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अनेकान्त
[किरण १
गणधरकीतिंने अपनी यह रीका विक्रम संवत् ११८९ तदाम्नाये सदाचार क्षेत्रपालीयगोत्रके। में चैत्र शक्ला पंचमी रविवारके दिन गुजरातके चालुक्य- मुनामपुर वास्तव्ये खंडेलान्वयके जनि ॥६॥ वंशीय राजा जयसिंह या सिद्धराज जयसिंहके राज्य- मंधाधिपति कल्हूकः श्रावको व्रतपालकः । कालमें बनाकर समाप्तकी ६-जैसाकि उसके निम्न पयोंसे । राणी संज्ञा भवत्पुण्यो तज्जनी शीलशालिनी '७॥
चत्वारो नंदना जातास्तयोनंदित मज्जनाः। एकादशशताकीर्णे नवाशीत्युत्तरे परे।
तेष्वाद्यः संघनाथो भूतहवा नामा महामनाः॥८॥ संवत्सरे शुभे योगे पुप्पनक्षत्रसंज्ञके ॥१७॥
धीरोभिधो द्वितीयोतः संघवात्सल्य कारकः। चैत्रमासे सिते पक्षेऽथ पंचम्यां रवौ दिने।
सर्वज्ञचराणम्भोज चंचरीको पमोऽसमः ॥ सिद्धा मिद्धप्रदाटीका गणभृत्कोर्तिविपश्चितः ॥८॥ निस्त्रंशतजितागति विजयश्री विराजनि ।
कामा नामा तृतीयोभूयाविव्रतधारकः । जबसिंहदेव सौराज्ये सज्जनानन्दायनि ॥१६॥ माधुः सुरपति म चतुर्थस्तु प्रियंवदः ॥१०॥
जयसिंहदेवका राज्य सं० १९१० से ११६ तक वहां तत्र संघेश धीराख्य भार्याजाता मनोरमा । रहा है। अतः संवत् १११ में वहां गणधरकीर्ति द्वारा
धनश्रीः कान्ति सम्पन्ना शीलनीरतरंगिणी ॥११॥ टीकाके रचे जानेमें कोई बाधा नहीं पाती।
लध्वो बहुकनि ख्याता साध्वीरूपगुणाश्रिता। नोट:-यह अन्य संस्कृत टीका और हिन्दी अनु
एतयोः परमा प्रीती रति प्रीत्यो रिवाभवत् ॥१२॥ वादके साथ वीरसेवामन्दिरसं जल्द ही
एतन्मध्ये धनश्रीर्या श्राविका परमा तया । प्रकाशित होगा। देहली, २५-५.५३.
लिखापितमिद शास्त्रं निजाज्ञान-तमो हतौ ॥१३॥
पूर्जायत्वा पुनर्भक्तथा पठनाय समर्पितं । श्रीहिसागभिधे रम्ये नगरे ऊन संकुजे ।
मेहाख्याय सुशास्त्रज्ञ पंडिताय सुमेधसे ॥१४॥ राज्ये कुतुबखानस्य वर्तमानेन पावने ॥६॥
ज्ञानी स्याद् ज्ञानदानेन निर्धारभयतो जनः । अथ श्री मूलमंधेरिमन्ननघे मुनिकुंजरः।
आहारदानतस्तृप्तो नियाधिर्मेषजात्सदा ॥१५॥ सूरिः श्री शुभमन्द्राख्यः पदमनंदि पदस्थितः ॥४॥ यावद्वयोम्नि शशांक नौ भूतो मेरु वारिधी। सत्पजिनचन्द्राभूत्स्याद्वादांबुधि चन्द्रमाः।
तावत्पुस्तकमेतद्धि नंदताज्जिनशासने ।।१६॥ तदन्तेवासि मेहाख्यः पंडितो गुणमंडितः ।।५।।
अध्यात्मतरंगिणी लेखक प्रशस्ति
सूचना अनेकान्त जैन समाजका साहित्य और ऐतिहा- लायेंगी । पोस्टेज रजिस्ट्री खर्च अलग देना होगा। सिक पत्र है । उसका एक एक अंक संग्रह की वस्तु दो करनेसे फिर फाइलें प्रयत्न करने पर भी प्राप्त न है। उसके खोजपूर्ण लेख पढ़ने की वस्तु है । अने. होंगी। अतः तुरन्त आर्डर दो जये। कान्त वष ४ से ११ वें वर्ष तक की कुछ फाइलें अवशिष्ट हैं, जो प्रचारकी दृष्टिसे लागत मूल्यमें दी मैनेजर-'अनेकान्त'१ दरियागंज, देहली।