाविरूप और मासूर आदिकी प्राचीन सभ्यताकी भित्ति स्थापित की थी । नृतत्वविद्ोंने आधुनिक बंग यासियोंकी नासिका और मस्तककी परीक्षा कर यह निश्चय किया है कि ये योग द्रविड़ और मोंगोलियन जातिके सम्मिश्रणसे उत्पन्न मालूम होते है। मेजर जनरल फरलांगने प्रमाणित किया है कि चायके आगमन के पूर्व भारतवर्ष के प्राचीन अधिवासी विद गण थे और इनमें जैनधर्मको मानने वाले सूटसे सहखाँ वर्ष पूर्व यहाँ वास करते थे । जैनधर्म एक प्राचीन सुसंगठित दार्शनिक, नैतिक और कठोर तपस्या- परायच धर्म या । यह बात सिधदेशके मोहेंजोदरोकी खुदाईसे और मा अधिक पुष्ट हो गई है। वहाँ जैन प्रभावके प्रति प्राचीन चिन्ह उपलब्ध हुए हैं + 9 ऋग्वेदमें जिनको दस्यू कहा है वह सम्भवतः यही द्राविष जाति है। मोदापन धर्मसूत्र (१/१/२) मं खिला है कि बंग, कलिंग, सौवीर प्रभृति देशांमें गमन करनेसे शुद्धिके लिए यज्ञादि अनुष्ठान करना चाहिए। ● HR. Hall's The Ancient History of the Near East p. 171-174 x Short studies in the Science of Comparative Religion p. 243-14 + Twenty-First Indian Science Congress Bombay 1934 section of Anthr opology-Sramanism by Rai Bhadur Rama Prasad Chanda.
SR No.538012
Book TitleAnekant 1954 Book 12 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1954
Total Pages452
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size27 MB
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