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________________ २८०1 भनेकान्त [किरण - गुरुवस्ति-यहां के स्थानीय १८ मन्दिरों में सबसे मैरादेवीने इसका एक मंडप बनवाया था जिसे 'भैरादेवी प्राचीन 'गुरुवस्ति' नामका मंदिरही जान पड़ता है। कहा मंडप' कहा जाता है उसमें भीतरके खम्भोंमें सुन्दर चित्रजाता है कि उसे बने हुए एक हजार वर्षसे भी अधिकका कारी उत्कीर्ण की गई है। चित्रादेवी मंडप और नमस्कार समय हो गया है। इस मन्दिरमें षट्खयबागमधवला टीका मंडप भादि छह मंडपोंके अनन्तर पंचधातुकी कायोत्सर्ग साहित, कषायपाहुर जयवक्षा टीका सहित तथा महा- चन्द्रप्रभ भगवानकी विशाल प्रतिमा विराजमान है। दूसरे बबादि सिदान्तग्रन्थ रहनेके कारण इसे सिद्धान्तबस्ति खहमें अनेक प्रतिमाएँ और सहस्त्रकूट चैत्यालय है। भी कहा जाता है। इस मन्दिरमें ३२ मूर्तियाँ रनोंकी और तीसरी मंजिल पर भी एक वेदी है जिसमें स्फटिकमयिकी एक मूर्ति तारपत्रके आपकी इस तरह कुल ३३ अनर्थ्य अनेक मनोग्य मूर्तियाँ हैं। इस मन्दिर में प्रवेश करते समय मूतियां विराजमान है जो चाँदी सोना, हीरा, पला, एक उन्नत विशाल मानस्तम्भ है जो शिल्पकलाकी साचात् मीवम, गरुत्मणि, वेदमणि, मूंगा, नीलम, पुखराज, मूर्ति है। इस मन्दिरका निर्माण शकसंवत् १५५१ (वि० मोती, माणिक्य,स्फटिक और गोमेधिक रनोंकी बनी हुई स. १४८७) में श्रावकों द्वारा बनवाया गया है। हैं। इस मंदिरमें एक शिलालेख शक संवत् १३६ (वि. तीसरा मंदिर बडगवस्ति' कहलाता है, क्योंकि वह सं०७.१)का उससे ज्ञात होता है कि इस मन्दिरको उत्तर दिशा में बना हुआ है इसके सामन भी एक मानस्थानीय जैन पंचोंने बनवाया था। इस मन्दिरके गहरके स्तम्भ बना हुआ है। इसमें सफेद पाषासकी तीन फुट 'गदके' मंडपको शक संवत् ११३० (वि. सं. १९७२) ऊँची चन्द्रप्रभ भगवानकी अति मनाग्यमूर्ति विराजमान है। में चोखसेटि नामक स्थानीय श्रेष्ठीने बनवाया था। इसी शेटवस्ति-इसमें मूलनायक श्री वर्धमानकी धातुमय वस्तिके एक पाषायपर शक सं० १९२६ (वि. सं. १४६४) मूर्ति विराजमान है। इस मन्दिरके प्राकारमें एक मंदिर का एक उत्कीर्य किया हुमा एक लेख है जिसमें लिखा है और है जिसमें काले पाषाण पर चौबीस तीर्थंकरोंकी मूर्तियां कि इसे स्थानीय राजाने दान दिया। तीर्थंकर वस्तिके पास प्रतिष्ठित हैं। इसके दोनों ओर शारदा और पद्मावतीदेवी एक पाषाण स्तम्भ लेखमें जो शक सं० १२२६ (वि० की प्रतिमा है। सं० १३१४) में उत्कीर्ण हुआ है उक गुरुवस्तिको दान हिरवेवस्ति-इस मदिरमें मूलनायक शान्तिनाथ है। देने का उल्लेख है। इस मंदिरकी दूसरी मजिल्लपर भी एक इम मन्दिरके प्राकारके अन्दर पद्मावतीदेवीका मंदिर है, वेदी है उसमें भी अनेक अनध्य मूर्तियाँ विराजमान हैं। जिम में मिट्टी से निमित चौवीस तीर्थंकर मूतियाँ है। पना. कहा जाता है कि कुछ वर्ष हुए जब भट्टारकजीने इसका वती भोर सरस्वति की भी प्रतिमाएं हैं इसीसे इसे अभ्मजीर्णोद्धार कराया था, इसा कारण इसे 'गुरुवस्ति' नामसे नवरबस्ति कहा जाता है। पुकारा जाने लगा है। मुख्तारश्रीने मेंने और बाबू पक्षालालजी अग्रवाल आदिने इन सब मूर्तियांके सानन्द दर्शन बेटकेरिबस्ति-इसमें वर्धमान भगवानकी ५ फुर किये है जिस पं. नागराजजी शास्त्रीने कराये थे और ऊँची भूवि विराजमान है। ताडपत्रीय धवल गन्धकी वह प्रति भी दिखलाई थो जिसमें कोटिवस्ति--इस मन्दिर को 'कोटि' नामक अंष्ठिीने संयत' पद मौजूद है, पं. नागराजजीने यह सूत्र पढ़कर बनवाया था। इसमें नेमिनाथ भगवानकी खड्गासन एक भी बतलाया था। इसी गुरुवस्तिके सामनेही पाठशालाका फुट ऊँची मूर्ति विराजमान है। मन्दिर है जिसमें मुनिसुव्रतनाथकी मूति विराजमान है। विक्रम सद्विवस्ति-इस मौदरका निर्माण विक्रमनामक दूसरा मन्दिर 'चन्द्रनाथ' का है जिसे त्रिलोकचूडा- सेठने कराया था। इसमें मूलनायक मादिनाथकी प्रतिमा मणि स्ति' भी कहते हैं। यह मन्दिर भी सम्भवतः हसौ है। अन्दर एक चैत्यालय है और जिसम धातुकी चौबीस व जितना पुराना है। यह मन्दिर तीन सानका है जिसमे मर्निया विराजमान हैं। एक जार शिक्षामय स्तम्भ बगे हुए हैं। इसीसे इसे लेप्यदवस्ति-इसमें मिट्टीकी लेप्य निर्मित चन्द्रप्रमकी 'साधिरकमदवसदी' भी कहा जाता है। इस मन्दिरके मूर्ति विराजमान है। इस मूर्तिका अभिषेक वगैरह नहीं चारों भोर एक पक्का परकोटा भी बना हमा। रानी किया जाता। इस मंदिरमें खेप्प निमित ज्वालामालिनीकी या मन्दिरको छानका जिसमे मनिकाप्दवस्ति इसमें मितिका अभिनेक वाचनाको
SR No.538012
Book TitleAnekant 1954 Book 12 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1954
Total Pages452
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size27 MB
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