________________
वंगीय जैन पुरावृत्त
(श्री बा० छोटेलाल जैन, कलकत्ता)
_[गत किरणसे आगे] उपयुक उक्लेखोंसे ज्ञात होता है कि वर्तमान वर्द- जातिके साथ मज्जागत पार्थक्य नहीं है। जाति-गत वान विभागमें प्राचीन काखकी वर्द्धमानमुक्ति थी और पार्थक्य स्वाभाविक और अपरिवर्तनीय नहीं है । यह इसीका बहुमाग समृद्धिशाली और प्राचीन राढ़ था। पार्थक्य कृत्रिम और अनेक स्थल पर काल्पनिक है। जो प्रेसीडेन्सी विभाग और ढाका विभागका बहु भाग प्रदेश पार्थक्य आज दृष्टिगत हो रहा है वह शिक्षा-दीक्षा और ही प्राचीन बंग था और वर्तमान राजशाही विभागमें ही परिपार्श्विक अवस्थाकी विभिन्नतासे संगठित हुआ है। प्राचीन पुरवईन था, जिसका एक मंडल सुविख्यात सुसभ्य और सुकृष्टि-सम्पन्न जातियां जिस परिपालिक बरेन्द्र था, कई विद्वानोंका मत है कि भौगोलिक टालेमी अवस्थामें पड़कर उन्नत हुई है, अति निम्नस्तरकी कोई
और प्लीनी कथित गङ्गारिदि प्रदेश यही है । चटगांव भी जाति बैसी पारिपाश्विक अवस्था और शिक्षा दीक्षाका विभागमें प्राचीन समतट था । दिनाजपुरका बानगढ़ ही सुयोग पाकर उन्हींकी तरह उन्नत अवस्थामें उपनीत हो प्राचीन कोटीवर्ष था।
सकती थी । मानव यदि अभिमान शून्य होकर उदार यहाँ नदियोंके गमनमार्गमें निरन्तर परिवर्तन होनेके दृष्टिसे विचार कर देखें तो उन्हें मालूम हो जायगा कि कारण, अनेक प्राचीन स्थानोंका जलप्लावनसे, स्थानोंके जातियों में मज्जागत प्रभेद नहीं है । जैन शास्त्रोंके अनुदुर्गम और भस्वास्थ्यकर हो जानेके कारण ध्वंस हो चुका सार भोगभूमि कालमे मानव मात्र एक ही जातिके थे। है। कोसी नदीक तलदशम पारवतनक कारण दलदल भारतीय जातिसमूहकै विषयमें नृतत्वविद्गोंका और बाढ़ोंका प्रादुर्भाव हुमा, जिससे गौदनगरका विध्वंस
यह अभिमत है कि मध्य एशियाकी 'पाल्पीय" नामक हो गया। अस्थिर पद्मानदी अनेक ग्राम और नगरोंको
जातिने प्रागैतिहासिक युगम महाराष्ट्र, सौराष्ट्र, कर्ण और बहा ले गई। इसी प्रकार अन्य नदियोंका विध्वंसकारी
कुर्ग इन सब प्रदेशों में वास किया था और तव्रत्य आदिम प्रभाव बंगदेश पर कैसा हुमा है, इसका अनुमान सहज
अधिवासी निषाद, द्राविड़ एवं आर्यजातिके संमिश्रणसे ही किया जा सकता है। सुन्दर वन एक समय जनाकीर्ण
इन सब देशोंकी प्रार्य हिन्दु समाजकी सृष्टि हुई है। फिर प्रदेश था किंतु प्रकृतिके प्रकोपने उसे जनशून्य बना दिया।
उन्हींकी एक शाखाने बंगाल, बिहार और उड़ीषामें उपदक्षिण में बंगोपसागरके प्रत्यापणक कारण दाक्षण जिलाके निवेश स्थापित कर एक ही रूपसे तनत्य हिन्दुसमाजकुछ भागोंका अंचल प्रसारित हो रहा है इसीसे अब ताम्र
का गठन किया है। वर्ण और प्राकृति, शरीरकी उच्चता लिप्त (तामलुक) से समुद्र ४५ मील दूर है।
करोटी और मस्तक, नासिकाका गठन, अखि, केशका रंग, यहाँ यह भी बता देना आवश्यक है कि विहार प्रांतके
मुखमण्डलकी श्मश्रु-गुम्फादिका न्यूनाधिक प्रभृतिके साहवर्तमान सीमान्तर्गत मानभूम, सन्थल परगना और
श्य और पार्थक्य द्वारा पंडितगण जाति-प्रभेद अर्थात् वंश पुर्णियाके आदिवासियोंकी भाषा बंगला है।
निर्णय करते हैं। इसी प्रमाणके बलसे यह सिद्ध हुआ है बंगालकी जनसंख्या करोड़से अधिक है। पश्चिम किगाली हिन्दसमाजकी ब्राह्मण और ब्राह्मण सभी बंगमें हिन्दोंकी संख्या अधिक है और पूर्व बंग (पाकि- जातियां मलतः अभिन्न हैं। और इसका समर्थन पुराणास्तान) में मुसलमानोंकी।
से होता है ‘एकोवर्ण आसीत् पुरा' । बंगाली हिन्दु मानव-जाति
समाजान्तर्गत अधिकांश जातियाँ मूलतः एक जातिसे समु. माधुनिक नृतत्वविद्गणोंने प्रमाणों द्वारा यह सिद्धांत स्थिर किया है कि "पृथ्वीको कोई भी जातिका किसी भी * बंगेत्रिय पुगडू जाति-मुरारी मोहन सरकार ।