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किरण १२]
मूलाचारको कुन्दकुन्द के अन्य प्रन्यांके साथ समता
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उपरके उबरणोंमें नाम मात्रका ही साधारण सा शब्द- नं. १२५ से ११३ तक कितनी समता रखती हैं यह भेद है इनकी शब्द-समता दोनों प्रन्योंके एककतृत्वको पाठकोंको मिलान करने पर ही ज्ञात होगा । मेव केवल पुष्ट करती है।
इतना ही है कि इन गाथानोंका उत्तराई एकसा होनेसे इसके अतिरिक्त मूलाचारका द्वादशानुमेधा नामक मूलाचारमें दो गाथाघोंके पश्चात् पुनः लिखा नहीं गया पाठवां अधिकार तो कुन्तकुन्द-कृत 'बारस अणुक्खा ' है। जबकि नियमसारकी प्रत्येक गाथामें वह दिया हुमा नामक प्रग्यके साथ शब्द और अर्थकी रष्टिसे कितना है।गाथानोंकी यह एकरूपता और समझा भास्मिक साम्य रखता है, यह पाठकोंको स्वयं पड़ने पर ही विदित नहीं है। इस प्रकरण की जो गाथाएँ एकसे दूसरेमें मित्र हो सकेगा । बहुभाग गाथाएं दोनोंकी एक हैं। भेद केवल पाई जाती है. वे भिन्न होने पर भी अपनी रचना-समतासे इतना ही है कि एकमें यदि किसी अनुप्रचाका संक्षेपसे एक-कर्तृत्वकी सूचना दे रही हैं। वर्णन है, तो दूसरेमें उसीका कुछ विस्तारसे वर्णन है। गाथा-साम्य-तालिका वाकी मंगलाचरणा और अनुवाओंके नामोंका एक ही कम है, जो कुन्दकुन्दको खास विशेषता है । इस प्रकरणके
मूलाचारकी जो पाथाएँ कुन्दकुन्दके अन्य प्रन्यों में ज्यों अवतरयोंको लेखके विस्तार भयस नहीं दिया जारहा है।
की त्यों पाई जाती है, उनकी सूची इस प्रकार है :मूलाचार और नियमसार
मूलाचा. गा.नं. कुन्दकुन्दके अन्य ग्रन्थ गाथा, नं. मूलाचारके विषयका नियममारके माय कितना सारश्य १२,१५५,५६ नियमसार १२,६५,६६१.. ६ यह दोनाके साथ-साथ अध्ययन करने पर हो विदित हो ४७,४८,३६,४२ " १०१,१०२,१०३१.५, सकेगा। यहाँ दो-एक प्रकरणोंकी समता दिखाई जाती है।
२०.
चरित्रपाहुर (१) मूलाचारके प्रथम अधिकारमें जिस प्रकार और जिन
समयसार शब्दोंमें पांच महावत और पाँच समितियोंका वर्णन किया
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बारसमणुपेक्खा मया है, ठीक उसी प्रकार और उन्हीं शब्दोंमें नियमसार
पंचाम्तिकाय के भीतर भी वर्णन पाया जाता है। यही नहीं, बल्कि कुछ
३१२ नियमसार गाथाएँ तो ज्यो की त्यो मिलती हैं। इसके लिए मूलाचारके प्रथम अधिकारकी गा०म०५ से १५ तकके साथ नियमसारकी गा.नं.१६ से ६५ तकका मिलान करना
बारसमणुपंक्वा " चाहिए।
७०१,७०२७०६ (0) दोनों ही प्रन्यों में तीनों गुप्नियोंका स्वरूप एक
८४१ दर्शनपाहुड मा ही पाया जाता है। यहाँ तक कि दोनाकी गाथायें भी
पंचास्तिकाय एक हैं। ( देखिए नियमसार गा. नं० १९-७० और
बांधपाहुए मूलाचार गा० नं. ३३२-३३३)
10 (३) दोनों ही प्रन्योंकी जो गाथाएँ शब्दशः समान
जिस प्रकार मूलाचारको कुन्नकुन्दके अन्य प्रन्योंके हैं, उनकी तालिका पृथक् गाथा-समता-सूची में दी गई है। उसके अतिरिक्त भनेक गाथानों में अर्ध-समता भी पाई
साथ मगलाचरण, प्रतिक्षा विषय प्रादिके साथ समता
पाई जाती है, उसी प्रकार मूलाचार-गन अधिकारोंके जाती है। लेख-विस्तारके भयसे उन्हें यहाँ नहीं दिया
अम्नमें जो उपसंहार वाक्य हैं वे भी कुन्दकुन्दके अन्य जा रहा है।
अन्योंके उपसंहार वायोंसे मिलते जुलते हैं। उदाहरणके (४) मूलाचारके पडावश्यकाधिकारको 'विरदो सम्व
तौर पर कुछ उद्धरण नीचे दिए जाते है:सावज' (गा.. २३) से लेकर 'जो दुधम्म च सुक्क
(गा..३२)तकको गाभार नियमसारकी गा. वालिकाके अंक हिंदी मूलाचारके अनुमार दिए गये हैं।
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