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संस्कृत-साहित्य के विकासमें जंन विद्वानोंका सहयोग
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सुभाषित और राजनीति -
सुभाषित और राजनीति से सम्बंधित साहित्यके सृजनमें जैन लेखकोंने पर्याप्त योगदान किया है। इस प्रसंगमें आचार्य अमितगतिका सुभाषित रत्नसन्दोह (१०५० वि० ) एक सुन्दर रचना है इसमें सांसारिकविषयनिराकरण, मायाकारनिराकरण इन्द्रियनिग्रहोपदेश, स्त्रीगुणदोषविचार, देवनिरूपण आदि बत्तीस प्रकरया हैं। प्रत्येक प्रकरण बीस बीस, पचीस पच्चीस पद्योंमें समाप्त हुआ है । सोमप्रभ की सूक्तिमुक्तावली. सकलकीर्तिकी सुभाषिता reat आचार्य शुभचन्द्रका शानार्थव, हेमचन्द्राचार्यका योग शास्त्र wife उच्च कोटिके सुभाषित प्रन्थ हैं। इनमें से 'अन्तिम दोनों ग्रन्थों में योगशा त्रका महत्वपूर्ण निरूपण है।
राजनीतिम सोमदेवसूरिका नीतिवाक्यामृत बहुत ही महत्वपूर्ण रचना है । सोमदेवसूरिने अपने समय में उपलब्ध होने वाले समस्त राजनैतिक और अर्थशास्त्रीय साहित्यका मन्थन करके इस सारवत् नीतिवाक्यामृतका सृजन किया है । अतः यह रचना अपने ढंगकी मौलिक और मूल्यवान है।
आयुर्वेद
आयुर्वेदके सम्बन्धमें भी कुछ जैन रचानाएं उपलब्ध हैं । उग्रादित्यका कक्ष्यायकारक, पूज्यपादवेधसार अच्छी रचनाएँ हैं। पण्डितप्रवर श्राशावर ( १३ वीं सदी) ने बाम्भट्ट या चरक संहितापर एक भ्रष्टाङ्ग हृदयोद्योतिनी नामक टाका लिखी थी परन्तु सम्प्रति वह प्रमाप्य है । चामुण्डरायकृत नरचिकित्सा, मलिषेयकृत बालग्रह चिकित्सा, तथा सोमप्रभाचार्यका रसप्रयोग भी उपयोगी रचनाएं हैं।
कला और विज्ञान
जैनाचार्योंने वैज्ञानिक साहित्यके ऊपर भी अपनी लेखनी चलायी। हंसदेव ( १३ वीं सदी) का मृगपक्षी - शास्त्र एक उत्कृष्टकोटिकी रचना मालूम होती है । इसमें १०१२ पद्म हैं और इसकी एक पाय पत्रिवे
दमके राजकीय पुस्तकागारमें सुरक्षित है। इसके प्रति रिक चामुण्डरायकृत कूपजलज्ञान, वनस्पतिस्वरूप, विधानादि परीक्षाशास्त्र, धातुसार, धनुर्वेद रत्नपरीक्षा, विज्ञानार्थव भादि ग्रन्थ भी उल्लेसनीय वैज्ञानिक रचनाएं हैं।
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ज्योतिष, सामुद्रिक तथा स्वप्नशास्त्र
ज्योतिष शास्त्र के सम्बन्धमें जैनाचायोंकी महत्वपूर्ण रचनाएं उपलब्ध है। गणित और फलित दोनों भागोंके ऊपर ज्योतिग्रन्थ पाये जाते हैं। जैनाचायने गणित ज्योतिष सम्बन्धि विषयका प्रतिपादन करनेके लिये पाटीगणित, बीजगणित, रेखागणित, त्रिकोणमिति, गोखीयरेखागणित, चापीय एवं वक्रीयत्रिकांयमिति, प्रतिभागणित, गोर्खात गणित, पंचांगनिर्माण गणित, जन्मपत्रनिर्माण गणित महयुति उदयास्तसम्बन्धी गणित एवं यन्त्रादिसाधनसम्बन्धितगणितका प्रतिपादन किया है।
जैन गणित के विकालका स्वर्णयुग छठवीं से बारवीं तक है। इस बीच अनेक महत्वपूर्ण गणित ग्रंथोंका प्रथन हुआ है। इसके पहलेकी कोई स्वतन्त्र रचना उपलब्ध नहीं है । कतिपय श्रागमिक ग्रन्थोंमें अवश्य गणितसम्बन्धि कुछ बीजसूत्र जाते हैं।
सूर्यप्रज्ञप्ति तथा चन्द्रप्रज्ञप्ति प्राकृतकी रचनायें होने पर भी जैन गायकी अस्यन्त महत्वपूर्ण तथा प्राचीन रचनाएं हैं। इनमें सूर्य और चन्द्रसे तथा इनके ग्रह, वारा महल आदि सम्बन्धित गणित तथा विद्वानोंका उल्लेख दृष्टिगोचर होता है । इनके अतिरिक्त महावीराचार्य (स्वी सदी) का गणितसारसंग्रह श्रीधरदेवका गणितश पत्र, हेमप्रभसूरिका त्रैवाक्यप्रकाश और सिंहतिलकसूरिका गणिततिलक आदि प्रम्थ सारगर्भित और उपयोगी है।
फलित ज्योतिषसे सम्बन्धित होराशास्त्र, संहिताशास्त्र, मुहूर्तशास्त्र, सामुद्रिकशास्त्र प्रश्नशास्त्र और स्वप्नशास्त्र आदि पर भी जैनचायने अपनी रचनाओंमें पर्याप्त प्रकाश डाला है और मौखिक प्रथ भी दिये है । इस प्रसंग में चन्द्रसेन मुनिका केवलज्ञान होरा दामनंदिके शिष्य भट्टवासरिका प्रायज्ञानतिलक चंद्रम्मीखनप्रश्न, भद्रबाहुनिमित्तशास्त्र, अर्धकाण्ड, मुहूर्तदर्पण. जिनपाक्षगणीका स्वप्नचिंतामणि आदि उपयोगी ग्रन्थ 弯 1
जैसा ऊपर कहा गया है, इस लेख में संस्कृत साहित्यके विषयमें जैनविद्वानोंके मूल्यवान सहयोगका केवल दिग्दर्शन ही कराया गया है। संस्कृत साहित्यके प्र ेमियोंकी उन भादरणीय जैन विद्वानोंका कृतज्ञ ही होना चाहिए । हमारा यह कर्तव्य है कि हम हृदयसे इस महान् साहित्यसे परिचय प्राप्त करें और यथा सम्भव उसका संस्कृत समाजमें प्रचार करें । ( वय अभिनन्दन ग्रन्थले )