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जन्म-जाति-गर्वापहार
[ असा हुमा मुझे एक गुटका वैचश्री पं० कन्हैयालाल जी कानपुरसे देखनेको मिला था, जो २०० वर्षसे अपरन खिला हुआ है और जिसमें कुछ प्राकृत वैद्यक ग्रन्थों, निमित शास्त्रों, यंत्रों मंत्रों तवा कितनी ही टकर बातोंके साव अनेक सुभाषित पचोंका भी संग्रह है। उसकी कतिपय बातोंको मैंने उस समय नोट किया था, जिनमेंसे दो एकका परिचय पहले भनेकान्तपाठकोंको दिया जा चुका है। प्राज उसके पृष्ठ २२१ पर उदरत दो सुभाषित पचोंको भावावादो साल पालो सामने रक्सा जाता है, जो कि जन्म-जाति-विषयक गर्वको दूर करनेमें सहायक है। -पुगवीर ]
कोरोयं कृषिवं सुवर्षअपना [व] दापि गोरोमतः पंकाचामासं शशांकम (उ)दरिंदीवरं मोमयात् । काप्टादग्निरहे। मबादपि मणि गोंदिगो (तो) रोचना, प्राकारयं स्वगुणोदयेन गुखिनो गच्छंति किं जन्मना ॥१॥ जन्मस्थानं न खलु विमलं वर्णनीयो न कों, दूरे शोमा वपुषि नियत पंकशंकां करोति । न तस्याः सकतासुरमिद्रव्यग पहारी
को जानीते परिमलगुणांकस्तु कस्तूरिकायाः। २॥ भावार्थ-उस रेशमको देखो जो कि कीदोंसे उत्पन होता है, उस सुवर्णको देखो जो कि पत्थरसे पैदा होता है, उस (मांगलिक गिनी जाने वाली हरी भरी) दबको देखो जो कि गौके रोमोसे अपनी उत्पत्तिको लिये हुए है, उस खालकमक को देखो जिसका जन्म कीचड़से है, उस चन्द्रमाको देखो जो समसे (मन्थन-द्वारा) उद्भूत हुमा कहा जाता है, उस इन्दीवर (नीलकमल)को देखो जिसकी उत्पत्ति गोमयसे बतलाई जाती है। उस अग्निको देखो जो कि काठसे उत्पा होतीस मशिकोहात होती है. उस (चमकीले पीतवर्ण) गोरोचनको देख जो कि होती है, उस मणिको देखो जो कि सपके फणसे उद्भूत होता गायके पित्तसे तयार होता अथवा बनता है. और फिर यह शिवा जो कि जो गुणी हैं-गुणोंसे युक्त हैं
से युक्त है वे अपने गुणोंके
अपने गु उदय-विकाशके द्वारा स्वयं प्रकाशको-प्रसिद्धि एवं लोकप्रियताको प्राप्त होते हैं, उनके जन्मस्थान या जातिसे क्या ? उनके उस प्रकाश अथवा विकाशमें बाधक नहीं होते। और इसलिए हीन जन्मस्थान अथवा जातिकी बातको खेका उनका तिरस्कार नहीं किया जा सकता॥१॥इसी तरह उस कस्तुरीको देखो जिसका जन्मस्थान विमल नहीं किन्तु समल है वह शुगकी नाभि में उत्पड होती है, जिसका वर्ष भी वर्णनीय (प्रशंसा योग्य)नहीं-वह काली कलूटी कुरूम जान पड़ती है। (इसीसे) शोभाकी बात तो उससे दर वह शरीरमें स्थित प्रभवा वेपको प्राप्त हुई पंककी शंकाको उत्पन करती है-ऐसा मालूम होने लगता है कि शरीरमें कुछ कीचड़ लगा है। इतने पर भी उसमें सकल सुगन्धित अन्योंके गर्वको हरने वाला जो परिमल (सातिशायि गन्ध) गुण है उसके मल्यको कौन प्रॉक सकता है? क्या उसके जन्म जाति या वर्णके द्वारा उसे चॉका या जाना जा सकता है ? नहीं। ऐसी स्थितिमें जन्म-जाति अथवा वर्ण जैसी बातको लेकर किसीका भी अपने । खिये गर्व करना और दूसरे गुणीजनोंका तिरस्कार करनाम्य ही नहीं किन्तु नासमझाका भी चोतक है।२॥