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किरण १२ ]
हमारी तीर्थयात्रा संस्मरण
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सारे देशके लिये लागू करना चाहिये इसके लिये निम्न- उन प्रान्तोंकी भाषा साहित्यके लिये खर्च होगी। मध्यखिखित सुझाव हैं।
प्रदेश सरीखे प्रांतों में जहां हिन्दी और मराठी दो भाषाएँ है (1) प्रत्येक प्रांतकी सरकार इस योजनाके लिये एक- वहाँ हिन्दी को १० फीसदी बो मिलेगा, साथ ही..
एक लाख रुपया दे। और छोटे प्रान्त पचास-पचास फीसदी से भाधा, १५ फीसदी भाग और भी मिलेगा। हजार रुपये दे। भोपाल अमेर प्रादि और भी कोटे (४) हर एक भाषा साहित्यकी जांच उस भाषाके क्षेत्र में प्रान्त और भी कम दें। एक लाख रुपया केन्द्रीय ही हो। और हिन्दी साहित्यकी जांचका केन्द्र केन्दीय सरकार दे।
सरकारका स्थान हो। (१२) इस रकमका चालीस प्रतिशत माग पुरस्कारके लिये (1) इस योजनाकी सफलता इस बात पर निर्भर है कि और ६० प्रतिशत भाग पुस्तक खरीदने के लिये रक्खा
निरीक्षक लोग या अधिकारी लोग बिलकुल निष्पक्ष जाय।
हो । भाई भतीजावाद रिश्वतखोरी या सिफारिशका ३३ केन्द्रीय सरकारकी रकम प्राधी हिन्दीके लिये और
जोर इसमें घुमा कि योजना बरबाद हई। सिई माधी अन्य सभी प्रान्तीय भाषाओंके लिये खर्च हो
साहित्यको रप्टिसे ही यह जांच होनी चाहिये । लेखकऔर प्रान्तीय सरकारकी रकम दस फीसदी हिन्दी
का व्यक्तित्व उसके विचार या दन, या लेखक प्रकाऔर • फीसदी प्रान्तीय भाषाके साहित्यके लिए
शाकके वैयक्तिक सम्बन्धोंका विचार उसमें न माणा सई की जाय।
चाहिये। इस हिसाबसे जिन प्रान्तोंकी भाषा हिन्दी है उनकी साहित्य पुरस्कारकी योजनाओंसे हमें अच्छे साहित्यका तो सब रकम हिन्दी साहित्यके लिये ही जायगी । पर निर्माण करना है, उसका प्रचार कराना है और लेखकोंको जिन प्रान्तांकी भाषा दूसरी है उनकी रकम है. फोसदी यथाशक्य आर्थिक न्याय देना है। -मंगम' से
हमारी तीर्थयात्राके संस्मरण
( गत किरण १० से आगे) (पं० परमानन्द जैन शास्त्री)
औरंगाबादसे ५ बजे चल कर हमलोग 'एलोरा' तब देखने पर ऐसा जान पड़ा कि हम लोग दिव्य लोकमें आये। पलोग एक प्राचीन स्थान है। इसका प्राचीन नाम मा गए । पहाड़को काटकर पोला कर दिया गया है । गुफाओं'इलापुर' या एलापुर था। अाजकल यहां पर 'एलापुर' नाम- में अन्धेरा नहीं है, पर्वतके छोटेसे दरवाजेके अन्दर आलीशान का छोटा सा गांव है । यह राष्ट्रकूट राजाओंका प्रमुख नगर महल और मन्दिर बने हुए हैं। उनमें शिल्प तथा चित्रण रहा है। उस समय उसका वैभव अपनी पराकाष्ठा पर पहुंचा कलाके नमूने दर्शनीय हैं। एक ही पाषाण-स्तम्भ पर हजारों हा था । इस स्थानकी सबसे बड़ी विशेषता यह है यहां मन वजन वाला पाषाणमय उत्तुगगिरि अवस्थित है। कहा पर जन यौद्ध और हिन्दुओंकी प्राचीन संस्कृतियोंकी कलापूर्ण जाता है कि इस कैलाश भवन (शिव मंदिर को राष्ट्रकूट अनूठी कृतियां पाई जाती हैं, जिन्हें देखकर दर्शकका चित्त राजा कृष्णराज (प्रथम) ने बनवाया था। यह राजा शिवका भानन्द-विभोर हो उठता है, और वह अपने पूर्वजोंकी गौरव- भक्र था। इसने और भी अनेक मन्दिर बनवाए थे, पर उन गरिमाका उत्प्रेक्षण करता हुआ नहीं थकता।
सबमें उन कैलाश मन्दिर ही अपनी कलात्मक कारीगरीके सबसे पहले हमलोग कैलाशमन्दिरके द्वारसे भीवर धुसे, लिये प्रसिद्ध है। शक सम्बत् ११४ (वि० सं० २६) की