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________________ ३८.] अनेकान्त [किरण १२ भक्तिभावसे अर्ध चढ़ाया जाता है । समझमें नहीं आता कि रेवा तडम्मि तीरे सम्भवणाहस्स केवलुप्पत्ति । भक जनतामें इस प्रकारकी नई रूदी कहां से प्रचलित हुई। मांगी पाहुद्दय कोडीओ णिवाणगया णमो तेमि ॥ शिखरमें अनेक गुफाएँ और तीन सौ से ऊपर प्रतिमाएं और संस्कृत सिद्धभक्रिमें भी 'वरसिद्धकूटे' नामसे उल्नेग्व चरण हैं। यहां अनेक साधुओं और भहारकोंकी भी मूर्तियाँ मिलता है। ब्रह्म श्रुतसागरने भी सिद्धवरकूटका उल्लंग्य किया उत्कोर्णित हैं जिनके पास पीछी और कमण्डलु भी उत्कीर्णित है। यह मोरटक्का स्टेशनसे ७ मोल बडवाहसे ६ मील और है। और पास हीमें उनके नाम भी अंकित हैं। जिनमें भट्टा- सनावदसे पाठ मील दूर है । सिद्धवरकूटको जानेके लिए रक सकल कीर्ति, और शुभचन्द्रादिके नाम स्पष्ट पढ़े जाते नर्वदा नदीको पार करना पड़ता है। धर्मशालाओं में ठहरनेहैं। एक शिलालेखमें संवत् १४४३ भी अंकित था। यहांपर की उचित व्यवस्था है। प्राचीन मंदिर जीर्ण हो जानेसे सं.१९शिलालेख नोट करनेकी इच्छा थी, परन्तु जल्दोके कारण नोट ५१ माघवदी १५ को जीर्णोद्धार कराया गया है। तीनों नहीं कर सका। इससे पुराने कोई उल्लेख मेरे देखनेमें नहीं मन्दिरोमें सम्भवनाथ चन्द्रप्रभ और पाश्र्वनाथकी प्रतिमाएँ भाग, और न राम हनुमानादिकी तपश्चर्यादिके कोई प्राचीन मूलनायकके रूपमें विराजमान हैं। सिद्धवरकूटका प्राचीन स्थल उल्लेख ही अवलोकनमें पाये । कहां था यह अभी विचारणीय है पर सिद्धवरकूट नामका एक तुगीगिर बलभद्रका मुक्तिस्थान माना जाता है। इसमें तीर्थ नर्वदानदीक किनारे अवश्य था। यह वही है इसे अन्य २-३ गुफाएँ उत्कीणित हैं। मूलनायकककी प्रतिमा चन्द्रप्रभ प्राचीन प्रमाणोंक द्वारा सिद्ध करनेकी आवश्यकता है। नवीन वर्तमान क्षेत्रका प्राचीन क्षेत्रसे क्या कुछ सम्बन्ध रहा है, चारों ओर उत्कीर्ण की हुई हैं। सामने पानीका एक कुण्ड इस बातका भी अन्वेषण होना आवश्यक है। मिद्धवरकूटस भी है। इसकी चढ़ाई बहुन कठिन थी, जरा फिसले कि हम पुनः इन्दौर पाए। जीवन खतरेसे खाली नहीं था। सेठ ग़जराजजी गंगवालके जानी वा इन्दौर होलकर स्टेटकी राजधानी है। शहर अच्छा है. सत् प्रयत्नसे वहां मीदियोंका निर्माण किया जारहा है। यहाँ जनियोंकी अच्छी वस्ती है । पर सेठ मचन्द्रजीका निवासस्थान है। जंबरीबागमें पार्श्वनाथ चैत्यालय है मयानीचे मन्दिर व धर्मशालाएँ हैं जिनमें यात्रियोंके ठहरने की व्यवस्था है। पासही में एक नदी बहती है। मांगी-तुगी गिता गंजमें पंचायती मन्दिर और गेंदालालजी ट्रस्टका मंदिर है। पलासिया आगरा यम्बट रोड पर से चल कर धूलिया पुनः वापिस पाए । और ५ बजे चलकर शरामल मो.नीलालजीका चल्यालय है । तुकागजमें उदासीन याश्रम, मउ छावनी होते हुए १ बजे के करीब दुपहरको इंदौर आए। इन्द्रभवन चन्यालय, शान्तिनाथ जिनालग, अनूप भवनऔर सर सेठ हुकमचन्द्रजीकी धर्मशाला जंबरी बागमें ठहरे। जहां पर अगले दिन सवेरे ला० राजकृष्णजी और मुरू ारसाहब चैत्यालय, तिलोकभवन चैत्यालय और कमलविध चैत्यालय है। स्नहजतागंजमें-शंकरलालजी वाशलीवाल का चन्यामुनागिरक ५१ मन्दिरों तथा सिद्ध वरकूटक मन्दिरोंकी यात्रा करते हुए इंदौरमें आये और हम लोग इंदौरसे ५६ मील लय है। परदेशीपुरम गुलाबचन्द्रजीका चैत्यालय, राजा वाडामें मानिकचौकमन्दिर, नरसिंहपुरा मन्दिर, शक्कर सिद्धवरकूटको यात्रार्थ पाए। निर्वाणकांडकी गाथामें उमः। उल्लेख निम्नप्रकार है: बाजारमं मारवाड़ी गोठका आदिनाथ जिनालय है, इस मंदिर में अच्छा शास्त्र भंडार है। तेरापंथी मंदिर और चिमनराम रेवा गइए तीर पच्छिमभायम्मि सिद्धवरकूटे । जुहारुमलजीका पार्श्वनाथ जिनालय है। और दातवारिया दो चक्की दहकप्पे पाहुट्टयकोडि णिच्युदे वंदे॥ बाजारमें शान्तिमाथ भगवानका वह प्रसिद्ध कांचका मन्दिर है, परन्तु कुछ अन्य प्रतियोंमें उन गाथाकी बजाय निम्न दो जिस दखनेक लिये विविध देशांक व्याक प्रतिवर्ष श्राया करत गाया उपलब्ध होती हैं जिनमें द्वितीय गाथा पूर्वार्धमें संभव- हैं। यह मन्दिर अपनी कलाकं लिए प्रसिद्ध है | मल्हारगंजमायकी केवलुप्पुत्तिका उल्लेख किया गया है जो अन्यत्र उप- में रामासाका प्राचीन मन्दिर है। संभवनाथका एक चैत्यालय बन्ध नहीं होता वीस पंथियोंका है और मोदीजीकी नशियां इस तरह इंदौररेवा तम्मितीरे दक्खिणभायम्मि सिद्धवरकूटे । का यह स्थान व्यापारका केन्द्र होते हुए भी धार्मिकताका पाहुदय कोडीओ णिवाणगया यमो तसि ॥ केन्द्र बना हुआ है।
SR No.538012
Book TitleAnekant 1954 Book 12 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1954
Total Pages452
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size27 MB
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