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किरण ]
राष्ट्रकूटकालमें जैनधर्म
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तद्देशीय साहित्य
परमारुतीर्थकरने जनपदकी भाषामोंमें पोपदेश दिया कनारी भाषामें प्रथम शास्त्र विराजमार्ग था। परिणामस्वरूप १०ी शीमें मनारी बेखकोंलिखे जानेका श्रेय भी सम्राट् अमोघवर्षके राज्यकालको
की भरमार पाते हैं। जिनमें जैनी ही अधिक थे। इनमें है। किन्तु वह स्वयं रचयिता या बनकर प्राचीनतम तथा प्रधानतम महाकवि पम्प ये इनका जन्म अब भी विवादस्वाहै। प्रश्नोचरमावाका रविता भी
१०२ ई. में हुआ था। पात्रदेशके निवासी होकर भी विवादका विषय है क्योंकि इसके लिये श्री शंकराचार्य कमारी भाषाके आदि कवि हुए थे। इन्होंने अपनी कृति विमल तया अमोघवर्ष प्रथमके नाम खिचे जाते . माद पुराणको १५०० में समाप्त किया था, वह एफ• बस्यू. बोमसो विम्बती भाषाकास भववादको प्रत्य है। अपने मूल प्रम्य 'विक्रमाउन विजय' में इन्होंने प्रशस्विके माधार पर बिना किस पुस्तिकाके तिब्बतीर अपने भाभयदावा 'भरिकेशरी' द्वितीयको अरूपसे भाषा अनुवादके समय प्रमोचवर्ष प्रथम सिकारी उपस्थित किया है। अतः यह अन्य ऐविहासिक रचना। माना जाता था। अत: बहुत सम्भव है कि वही इसका इसी प्रन्यसे हमें इन्द्र तृतोषके उत्तर भारत पर किये कर्ता रहा हो।
गौ इन पाक्रमणोंकी सूचना मिलती है जिनमें उसका
सामन्त भरिकेशरी द्वितीय भी जाता था। इस कालके दशवीं शतीके मध्य तक दक्षिण कर्नाटक के चालुक्य
दूसरे प्रन्यकार 'प्रसंग' तथा 'जिनभा'थे जिनका उबखेल वंशीय सामन्तोको राजधानी गंगधारा भी साहित्यिक
पूतने किया है यपि इनकी एक भी कृति उपबन्धनहीं प्रवृत्तियोंका बड़ा केन्द्र हो गई थी। यहीं पर सोमदेवसूरि।
है। पून कवि १० वीं शतीके तृतीय चरण में हुए हैं। यह ने अपने 'यशस्विनकचम्पू' क्या 'नीतिवाक्यामृत' का
संस्कृत तथा कनारी भाषामें कविता करने में इतने अधिक निर्माण किया था। यशस्तिवक यद्यपि धार्मिक पुस्तक है
द थे कि इन्हें कृष्ण तृतीयने उभयकुख चक्रवर्तीको तथापि बेखकने इसको सरस चम्प बनाने में अद्भुत
उपाधि दी थी। इनकी प्रधान कृति 'शांतिपुराय है। साहित्यिक सामयंका परिचय दिया है। द्वितीय पुस्तक राजनीतिकी है। कौटिल्यके अर्थशास्त्रकी अनुगामिनी
महाराज मारसिंह द्वितीयके सेनापति चामुण्डरावने 'चामु
पहराय पुराण' को दसवीं शतीके तीसरे चरणमें लिखा होनेके कारण इसका स्वतन्त्र महत्व नहीं आंका जा सकता है तथापि यह साम्प्रदायिकतासे सर्वथा शून्य है तथा
था रम्न भी प्रसिद्ध कमारी कवि थे। इनका जन्म कौटिल्यके अर्थशास्त्रसे भी ऊँची नैतिक दृष्टिसे लिखा
ई. में हुमा था । इनका अजितनाथ पुराण ॥ गया है।
में समाप्त हुमा था जैनधर्म अन्योंका पुराण रूपमें रचा
जाना बताता है कि राष्ट्रकूट युगमें जैनधर्मका प्रभाव तथा महाकवि पम्प
मान्यता दक्षिण में असीम थी। इस राज्यकालमें कर्नाटक जैनधर्मका सुष्प गढ़ था।
-(वर्षी अभिनन्दन ग्रंपसे) तथा जैनाचार्यों को यह भली भांति स्मरण था कि उनके
(४) कर्नाटक भाषाभूषण, भूमिका०पू०१५-५ (१)३० एण्टी १० १० ॥
२)कर्नाटक भाषाभूषस भूमिका• पृ. १ (९)...मा.रो.ए.सो. १९०२८० (१) एपी०३०मा०५.१.५ (1) यशस्तिवकच पृ० ॥
(७) एपी.इ. भाग ६.०३