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________________ किरण १२] श्रमण बलिदान [३६७ पागा खड़ी थी। उसे देखनेसे मालूम पदने बगा मानो हजारों युक्त सरोवरमें जल क्रीडाकर गाने बजानेके साथ साथ कलाविज्ञों एवं रसिकोंको पागज बना रही है। उसकी भानन्दसे दिन बीतता था । वहाँ मृग - जाति भी मेखरूपखावण्यता ने अश्रद्धय इस गुफाको अदा करने योग्य मिलापके साथ रहती थी। तत्र स्थित पालिकाएं सरोवरमें बना दिया है। वहाँ के सारे चित्रोंमें वह शिखर समान नहा-नहाकर उसमें खेलने वाले मत्स्यों के साथ क्रीडा किया दीख पड़ती थी मेरे पास तो वह उस समय सजीव करती थी। चित्रवत खड़ी थी। वह रूपवती बीच में मुमासे पूछने लगी-'मापने उस वह कहने खगी-'चित्रमें मुझे देखनेके बाद सब गुफाके ऊपर चित्रित कमनीय कमलकुल-विकसित सरोवर गुन लेखकोंके समान माप भी एक प्रेम की कथा लिखने वाले को देखा?"...। मैंने सिर हिलाकर 'हो' भरी। हैं ना और इस प्रकार कहतो हुई जीवित चित्रवत् वहीं फिर कहने लगी-इस प्रानन्दमय जीवनके समय विराजमान हो गई। सहसा मथुरा (मदुरा) से एक समाचार प्राया, जहाँ उस आजतक नहीं देखी गई, इस रूप सौंदर्य राशिके समय "कृनपाण्य" नामक राजा राज्य करता था। वह सामने में कुछ भी बोल नहीं सका । मेरा म बन्द रहने जनमतावलम्बी था। परन्तु उसकी साध्वी रानी मंगके कारण वह खुद ही बोलने लगी। यक्करसि और प्रधान अमात्य 'कुलरिचरै नायनार' वह यों कहने लगी-सच्ची कथा लिखिये । कृपाकर दोनों शैवमतानुयायी थे। एक 'ज्ञानसम्बन्ध' नामका शैव मेरे लिये ही वास्तविक कथा लिखनेका प्रयत्न कीजिये। ब्राह्मण रानीके द्वारा बुलाया गया और राजाको शैव सचाईको बताने में हिचकिचानेके कारण ही माज अपनी बनानेका दोनों (गनी और अमान्य) षडयन्त्र रचने लगे। श्रमण एवं शेव समय वादियोंके संघर्षका समाचार सारी तमिलनांद पतित होती जा रही है। प्रान्तकी बात रहने दिशाओंमें गूंज उठा । सारी गुफाओं में बसनेवाले श्रमणगण बो; मेरा दिल भी सैकड़ों वर्षोंसे रोता हुआ पा रहा है। एकदम मथुरा में एकत्रित हो गये। उस समय 'सित्ता मेरे रूपको देखकर चकित होने वाले मेरी अन्तरात्माको वासन'लोग भी चल पड़े। पहचान नहीं सकते...।' चित्रस्थित कमनीय कामिनी, कान्त, पिता, माता, वह रूप लावण्यकी पुतली रो रोकर अपनी भाखोंसे भ्राता भी खुद चल पड़े हहा एक प्रेमकी कथा कहना मोतिषोंकी माता गूंधने लगी । वह दृश्य मेरे दिलको भूल गया। चित्र में चित्रित सुन्दरीका प्रमी एक नौजबहुतही खटकने लगा उसके रक्तमे सिंचित दिलके साथ जक साथ वान था। वह दो विषयांम पागल था-एक तो स रूपउसके ही द्वारा कही हुई शोकपूर्ण कथाको मैं आपके रानीके लावण्यमे और दूसरे चित्रकलामें । उस प्रेमीने सम्मुख चित्रित करता हूँ। उन दोनोंके मम्मिश्रण (रूप और कला) उस पत्थरमें वह कथा यह है कि-उस छोटे पहाड़के नजदीक इस महिनाको चित्रित किया होगा। वह कामिनो उसके बहुतमी गृहस्थियाँ बसती थीं। कुछ लोग खेती करते थे, प्रमीके हाथसे ही निर्मापित की गया होगो । वशंकि यह कुछ कपड़े बुनते थे और कुछ आस-पासके पत्ते, फल, रूपवती प्रा. भी उमकी याद का प्रतिबिब बनकर चमक और मूल भादिसे लोगोंकी दवादारू किया करते थे। रही है। 'हमारे मतके अन्दर भाजीविकाके साथ उच्चनीचताका दक्षिण) मथुरामें कोलाहल मच गया। 'पारख्यभेद भाव नहीं समझा जाता, और जन्मना भी भेद-भाव राजाके पेट में सहसा असह्य वेदना होने लगी। एक तरफ नहीं है। नीच जाति वाले भी हमारी श्रमण (जैन) जाति ज्ञान-सम्बन्ध (शव बाह्मण खड़ा था और दूसरी तरफ के द्वारा सच्चा रास्ता पहचान कर अपनी उन्नति कर श्रमण-गग (जैन माधु)। सकते हैं। सबके लिये हमारे यहाँ द्वार खुला हुभा है। मैंने कहा-क्यों श्रमण-साधु बाँसे राजा की बीमारी सब लोग पाइये ! उठकर भाइये !! दोरकर आइये !!!" हटायो नहीं गयी। सम्बन्ध (शैव माझण) ने ही उसे इस तरह कुछ लोग प्रचार करते थे। निवारण किया। वहाँ का जीवन कलामय नन्दनवन बना था। कमल- रमणी बोल उठो-'सम्बन्धने ही राजा की बीमारी
SR No.538012
Book TitleAnekant 1954 Book 12 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1954
Total Pages452
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size27 MB
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