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साहित्य परिचय और समालोचन
१ तत्त्व समुच्चय--सम्पादकहा हीरालालजी जैन बड़े गम्भीर विषयको बालकोंके ग महल ही उतारना एम. ए.डी.लिट् । प्रकाशक भारत जैन महामंडनवर्धा चाहते हैं। पुस्तक उपयोगी है। इसका समाजमें पर्यट पृह संख्या २००, मूल्य ३) रूपया।
प्रचार होनेकी जरूरत है। साधारण कागजके संरक्षणका प्रस्तुत पुस्तकमें जैनतत्वज्ञान और प्राचार-सम्बन्धी र
तत्वज्ञान और प्राचार-पसी मूल्य पाठ श्राने है। प्राकृत गाथाओंका संकलन किया गया है। मूल गाथाओंके ३महावीर वर्धमान-संग्बक डा. जगदीशचन्द्र जी यथा कम संकलन के बाद उनका क्रममं अनुवाद भी दिया एम.ए. प्रकाशक, भारत जैन महामण्डल वर्धा | पृष्ट हमा है और अन्तमें शब्दकोष भी दे दिया गया है। संख्या १० मुख्य बारह पाना। म साहबने इस ग्रन्थका निर्माण छात्रोंको प्राकृतका
प्रस्तुत पुस्तकम डा. साहबने भगवान पारर्वनाथ अध्ययन कराते समय जो प्रेरणा मिली उसीसे प्रेरित
और उनकी परम्पराका समुल्लेख करते हुए भगवान वर्धहोकर उस ग्रन्थका निर्माण किया है। ग्रन्थकी संकलित
मानका जीवन-परिचय श्वेताम्बर साहित्यके आधार पर गाथा दिगम्बर-श्वेताम्बर साहित्य परसे उदत की गई है
कि उस
वलाजिनकी संख्या ६..के करीब है। यह प्रन्थ नागपुर महा- भर परम्पराकी तरह दिगम्बर परम्परामें भी दो मान्यताएं विद्यालयके बी.ए. और एम.ए. कोर्ष में दाखिल हो
होनेकी कल्पना की है। जबकि दिगम्बर परम्परामें मर्वत्र
। गया है, यह प्रसनताकी बात है। इस ग्रन्थको १४ पेजकी
एक मान्यताका ही उल्लेख पाया जाता है। डा० साहबने प्रस्तावनामें जैनधर्म, साहित्य और सिद्धान्तक सम्बन्धम
दिगम्बर हरिवंश पुराणके ६६ पर्वके 5वें पचसे पूर्वके अच्छा प्रकाश डाला गया है और विषयको बड़े ही रांचक
पच तथा उक पचसे भागे पचको छोड़ कर 'यशोदयायां रंगसे रखनेका प्रयत्न किया गया है। प्रधका हिन्दी अनुवाद
सुतबा यशोदया पवित्रया वीर-विवाह मगलं' नामक मूलानुगामी है और बाब्दकोष जिज्ञासु विद्यार्थियों के लिये
नवचमे निहित 'वीर विवाहमंगलं' वाक्यमे भगवान बदा ही उपयोगी है। पुस्तक पठनीय है। इसके लिए सम्पादक महोदय धम्यवादके पात्र है। प्राशा है डाक्टर
किया है। जबकि ग्रन्थमें राजा जिनात्रका परिचय देते साहब इसी प्रकारमं प्रम्य पठनक्रमकी नूतन सामग्री प्रस्तुत
हुए भगवान महावीरके विवाह सम्बन्धमें चलने वाली इस
चर्चाका उल्लेख मात्र किया गया है, और निम्न में २सलोना मच-खम्बक महात्मा भगवानदीन जी, पचमें भगवान महावीरके तपमें स्थित होने तथा केवल प्रकाशक भारत मेंन महामण्डल वर्धा, पृष्ठ संख्या ४२ ज्ञान प्राप्त करने की बात कही गई हैं वह पूरा पच इस मुख्य इस पाने इस पुस्तकमे बालकांक मनोवैज्ञानिक दिलों पर किमी
स्थितेऽथनार्थ तपसि स्वयं भुविप्रजातकैवल्पविशाबांचने। प्रकारका बोझ न लादते हुए मायके सम्बन्धमें 10 कहानियाँ रोचक रंगसं लिखी गई है। उन्हें पढ़कर बालक- जग
जर्गाद्वभूत्यै विहरयपि हिति तिति विहायस्थितांस्तपस्वयं । बालिकाएं सबकं स्वरूपको समयनेमे बहुत कुछ सान अतः प्रन्यका पूर्वापर सम्बन्ध देखते हुए हा. हो सकेंगे। कहानी बड़ी सुन्दर है, उनकी भाषा, भाव साहबका उक नतीजा निकालना किसी तरह भी सय नया विवाद हैं। महात्माजी स्वभावतः बाब- संगत नहीं कहा जा सकता। पुस्तक लिखनेका रंग शिक, उबालकोंकी शिक्षासे प्रेम है। बड़े से रोचक है।
परमानन्द जैन