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________________ - - - किरण] हमारो जैन तीर्थयात्रा संस्मरण २७६] बम्बाई में रामायण सरस व मी अंकित किए गए हैं जो पहुँचे और वहांके राबा देवपासके पेखिस भवन में ठहरे, दर्शकों को अपनी चोर भाकर्षित किये बिना नहीं रहते। भवनके इस हिस्से पर सरकारने कब्जा कर लिया है। खेद है कि इनेविडमें भाज जैनियोंकी पावादी नहीं है। आपके निजी भवन में भी एक चैत्यालय है। शिलालेखोंमें - वहाँ के कीर्ति-मन्दिर जैनधर्मकी गुण-गरिमा पर किसी मूबग्दिीका प्राचीन नाम 'रिणी' 'वेणूपुर' या 'सर' समय इठलाते थे। पर माज यह नगर अपने गौरव हीन उल्लिखित मिलता है। इसे नकाशीमा कहा जाता है। जीवन पर सिसिको ले रहा-दुख प्रकट कर रहा है। यह नगर 'तुलु' या तौलवदेशमें वसाहचा इस देशसबकसे दूर होने के कारण यात्री वहाँ दर्शनार्थ बहुत ही के बोलचालको भाम भाषा भी 'तुलु' है परन्तु व्यावहाकम जाते हैं। हलेविडसे चल कर हम लोगोंने रात्रि खि- रिक भाषा कनादी होने के कारण इसे कर्नारकश भी यूरमे धर्मशाबाके पीछेके दहलानमें विताई और सवेरे कहा जाता है। यह नगर किसी समय कर्नाटक देशक ' ४ बजेसे चल कर ॥ बजेके करीव दुपहरके समय वेएर कांची राज्यमं शामिल भी था, जिसकी राजधानी बादामी ( Venuru) पहुंचे। थी, जो बोजापुर जिले में अवस्थित है। उसके बाद उत्तर यह ग्राम दक्षिण कनारामें इलेविडसे ६० मील दूर है कनाडा में स्थित कदम्बवंशी राजाओंने भी उस पर राज्य और गुरपुर नदीके किनारे बसाइमा है। यहाँ तालाबमें शासन किया है और सम्भवतः छठी शताब्दीके लगभग हम लोगोंने स्नान किया, बाहुबली और अन्य चार मंदि- यह पूर्वी चालुक्य राजाओंके अधिकार में चला गया था। रोंके दर्शन किये, तथा थोड़ा सा नास्ता किया। भिंडी तथा उस समय तक इस देशका राजधर्म जैनधर्म बना रहा, रमाशकी फली खरीदी। यहा श्रवणबेलगोलके भट्टारक जब तक होयसाबवंशके राजा विष्णुवईन और पश्वासने चारुकीर्तिकी प्रेरणासे शक सं० ११२६ (वि.सं. १९६1) नधर्मका परित्यागकर बैशवधर्मको स्वीकार नहीं किया में चामुगहरायके कटुम्बी तिम्मराजने (Timmaraja) था। राजा विष्णुवनके धर्मपरिवर्तन के कारण जैन राजा ने, जो अजलरका शासक था, बाहुबलीकी ३० फुट ऊँची भैरसूर प्रोडीयर स्वतन्त्र हो गए, उस समय उनका शासन कार्योत्सर्ग मूर्तिकी प्रतिष्ठा कराई। इस मूतिका ६.. कुछ ऐसा रहा जो दूसरे सम्प्रदायके खोगों पर विपरीत वर्ष में एक बार मस्तिकाभिषेक होता है । इसके चारों भोर प्रभाव को श्रीकत कर रहा था। फलतः उस समय जैन ७-८ फुट ऊँचा एक कोर भी है। उक्त तिम्मराजने एक धर्मकी स्थिति अस्थिर एवं कमजोर हो गई। उस समय मन्दिर शान्तिनाथका भी बनवाया था। इस मन्दिरमं शक उनके आधीन चौटर, बंगर और मजसार वगैरह प्रसिदर सं० १५२६ (वि० सं० १६६१) का एक शिलालेख भी राजा थे। मूलजिवीमें चौटर जैन राजामौकाराज्य था, तब श्रीकत है । गोम्मटेश्वरकी यह मूर्ति गुरुपुर नदीके बायें तट यह नगर चोटर राजाओंका प्रसिद्ध नगर कहा जाता था। पर प्राकारके अन्दर भस्यन्त मनोग्य जान पड़ती है। अब भी यहां चौटरवंशी रहते हैं जिन्हें अंग्रेजी राज्य में पेन्शन गोम्मेटेश्वरकी इस मूर्तिका पग - फुट ३ इंच लम्बा है। मिनती थी। नंदायरमें कंगर, मजदंगदीके मजलर और बाहुबलीकी मूसिके अतिरिक यहाँ चार मन्दिर और भी मुल्कीके सेहतर हुए। यहाँ राजाका पुराना महल भी है, हैं। इसे शक सं० १९२६ में स्थानीय रानीने बनवाया है। जिसमें बकदी की बस पर दिया खुदाई की गई है और विभित वस्ति र अक्किनगलेवस्ति । तीर्थकर परित- भीतों पर अनेक चित्र भी उस्कीर्णित है। इस मन्दिरके शक सं० १५४ शिलालेखसे ज्ञात होता दक्षिण बोलवदेशके अनेक राजाओंने वहाँ पर बहुतले है कि इसे यहाँ स्थानीय राजाने बनवाया था। और जिन मंदिर बनवाए हैं जिनकी संख्या १८० के करीब भयान्तिनाथ वरित । यहाँ के एकमन्दिरमें एक सहस्त्र मूर्ति. बतलाई जाती है। उनमें से 5 मंदिर मुखबिद्री भोर यो विराजमान है, ऐसा बहाके पुजारीसं ज्ञात हुभा। वे १८ मंदिर कारकलके भी भन्तर्निहित हैं।इन सब मंदिरों देखने में भी भाई, परम्तु जब्दीमें कोई गणना नहीं की जा और उस समयके राज्यों का इतिवृत्त मालूम करनेसे इस सकी। यहाँसे चलकर हम बोगर बजेके करीव मूखबिद्री पातका सहज ही पता लग जाता है कि उस समय वहां * See, Indian Antiquary V. 36 जैनधर्मका कितना गहरा प्रभाव किता। भूविजीका .See, mediaval Jainisin P.663 माम दक्षिण दिशा जैनतीनोंमें प्रसिर है।
SR No.538012
Book TitleAnekant 1954 Book 12 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1954
Total Pages452
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size27 MB
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