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________________ ३५४] अनेकान्त [किरण ११ बंकेयकी धर्मपत्नी विजया बड़ी विदुषी रही। इसने बगल में उन्नत एवं विशाल मैदानमें एक ध्वंवसावशिष्ट संस्कृतमें एक काव्य रचा है। इस काव्यका एक पद्य पुराना किला है। इस किलेके अंदर १२ एकड़ जमीन श्रीमान वेंकटेश भीमराव आलूर, बी० ए०, एल० एल० है। यह किला बम्बई सरकारके वशमें है। यहाँ पर इस बी० ने 'कर्नाटकगतवैभव' नामक अपनी सुन्दर रचना समय सरकारने एक डेरी फार्म खोल रखा है। जहाँमें उदाहरणके रूपमें उद्धत किया है। तहाँ खेती भी होती है । राजमहलका स्थान ऊँचा है _____ बंकेयके सुयोग्य पुत्र लोकादित्यमें भी पूज्य पिता- और इसके चारों ओर विशाल मैदान है । यह मैदान के समान धर्म-प्रेमका होना सर्वथा स्वाभाविक ही है। इन दिनों में खेतोंके रूप में दृष्टिगोचर होता है। इन साथ ही साथ लोकादित्य पर 'उत्तर पुराण' के रच- विशाल खेतोंमें आजकल ज्वार, बाजरा, ऊख, गेहूँ, यिता श्री गुणभद्राचार्यका प्रभाव भी पर्याप्त था। इसमें चावल, उड़द, मूग, चना, तुबर, कपास और मूंगसंदेह नहीं हैं कि धर्मधुरीण लोकादित्यके कारण बंका __ फली आदि पैदा होते हैं। स्थान वड़ा सुन्दर सुयोग्य पर उस समय जैनधर्मका प्रमुख केन्द्र बन गया था। अपनी समृद्धिक जमाने में वह स्थान वस्तुतः देखने ही यद्यपि लोकादित्य राष्ट्रकूट राजाओंका सामंत था । लायक रहा होगा । मुझे तो बड़ी देर तक यहाँ से हटफिर भी राष्ट्रकूट शासकोंके शासन कालमें यह एक नेकी इच्छा ही नहीं हुई। किलेके अन्दर इस समय वैशिष्ट्य था कि उनके सभी सामंत स्वतन्त्र रहे। एक सुन्दर जिनालय अवशिष्ट है। यहाँ वाले इसे श्राचार्य गुणभद्रजीके शब्दोंमें लोकादित्य शत्ररूपी 'अरवत्तमूरूकबंगल बस्ति' कहते हैं। इसका हिन्दी अन्धकारको मिटाने वाला एक ख्याति प्राप्त प्रतापी अर्थ ६३ खम्भोंका जैन मन्दिर होना है। मेरा अनुभव शासक ही नहीं था, साथ ही साथ श्रीमान भी। उस है कि यह मन्दिर जैनोंका प्रसिद्ध शान्तिनाथ मन्दिर जमाने में बंकापरमें कई जिन मन्दिर थे । इन मंदिरोंको और इसके ६३ ग्वंभ जैनोंके त्रिपष्ठिशलाका पुरुषोंका चालुक्यादि शासकोंसे दान भी मिला था। बकापुर स्मृतिचिन्ह हाना चाहिये। एक प्रमुख केन्द्र होनेसे यहाँ पर जैनाचार्योंका वास मन्दिर बड़ा सुन्दर है । मन्दिर वस्तुतः सर्वोच्च अधिक रहता था। यही कारण है कि इसकी गणना कलाका एक प्रतीक है। खंभोंका पालिश इतना सुन्दर एक पवित्र क्षेत्रके रूपमें होती थी। इसीलिये ही गंग है कि इतने दिनोंके बाद, आज भी उनमें आसानीसे नरेश नारसिंह जैसा प्रतापी शासकने यहीं आकर प्रातः मुख देख सकते हैं। मन्दिर चार खण्डोंमें विभक्त है। स्मरणीय जैन गुरुओंके पादमूलमें सल्लेग्वनावत संपन्न गर्भ गृह विशेष बड़ा नहीं है । इसके मामनेका खण्ड किया था। दंडाधिप हुल्लने यहाँ पर कैलास जैसा गर्भगृहसे बड़ा है। तीसरा खण्ड दूसरेसे बड़ा है। उत्तंग एक जिन मन्दिर निर्माण कराया था। इतना ही अंतिम वा चतुर्थं खण्ड सबसे बड़ा है। यह इतना नहीं, प्राचीन कालमें यहाँ पर एक दो नहीं, पाँच महा विशाल है कि इसमें कई सौ आदमी आरामसे बैठ सकते हैं। छत और दीवालों परकी सुन्दर कलापूर्ण विद्यालय मौजूद थे । ये सब बीती हुई बातें हुई। मूर्तियां निर्दयी विध्वंसकोंके द्वारा नष्ट की गई हैं । इस वर्तमान कालमें बंकापुरकी स्थिति कैसी है, इसे भी मन्दिरको देख कर उस समयकी कला, आर्थिक स्थिति विज्ञ पाठक एक बार अवश्य सुन लें। सरकारी रास्तेके। और धार्मिक श्रद्धा आदिको आज भी विवेकी परम्ब * "सरस्वतीय कर्णाटी विजयांका जयस्यसो। सकता है । खेद है कि बंकापुर आदि स्थानोंके इन या बैदर्भगिरी वास: कालीदासादनन्तरम् ॥" प्राचीन महत्वपूर्ण जैन स्मारकोंका उद्धार तो दूर रहा। x'बम्बई प्रान्तके प्राचीन जैन स्मारक देखें। जैन समाज इन स्थानोंको जानती भी नहीं है।
SR No.538012
Book TitleAnekant 1954 Book 12 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1954
Total Pages452
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size27 MB
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