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मथुराके जैनस्तूपादिकी यात्राके महत्वपूर्ण उल्लेख
(मी भगरचन्द नाहटा)
मधुराकी सुदाईसे जो प्राचीन सामग्री प्राप्त हुई है वह सूची में शौरसेन देशको राजधानी के रूप में मथुराकाउल्लेख जैन इतिहास और मूर्तिपूजा भादिकी प्राचीनताकी ररिसे पाया जाता है। तत्परवर्ती साहित्य 'वसुदेवहिण्डी' ५वीx बहुत ही महत्वपूर्ण है, मथुराका देवनिर्मित स्तूप तो जैन शताब्दीका प्राचीनतम प्राकृत कथा प्रन्य है, इसके श्यामासाहित्यमें बहुत ही प्रसिद्ध रहा है, प्रस्तुत लेख में हम विजय बंभको कंस अपने श्वसुरसे मधुराका राज्य मांगता प्राचीन जैन साहित्यसे ई०७वीं शताब्दी तक ऐसे है, और अपने पिता सग्रसेनको कैद कर स्वय मथुराका उस्लेखोंको संगृहीतकर प्रकाशित कर रहे हैं, जो मथुरासे शासक बन जाता है। उरण है-इस पंधके प्रारंभ में जंबू अनोंके दीर्घ कालीन संबंध पर नया प्रकाश गगे, उनसे स्वामाका चरित्र दिया गया है। उसमें मथुराको कुबेरदत्ता पता चलेगा कि कब-कब किस प्रकार इन स्तूपादि- वेश्याका 15 मातों वाला विचित्र कथानक है फिर की यात्राके लिये जैन यात्री मथुरा पहुँचे। इन उल्लेखोंसे भागमांकी चूर्णियां और भाष्यों में भी मधुराके सम्बन्धमें मथुराके जैन स्तूपों व तीर्थक रूपमें कब तक प्रसिदि रहो, महत्वपूर्ण उल्लेख मिलते है।ा. जगदीशचन्द्र जैनने इसका हम भली-भांति परिचय पाजाते हैं सर्व-प्रथम जैन इन उजखों का संक्षिप्त अपमे 'जैन ग्रन्थोंमें भौगोलिक साहित्यमें मथुरा सम्बन्धी लेखोंकी चर्चा की जाती है। सामग्री और भारतवर्षम जैनधर्मका प्रचार' नामक लेख में जैन-साहित्य में मथुग
दिया गया है. जिसे यहां उद्धृत कर देना पावश्यक समवे. जैनागमोंमें एकदश अंग सूत्र सबसे प्राचीन ग्रन्थ
मता हूँ माने जाते हैं। भगवान महावीरकी वाणीका प्रामाणिक
'मथुराके पास पासका प्रदेश शूरसेन' कहा जाता है, संहाइन ग्रंथों में मिलता है जहां तक मेरे अध्ययन,मथुराका
मथुग अत्यन्त प्राचीन नगरी मानी जाती है। जहा जैनसबसे प्राचीन उल्लेख इन "मंग सूत्रों से छह ज्ञाता
भमणोका बहुत प्रचार था। (उत्तराध्ययन चूर्णी)। सूत्र में माता है, प्रसंग है द्रौपदीके स्वयंवर मंडपका
__ उत्तरापथमें मथुरा एक महत्व पूर्ण नगर था। जिसके स्वयंवर मंडपमें मानेके लिये अनेक देशके राजाओंको
अन्तर्गत १६ ग्रामोंमें जाग अपन परोंमें और चौराहों पर द्रौपदीके पिता अपने हतोंके द्वारा भामंत्रण पत्र भेजता है,
जिन मूर्तिकी स्थापना करते थे। अन्यथा घर गिर पड़ते इनमें एक दूत मथुराक 'घर नामक राजाके पास भी जाता या (वृहद् कल्पभाष्य)। है, इससे उस समय मथुराका शासक 'घर' नामक कोई मथुरामें एक देवनिर्मित स्तूप था। जिसके लिये नों राजा रहा था, ऐसा ज्ञात होता है। इसी द्रौपदी अध्ययनके और पौडोमें झगड़ा हुमा था। कहा जाता था कि इसमें भागे चलकर दक्षिणमे पांडवोंने मथुरा मगरी बसाई. इनका जैनोंकी जीत हुई और स्तूप पर उनका अधिकार हो भी उल्लेख मिलता है. इसखिये वृहदकल्पसूत्र में उत्सर गया(व्यवहार भाष्य) मथुरा और दक्षिण मथुरा, इन दो मथुरामोंका नाम मथुरा प्रायमंगू व भार्यरषित मादि जैन समयका मिलता है, वहाँके उस्लेखानुसार शालिवाहनका नायक विहार स्थल था । यहाँ भनेर पाबंदी साघुरहते थे, प्रतदोनों मथुरा पर अधिकार करता है, परवती प्रबंधकोषमें एव मथुराको 'पाखडी गर्भ कहा गया है। (चावश्यक भी यह अनुभूति सी मिलती है।
चूर्णी, प्राचारांग-चूर्वी भावकचरित्र) अंगसूत्रांके बाद उपांगसत्रोंका स्थान है। इनकी संस्था १२ मानी गई है, जिनमें से पावणा (प्रज्ञापनासूत्र)
xयह अन्य वीं शताब्दीका है, विना किसी प्रामामें साढ़े पच्चीस प्रार्य देशोंकी सूची दी गई है। इन
णिक अनुसंधानके अनुमानसे श्वीं शती लिख दिया गया
है। उसकी रचना वीं शताब्दीसे पूर्वकी नहीं है। लेखकका यह कथन अमी बहुत ही विवादापन
-प्रकाशक .-प्रकाशक ..इसके कारणके लिये देखिये विविध तीर्याप ।