________________
३००]
अनेकान्त
जिनसेनाचार्यका पार्श्वभ्युदय उत्तम कोटिक चित्र काम्य है। का यथेष्ट कौशल प्रदर्शित किया है । अमरसिंहगणीकृत
काध्यमें मेघदूतकी पद्धति पर लिखे गये वादि. अमरकोष संस्कृत समाजमें सर्वोपयोगी और सर्वोत्तम चन्द्रका पवनदूत, चारित्र सुन्दरका शीसदव, विनयप्रभा कोष माना जाता है। उसका पठन-पाठनमी मम्योपोंकी चन्द्रदूत. विक्रमका नेमिदत और जयतिलकसूरिका धर्मदूत अपेक्षा सर्वाधिक रूपमें प्रचलित है । धनञ्जयकृत धनावउल्लेखनीय दूत-काव्य है।
नाममाला दो सौ रखाकोंकी अल्पकाय रचना होने परभी इनके अतिरिक्त चन्द्रप्रभसूरिका प्रभावक चरित, बहुत ही उपयोगी है। प्राथमिक कक्षाके विद्यार्थियों के लिये मेहतुमकृत प्रबन्ध चिन्तामणि (१३०६ई.) राजशेखर जैन समाज में इसका खूब प्रचलन है। का प्रबन्ध कोष (१३४२ ई.)भादि प्रबम्बकाम्य ऐति
अमरकोषकी टीका (व्याख्यासुधाख्या)की तरह
इस पर भी अमरकीर्तिका एक भाष्य उपलब्ध है। इस हासिक रस्टिसे बदेही महत्व पूर्ण है।
प्रसममें प्राचार्य हेमचन्द्रविरचित अभिधानचिन्तामणि छन्दशास्त्र
नाममाला एक उल्लेखनीय कोशकृति है। श्रीधरसेनका बन्द शास्त्र पर भी जैन विद्वानोंकी मूल्यवान रचनाएँ विश्वलोचनकोष, जिसका अपर नाम मुक्तावली है एक उपसाप जयकीति ( R)का स्वोपज्ञ छन्दोऽनु- विशिष्ट और अपने ढंगकी अनूठी रचना है। इसमें ककाशासन तथा प्राचार्य हेमचन्द्रका स्वोपक्ष बन्दोऽनुशासन रातादि व्यंजनोंके कमसे शब्दोंकी संकलना की गयी है महत्वकी रचनाएं हैं। जयकीर्तिने अपने छन्दोऽनुशासनके जो एकदम नवीन है। मतमें लिखा है कि उन्होंने मापडण्य, पिनल, जनाश्रय, मन्त्रशास्त्रशैतव, श्रीपूज्यपाद और जयदेव भाविक छन्दशास्त्रोंके मन्त्रशास्त्र पर भी न रचनाएं उपलब्ध है। विक्रमसाधारपर अपने बन्दोऽनुशासनकी रचना की है। वाग्भट- की। वीं शतीके अन्त और बारवींके आदिके विद्वान काबन्दोऽनुशासन भी इसी कोटिकी रचना है और इस मलिषेणका 'भैरवपद्मावतिकल्प, सरस्वनीमन्त्रकल्प और पर इनकी स्वोपज्ञ का भी है। राजशेखरसूरि ज्वालामालिनीकल्प महत्वपूर्ण रचनाएं है। भैरव पनावति( वि.)का बन्दाशेखर और रत्नमंजूषा भी उल्लेख- कल्पमें। मन्त्रीखण, सकलीकरण, देव्यर्चन, द्वादशनीय रचनाएं हैं।
रंजिकामन्त्रोदार, क्रोधादिस्तम्भन, अङ्गनाकर्षण, वशीइसके अतिरिक्त जैनेतर छन्दः शास्त्र पर भी जैना
करणयन्त्र, निमित्तषशीकरणतन्त्र और गाहामन्त्र नामक
दस अधिकार है तथा इस पर बन्धुषेयका एक संस्कृत चार्योंकी टीकाएं पायी जाती है। केदारभट्टके वृत्तरत्ना
विवरण भी उपलब्ध है। ज्वालामालिनी काप नामक कर पर सोमचन्द्रगणी, महंसगणी, समयसुन्दरउपाध्याय, मासा और मेहसुन्दर भादिकी टीकायें उपलब्ध
एक अन्य रचना इन्द्रनन्दिको भी उपलब्ध है जो शक
सं. 1 में माम्यखेटमें रची गयी थी। विधानुवाद हैं। इसी प्रकार कालिदासके अ तबोध पर भी हर्षकीर्ति, और कातिविजयगणीकी टीकाएँ प्राप्य हैं। संस्कृत भाषा
मा वियानुशासन नामक एक और भी महत्वपूर्ण रचना है
जो २४ अध्यायों में विभक है। वह मलिषणाचार्यकी कृति केन्द-शास्त्रोंके सिवा प्राकृत और अपनश भाषाके छंद
बतखायी जाती है परन्तु अन्तः परीक्षबसे प्रतीत होता है शास्त्रों पर भी जैनाचार्योंकी महत्वपूर्ण टीकाएं उप
कि इसे मलिषेणके किसी उत्तरवर्ति विद्वानने प्रथित किया
है। इनके अतिरिक्त इस्तिमल्लका विद्यानुवादास तथा कोश
भक्तामरस्तोत्र मन्त्र भी उल्लेखनीय रचनाएं हैं। कोशके क्षेत्रमें भी जैन साहित्यकारोंने अपनी लेखनी- -
इस ग्रन्थको श्री साराभाई मविवान नवाब (1) मारम-पिंगल-जमाश्रय सैतवाल्य,
अहमदाबादने सरस्वतीकाप तथा भनेक परिशिहोंश्रीपज्यपाद-जयदेवबुधादिकाना।
में गुजराती अनुवाद सहित प्रकाशित किया है। पदासि बीच विविधानपि, सत्प्रयोगान् ,
२ जैन साहित्य और इतिहास (श्री पं० माथूरामबन्दोनुशासबमिदं जबकीर्तिनोकम् ॥
बीममी).