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________________ विषय-सूची १ यम-धाराम-विहारी (पद्य)- भागचन्द जी । २ अंगीय जैन पुरावृत्त-[बा छोटेलाल जैन ४२ ३ ४२५) २० के दो नये पुरस्कार-[जुगलकिशार ४७ ४ पल्लेखना मरण-[श्री १०४ पूज्य चुलनक गणेशप्रसादजी वर्णी काँका गमानिक सम्मिश्रण (बाबू अनम्न प्रसादजी B St. Eng. ६ भारत देश यागियोंका देश है-बाव जयभगवान जैन एडवोकेट , श्रीमहावीरजी में वीरशामन जयन्ती ७४ साहित्यके प्रचारार्थ सुन्दर उपहारोंकी योजना जो मन्जन, चाहे व अनेकान्तके ग्राहक हो या न हो. अनेकान्तके तीन ग्राहक बनाकर उनका वाषिक चन्दा १५) रुपये मनीआर्डर आदिवं द्वारा भिजवायेंगे उन्हें स्तुतिविद्या, अनिन्यभावना और अनकान्त-स-लहरी नामकी नीन पुम्न उपहारमं दी जायेगी । जा सजन दो ग्राहक बनाकर उनका चन्दा १.) रुपये भिजवायेंगे उन्हे श्रीपुरपाश्वनाथम्तात्र, अनिन्यभावना और अनकान्त-रमलहरी नामकी ये तान पुस्तकें उपहारमं दी जायगी ओर जा सज्जन केवल एक ही ग्राहक बनाकर रूपया मनीआर्डरसे भिजवायेंग उन्हें अानन्य-भावना और अनकान्त-रस-लहरी यदा पुग्नक उपहार में दी जायेगो । पुस्तकांका पोटज खर्च किसी को भी नहीं दना पड़ेगा। ये सब पुस्तकें कितनी उपयोगी हैं उन्हें नाच लिग्वे मंभिप्र परिचयसे जाना जा सकता है। (१) स्तुतिविद्या-वामी समन्तभद्रकी अन खी कृति, पापांको जीतनकी कला, सटीक माहित्याचार्य पं. पन्नालालजीक हिन्दी अनुवाद • महित और श्रीजुगलकिशोर मुम्नारकी महत्वकी प्रस्तावनासे अलंकृत, जिमम यह स्पष्ट किया गया है कि स्तुति आदिक द्वारा पापांका कंग जाना जाता है। मारा मूल ग्रन्थ चित्रकारांम अलंकृत है। सुन्दर जिल्द सहित, पृष्ठसंख्या ८२. मृल्य डेढ़ रुपया। (२) श्रीपुरपार्श्वनाथ-स्तोत्र-यह प्राचार्य विद्यानन्द-चित महत्वका तत्वज्ञानपूगी म्नात्र हिन्दी अनुवाहादि-महित है। मूल्य बारह आने । (३) अनित्यभावना---आचार्य पदमनन्दीकी महन्यकी रचना श्रीजुगलकिशार मुख्तारक हिन्दी पद्यानुवाद और भावार्थ-महिन. जिम पढ़कर कैमा भी शोक सन्तप्त हृदय क्यों न हो शान्ति प्राप्त करता है । पृष्ठमस्या ४८. मूल्य चार आने। (४) अनेकान्त-रम-लहरी-अनकान्त-जैम गूढ-गम्भीर विषयको अतीव सरलतासे ममझनेसमझानकी कुजा, मुन्नार श्रीजुगलकिशोर-लिखिन, बालगोपाल सभीक पढ़न योग्य । पृष्ठ मंग्या ४८ः मूल्य चार आने। . विशेष सुविधा- इनममे कोई पुस्तकं यदि किसी के पास पहलस मौः द हा ना वह उनक स्थान पर उतने मूल्यकी दमरी हुस्तकें ले सकता है, जो वीरसेवामन्दिरमे प्रकाशित हो। वीरमेवामन्दिरके प्रकाशनांकी सूची अन्यत्र दी हुई है। इस तरह अनेकान्नकं अधिक ग्राहक बनाकर बड़े बड़े ग्रन्थों को भी उपहारम प्राप्त किया जा सकता है। मैनेजर वीरमेवामन्दिर १ दरियागंज, देहली,
SR No.538012
Book TitleAnekant 1954 Book 12 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1954
Total Pages452
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size27 MB
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