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________________ अनेकान्त [किरण १२ इस राजाकी एक प्रशस्ति भी मिली है। जिसकी वासनक बिना ऊँचाई १५ फुटके लगभग है जो अब इसके बाद हम लोग जैन गुफाओंको देखने के लिए गए। गिर गया है। एक सुन्दर स्तम्भ२७फुटकी ऊँचाईको लिए हुए नगुफाएँ उन कैलाशमन्दिरसे उत्तरकी ओर दो मीलके है, उसके ऊपर चतुर्मुख प्रतिमाविराजमान थी जो अब धरा•शब दूर होंगी। बाहर लारी, स्टेशनबैंगन और कार आदि शायी हो गई है। यहां 4 अन्यत्र कमरके भीतर बेदी पर खडी करके हमलोग अन्य गुफाओंको देखते हुए नं.३० की चारों दिशाओं में भगवान महावीरकी प्रतिमाएँ उत्कीर्णित हैं गुपामें पहुंचे। उससे बगलवाली गुफा नं० २६ भी जैन ही दूसरे कमरमें भगवान महावीरकी मूर्ति सिहासन पर विराजजानपड़ती है क्योंकि उसमें ऐसे कोई चिन्ह विशेष नहीं मान है, उनके सामने धर्मचक्र भी बना हुआ है। इसीमें आन पदे जिनसे उसे जैन गुफा होनेसे इन्कार किया पिछली दीवालके सहारे इन्द्रकी एक मूर्ति बनी हुई है। जासके। नं. ३० से ३४ तक की सभी गुफाएँ जैन हैं। उससे पश्चिमकी और इन्द्राणीकी सुन्दर मृति अंकित है, ये गुफाएँ बहुत ही विस्तृत और सुन्दर हैं, इनमें मनोहर वह श्रासन पर बैठी हुई है और अनेक आभूषणोंस अलंकृत दि. जैन प्रतिमाएं विराजमान हैं। इनके तोरणद्वार, स्तम्भ है। यहांसे ही अन्य छोटे-छोटे कमरों में जाना होता है, महराव तथा छतें बड़ी ही सुन्दर बनी हुई हैं जिनमें शिल्प- जिनमें भी तीर्थकर मूर्तियाँ अंकित हैं। कलाका अनुपमकार्य दिखलाया गया है। इन गुफाओं में इन्द्रमभाक पश्चिम मध्यके कमरेमें दक्षिण दीवाल पर 4.३३ की 'इन्द्रसभा' नामकी गुफा कैलाशगुफाके समान श्रीपार्श्वनाथकी मूर्ति अंकित है और सामने गोम्मटेश्वर हैं। ही मध्यमें दो खन की है। यह एक विशाल मन्दिर है जो दीवालके पीछे इन्द्र इन्द्राणी और मन्दिरके भीतर भगवान पहारको काटकर बनाया गया है। इसमें प्रवेश करते ही महावीरकी मूर्ति मिहामन पर विराजमान है, तथा नीची बोटी सी गुफामें रंगविरंगी चित्रकलाकी छायामात्र अवशिष्ट हाल में प्रवेश करते ही मामने बरामदेक बाई ओर दो बड़ा है। कहा जाता है कि वहां ततइयोंने छत्ता लगा लिया था, मूर्तियां अवस्थित हैं। जिनमें एक मूनि मोलहवें तीर्थकर उन्हें उड़ानेके लिए आग जलाई गई, जिससे चित्रकलामें शांतिनाथ की है, जिस पर पाठवीं नौवीं शताब्दी अक्षरों में कालिमा श्रा गई है। और भी छोटी गुफाएँ है। गुफाका 'श्री माहिल ब्रह्मचारिणा शान्तिभट्टारक प्रतिमयार' नाम मुंह दक्षिणकी ओर है। सभाके बाहर एक छोटापा कमरा का लेंग्व उकाणित है. जिसमे मान्नम होता है कि शांतिनाथभी है। यह इन्द्र सभा दो भागोंमें विभक है । उसका एक की इस मूर्तिका निर्माण ब्रह्मचारी मोहिलन किया है । इसक भाग इन्द्रगुफा और दूसरा भाग जगन्नाथगुफाके नामसे श्रागे एक मन्दिर और है जिसमें एक स्तम्भ है जिसपर उल्लेखित किया जाता है। 'श्रीनागवर्पकृता प्रतिमा' लिग्या हुआ है। इन्द्रगुफाका विशाल मण्डप चार विशालस्तम्भों पर दूसरी जगन्नाथ गुफा, जो इन्द्रसभाक समीप है। इसकी अवस्थित है। सभा मंडपकी उत्तरीय दीवारके किनारे पर रचना प्रायः विनष्ट हो चुकी है। नीचंकी और इसमें एक भगवान पार्श्वनाथकी विशाल दि. जैन प्रतिमा विराजमान है. कमरा है जिसकी ऊँचाई १३ फुटक लगभग होगी, उसकी उनके शीशपर ससफणवाला मुकुट शोभायमान है। इसीके छत चार स्तम्भों पर अवस्थित है। सामने एक बरामदा है दक्षिण पार्श्व में ध्यानस्थ बाहुबलीकी एक सुन्दर खड्गासन और भीत पर दो चोकोर स्तम्भ हैं, दो स्तम्भ बरामदे से मूर्ति विराजमान है, माधवी लताएँ जिनके शरीर पर चढ़ रही कमरेको अलग करते हैं जिसमें दो वेदियों बनी हुई हैं बाई हैं और भक्तजन पूजन कर रहे हैं । परन्तु मूर्ति परम ध्यान ओर भगवान पार्श्वनाथ सप्तफण और चमरेन्द्रादि सहित की गम्भीर प्राकृतिको लिए हुए है, और उसकी निश्चल विराजमान हैं : और दहिनी ओर श्री गोम्मटस्वामी हैं। एवं निरीहवृत्ति दर्शकके मनको आकृष्ट करती हुई मानों अन्यत्र ६ पभासन तीर्थकरमूर्तियाँ उ कीर्णित हैं । बरामदेमें जगतकी आसार वृत्तिका अभिव्यंजन कर रही है। सभाके बाई तरफ इन्द्र और दाहिनी ओर इन्द्राणी है । इसके बादकमरेकी लम्बाई दक्षिण उत्तर ५६ फुट और पूर्व पश्चिममें के एक कमरेमें पद्मासनस्थ भगवान महावीरकी मूर्तिहै । जग15 फुटके करीब है। इसमें दाहिनी ओर एक हाथी है बाथसभाके बाई ओर एक छोटा सा हाल है, उसमें एक कोठरी बायस है जिसके बाहं तरफ पासकी गुफामें जानेका मार्ग है। इस सभा.देखो, एपिग्राफिया हरिखका भाग ५ पृष्ठ ११५ की दूसरी ओर दो छोटे मंदिर हैं जिनमें चित्रकारी अंकित है।
SR No.538012
Book TitleAnekant 1954 Book 12 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1954
Total Pages452
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size27 MB
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