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________________ २४२] अनेकान्त [किरण। सम्बन्ध स्वामी, प्रभवस्वामी प्रादि ५२० व्यक्तियोंसे सकता है कि-'मथुरा सम्बन्धी उल्लेखोंकी प्रचुरता श्वेत म्बर जो साथ ही दोषित हुए थे प्रोदा गया प्रतीत होता है। साहित्यमें ही है। अतः उनका सम्बन्ध यहाँ से अधिक ..भवरखनी चैरव परिपाटी अनुपार 10वीं शतो रहा है। दिगम्बर प्रन्योंमें मथुरा सम्बन्धी अनेक उल्लेख से पहले पहा मोबके भी दो मन्दिर स्थापित हो मिहित हैं। इतना ही नहीं किन्तु मथुरा और उसके पास पासके नगरों में दिगम्बर नोंका प्राचीन समयसे निवास ८. . में यहाँ दि. साहु टोडर द्वारा ११४ है। अनेक मंदिर और शास्त्र भरवार है, बादशाही समयमें स्तूपोंकी प्रविहा उस्लमीय है। जो नपभ्रष्ट किये गये हैं और अनेक शास्त्र भण्डार जला प्राय सभी उ पकरके राज्यकाब तक है। दिये गये। थोड़ी देर के लिये यदि यह भी मान लिया जाय यहाँ तक तो स्तपादिसति और पूज्य थे। इसके बाद कि उक्लेख कम है और यह भी हो सकता है कि दिगम्बर इनका उल्लेख नहीं मिलता । अतः औरंगजेबके समय विद्वान् इस विषयमें मात्रकी तरह उपेषित भी रहे हों तो पहाँ सम्म हिंद प्राचीन मन्दिरोंके साथ और स्मारक भी इससे क्या उनकी मान्यताको कमीका अंदाज खगाया जा विनाशके शिकार बन गये होंगे। . सकता है। मधुरासे प्राप्त जैन पुरातत्व और इन साहित्यगत मधुरामें राजा उदितोदयके राज्यकालमें महरास सेठके खेलोंके प्रकाशमें मधुराके मेन इतिहास पर पुनः विचार कथानकमें कार्तिकमासकी शुक्लपक्षकी ८मीसे पूर्णिमा तक करमा पावश्यक है। यहां प्रतिमालेखोंका संग्रह कौमुदी महोत्सव मनानेका उल्लेख हरिषेण कथाकोषमें स्व. पूर्वचन्द्रजी माहटा, हिंदी अंग्रेजी अनुवाद व टिप्प विद्यमान है जिनमें उक सेठकी पाठ स्त्रियोंके सम्यक्त्व चिचों सहित पाना चाहते थे। पर उनके स्वर्गवास हो प्राप्त करके उसके साथ उस समय मधुरामें प्राचार्यों जानेसे वह संग्रहमन्य यों ही पका रह गया। इसे किसी और साधुसंघका भी लेख किया गया है। इसके सिवाय तीर्थस्थानरूपसे निर्वाचकाडकी'महराए महिहिते'मामक पोपण्याचसे संपादित कराके शीतही प्रकाशित करना गाथामें मथुराका स्पष्ट उल्लेख है। इस कारण तीर्थक्षेत्रकी जैन मूर्तिकला पर श्री उमाकान्त शाहने हालहीमें बाबाके लिये भीमाने जाते रहे और वर्तमानमें तीर्थ यात्राके खिये मी भाते रहते हैं। 'डाक्टरे' पद प्राप्त किया है उन्होंने मधुराकी जनकला इनके सिवाय मथुराके देवनिर्मित स्तुपका उल्लेख पर भी अच्छा अध्ययन किया होगा। उसका भी शीघ्र प्रकाशित होना भावश्यक है। भाचार्य सोमदेवने अपने पशस्तिबकाम्पूमें किया और भाचार्य हरिषेयने अपने व्याकांधमें बैरमुनिकी कथा जैन साहत्यको विशद जानकारी वाले विद्वानांसे निम्नपचमें मथुगमें पंचस्तूपोंक बनाये जानेका उक्लेख मधुरा सम्बन्धी और भी जहाँ कहीं उबल्लेख मिलता है किया है। उसका संग्रह करवाया जाना चाहिए। भाशान 'महारजतनिर्मणान् खचिताम् मणिनायकैः । समाज इस भोर शीघ्र ध्यान देगी दि० विद्वानोंस विशेष पकचस्तूपान् विधायाने समुच्चजिनवेश्मनाम् ॥१३२॥ रूपसे अनुरोध है कि उनको निर्वाणकांड-क्ति धादिमें पंचस्तूपान्वयही यह दिगम्बर परम्परा बहुत पुरानी जो जो रखको शीघ्र प्रकाशित कर मारी जानकारी हैमाचार्य वीरसेनने धवखामें और उनकशिष्य जिनसेगने अपवाटीका प्रशस्तिमें पंचस्पा-क्यके चन्द्रसम मान्दि नोट:बी गरजी नाहटाने अपने इस लेख में नामक दोभाचार्योका नामोक्वेश किया है जो बीरसेनके मथुराके सम्बन्ध में जो अपनीधारणानुसार विकर्ष निकासा गुरुमगुरुये। इससे स्पट है कि भाचार्य वनसेनसे यह डोकमावलमहीं होता। क्या दिगम्बर साहित्यके पूर्वस परंपरा चलित थी इसके सिवाय पंचस्तप मधुरा सम्बन्धी समी उल्लेख प्रकाशित हो चुके बखि विकायके भाचा गुदमन्दीका उम्मेख पहायपुरके बीलो फिर जो कुछ बोदेसेसमुक्त प्रकाशित हुए हैं वामपनमें पाया जाता है, जिसमें गुप्त संवत् सन् इल परसे क्या निम्न निकर निकालना लिहाजा १.में नाबशर्मा वामपके द्वारा गुहनन्दीके बिहारमें
SR No.538012
Book TitleAnekant 1954 Book 12 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1954
Total Pages452
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size27 MB
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