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किरा १२]
इस गुफा कुछ स्तम्भों पर पुरानी कनादीके कुछ लेख उत्कीर्ण हैं जिनका समय मन्य०० से ८५० तकका बतलाया जाता है। ३४वीं गुफाका बरामदा नष्ट हो गया है इसमें एक विशाल हाल है भीतों पर सुन्दर चित्रकारी अंकित है।
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इन गुफाओंकी पहाड़ीकी दूसरी ओर कुछ ऊपर जाकर एक मंदिर में भगवान पार्श्वनाथकी बहुत बड़ी मूर्ति है जो १६ फुट ऊँची है उसके आसन पर सं० ११५६ फागुन सुदि भीजका एक लेख भी अंकित है। जिसमें उन समय श्री व मानपुर निवासी रेगुगी पुत्र गेलुजी और पत्नी स्वर्णाले चक्रेश्वर आदि चार पुत्र थे, उसने चारणोंसे निवासित इस पहाडी पर पार्श्वनाथकी मूर्तिकी प्रतिष्ठा कराई।
छोटे कैलाम नामकी गुफामें जिसे जैनियोंकी पहली गुफा बतलाई जाती है । उसका हाल ३६ फुट चौकोर है इसमें १६ स्तम्भ है। कहा जाता है कि यहां खुदाई करने पर शक सम्वत ११६१ की कुछ मूर्तियां मिली थीं ।
एलोराकी गुफाओं मानव कदकी एक प्रतिमा अम्बिकाकी अंकित है, जो संभवतः नोमी दशवीं सदी की जान पड़ती है। उसके मस्तक पर श्राम्रवृत्तकी सघन छाया पड़ रही है। देवी की मुख्य मूर्तिके शिर पर एक छोटी सी पद्मासन प्रतिमा है जो भगवान नेमिनाथ की है। इस मूर्तिकी रचनामें शिल्पीने प्रकृतिके साथ जो सामंजस्य स्थापित करनेका प्रयत्न किया है, वह दर्शनीय है। देवीके हम रूपका टल्लेख ग्रन्थोंमें मिलता है ।
हमारी तीर्थयात्रा के संस्मरण
एलोरा चलकर हम लोगोंने जलगांव खरपूसंत वगैरह खरीदे और फिर अजन्ता पहुँचे, उस समय १ ॥ बज चुका था, धूप तेज पड रही थी। फिर भी हम लोगोंना की प्रसिद्ध उन बी गुफाओंको देखा। अजंगाकी गुफा बड़ी सुन्दर हैं, इनमें चित्रकारी अब भी सुन्दर रूपमें विद्यमान है। सरकार उनके संरक्षण में मावधान है। वहां पर बिजलीकी लाईट के प्रकाशमें हम लोगोंने उन चित्रोंको देखा, और घूम फिर कर सभी गुफाएँ देखीं, कुछ में सुधार हो रहा था और कुछ नई बन रही थीं। एक गुफा में बुद्धकेपरि निर्वाणकी 'मृत्यु अवस्थाकी' सुन्दर विशाल मूर्ति है। जिसे देखकर कुछ लोग शोकपूर्ण अवस्थामें हैं और कुछ हंस रहे * सव्येक पतियंकर सुतं प्रीत्यै करे वित दिव्याग्रस्तवकं शुभंकरकरशिलाप्टान्य हस्तांगुलीम् । सिंहे भर्तृश्वरे स्थितां हरितमामाखच्ायां । बन्या दशकामु कोच्छ्रयजनं देवीमा बजे
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हैं, यह दृश्य अंकित है, यहां बुद्धकी कुछ मूर्तियां ऐसी भी पाई जाती हैं जो पद्मासन जिनप्रतिमाके बिलकुल सहश हैं । जिन पर फण बना हुआ है। वह मूर्ति पार्श्वनाथ जैसी प्रतीत होती है। चित्रोंमें अधिकांश चित्र बुद्धके जीवनसे सम्बन्ध रखते हैं और अन्य घटनाओंके चित्र भी अंकित हैं उन सबको समझने के लिए काफी समय चाहिए। इनमें कई गुफाएं बड़ी सुन्दर और विशाल हैं। जो दर्शकको अपनी ओर आकृष्ट करती हैं। कुछ मूर्तियां भी चित्ताकर्षक धीर कलापूर्ण हैं।
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अजंता से चलकर पुनः जलगांव होते हुए हम लोग पाँच बजे शामको जामनेर आए, और यहां जल्दी ही भोजनादिकी व्यवस्था निमट कर यहांके श्वेताम्बर जैन सेट राजमलजी के बंगलेपर टहरे । रात्रि सानंद विताई और प्रातः जिन दर्शन पूजनकर आवश्यक क्रियाओस मुक्र होकर 11 बजेके करीब हम यहां धूलिया ओर रवाना हुए। और ला० राजकृष्णाजी सपरिवार और मुख्तार साहय तथा सेठ ददामीलालजी कौरह बुरहानपुर होते हुए मुनागिरकी तरफ चले गए ।
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हम लोग ४ बजेके करीब धूलिया पहुँचे और वहाँ शामका भोजन कर ६० मील 'मांगीतु ंगी' के दर्शनार्थ गए और रातको १ बजे करीब पहुॅचे। यहां दो पहाड़ है मांगी और तुंगी । निर्वाण काण्डकी निम्न गाथामें इसे सिद्ध क्षेत्र बतलाया है
रामहणू सुग्गीओ ग गयाक्खो व शीलमहणीलो । वणवदी कोडीओ मुंगीगिरिब्बुदे बंदे ॥
इस गाथामें इस क्षेत्रका नाम 'तु' गीगिर' सूचित किया है न कि मांगी तुरंगी । पूज्यपाद की संस्कृत निर्वाणभक्रिमें 'तु'ग्यां तु मंगतो बलभद्र नामा' वाक्यमें इसे तुरंगीगिर ही बतलाया है साथही उसमें बलभद्रको मुक्तिका विधान है प्राकृत गाथाकी तरह अन्यका कोई उल्लेख नहीं है। ऐसी स्थितिमें यह बात विचारणीय है कि इस पहाड़का नाम 'मांगी तुंगी' क्यों पदा ? जबकि मालसागरजीने बोधपादुरकी २० मं०की गाधाकी टीकामें तीर्थक्षेत्रों के नामोल्लेखमें 'ग्राभीरदेश तुरंगीगिरी' ऐसा उल्लेख किया है जिसमें तुरंगीगिरकी अवस्थिति श्राभीरदेशमें बतलाई है। बचभद्र ( रामचंद्र ) का कोट शिलापरकी केवलोत्पत्तिका उल्लेख तो मिलता है, परंतु निर्वाणका उल्लेख अभीतक मेरे देखनेमें नहीं आया। इस क्षेत्रका मांगीतु गीनाम कब पड़ा यह अभी विचारणीय है। मांगी पर्वतकी शिखर पर चढ़ते हुए मध्यमे सीताका स्थान बना दिया है, जहां पर सीताक