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हमारी तीथ-त्रा संस्मरण
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अजमेर एक पुराना शहर है, जिसे अजययपार कर उन पर भली भांति विचार किया जाय । इस मन्दिरचौहाने बसाया था। अजयपाखके पुत्र बाणा'ने अजमेरों में महारकीय.गही है, जिसका पहले कभी मम्बन्ध देहली 'पानासागर' नामक एक कोल बनवाई थी, जो१०० गज की गद्दीसे था। यहाँ अनेक प्रभावशाली भहारक हुए हैं, सम्बो और ... गज चौदी है। वर्षातके दिनों में इस जो मन्त्र तन्त्र विद्याम भी निपुण थे। ऐसो एक ग्वाम मोनका घेरा कई मीलका हो जाता है। झीलके निकट घटना अजमेर में घट चुकी है जिसे अजमेरके प्रायः सभी जहांगीरका बनवाया हुमा 'दौलतबाग' है कहा जाता है व्यक्ति जानते हैं। मजमेर के भट्टारक विशालकीकि शिष्य किमानासागरके किनारे पर संगमरमरका चबूतराशाहजहाँ पंडित अम्खयराजने सं० १९१० मे उपदेश रत्नमाला ने बनवाया था। उस परसे पानासागरका प्राकृतिक दृश्य (महापुराण कालिका)नामका ग्रन्थ बनाया था। इस बड़ा ही सुन्दर प्रतीत होता है।
अन्यकी अन्तिम प्रशस्तिम कविने अन्य नगरीके नामांके अजमेर प्राचीन समयसे ही जैन संस्कृतिका केन्द्र साथ अजमेरका भी उल्लेख किया है। यहाँके भहारकीय रहा है-यहां जैन संस्कृतिके पुरातन अवशेष समय-समय
मन्दिरमें संस्कृत प्राकृत प्रन्यांका एक ना शास्त्र भंडार पर निकलते रहे हैं। जिनसे ज्ञात होता है कि अजमेर जो भ० हर्षकीर्तिक नामसे प्रसिद्धिको प्राप्त है। किसी समय जैनसंस्कृतिका केन्द्र बना हुआ था।
वर्तमानमें भी अजमरमें जैनियांका गौरवपूर्ण स्थान सन १६ ई० में या । जैन मतियां, जो संग- है। जैनियोंकी संख्या भी अच्छी है-और वे विमित्र मरमरके पापांणको निर्मित हैं ममनमानी कमरिस्तानसे मुहल्लोमे भाषाद है उनके मन्दिर मी अनेक मुहल्लोंमें निकली थी । अजमेरमें यह कबरिस्तान स्वाजा साहबकी बने हुए हैं जिनकी कुल संख्या 12 जिनमें ५ मसियां दरगाहसे परे एक प्राचीन जैन मन्दिरके पास अवस्थित और दो चैत्यालय भी शामिल हैं। उनके नामादि इस ६. जहांस तारागढको रास्ता गया है। उनमें से छह प्रकार है:मूर्तियोंके नीचे पट्टी पर मूर्तिलेख उत्तीर्ण हैं, जिन पर नसियां स्व-सेठ नेमीचन्द्र टीकमचन्द्रजी-इसका सं० १२३६, १२४३,१२३४, १२४७,१२३६ और ११९५ दूसरा नाम 'सिद्धकूट चैन्यालय है। इसमें नन्दीश्वरद्वीप अंकित है
और समयसरणकी रचना अपूर्व है, पौराणिक कथाओंके इनके सिवाय, सन् १९२१ में चार मूर्तियांका एक
अनेक ऐतिहासिक चित्र भी अंकित हैं अयोध्या नगरीका स्तम्भ सं० १९७का पमप्रभुका पाषाणखा स्वैडमेमो- सुवणमय चित्र दर्शनीय है। भूगोल सम्बन्धी जैन सिद्धांतों रियज हाई स्कूल के पास एक कुएँ मसे निकला था।
ना का मूर्ति चित्रण किया गया है. इसो स्थान पर ढाई द्वीपों अजमेरका भनाई दिनका झोपदा तो प्रसि ही है
और अनेक समुद्राम घिरे हुये कनकगिरि सुमेरू, जहाँ वह एक जैन मन्दिर था जो डाई दिनमें मस्जिदके रूपमें
पर भगवान ऋषभदेवका अभिषेक हुआ था । भगवान परिणित कर लिया गया था माज भी उसमें १६ स्वस्तिक
ऋषभदेवकी तपस्या और निम्रन्थ दीक्षा, केवलज्ञान और बने हुये हैं और उसकी छतोंके चौक और बेखवूटे भावूके
निर्माण की प्राप्ति प्रादिके चित्र दिये हुए हैं। भरत और मन्दिरोंसे मिजते जुलते देशो पस्थरके बने हुए हैं। उसका
बाहुबली तीनों युद्धके चित्र भी अच्छे हैं जो दर्शकोंकी
अपनी भोर माकृष्ट लिये बिना नहीं रहते । नसियाकी तमाम ढांचा ही जैन मन्दिरका मालूम होता है उसमें अनेक वेदियों पर जैन मूर्तियाँ विराजमान होंगी। कहा
इस रचनाके उद्गम का मूलस्रोत जबपुरके प्रमिड विद्वान
पं० सदासुख कासलीवालकी प्रेरणामे हुआ था और रचना जाता है कि अजमेरके भट्टारकीय मन्दिर में प्रवाई दिनके
भगवान जिनसेनके प्रादि पुराणके अनुसार सम्पत की गई झोपड़की कई मूर्तियाँ मौजूद हैं परन्तु इस बातका विश्चय
है। नसियां जीके सामने संगमरमरका ८५ फुट उंचा एक उसी समय हो सकता है जब वहांके मूर्तिलेखांको नोद,
विशाल मानस्तम भी बनाया है, जो उस समय तक * See Journal of the Asiatic Society. प्रतिष्ठित था और अब उसकी प्रनियत हो रही है। सेठ
of the Bengal. Vol. VII Part 1, भागचन्द जी सोनीके मौजन्यमे वीर मेवा-मन्दिरने हमके January to June 1838, P. 51 सब चित्रादि लिये हैं।