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करण]
आठ शङ्काओंका समाधान
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समाधान
करता है इसलिये मास्माको जानने वाला सारे जिन(१) समाधान-समयसार अन्धकी १५वीं माथामें जो शासनको पूर्ण रूपसे अवश्य जानता है जो कि प्रयोजन अबदस्पृष्ट प है-इसमें बहके साथ स्पृष्टका निषेध किया भूत है । प्रयोजनभूत जिनशासनका जो प्रयोजनभूतगया है। जाम्पृष्ठके कारण मानव तथा उसके रूपमे श्रुतज्ञान होता है वह प्रयोजनभूत अवज्ञान भी विरोधको संवर. बनस्पृष्टक एक देश के कारण छमस्थका पयोय है अतः जो पास्माको प्रयोजनभूत निर्जरा और बद्धस्पृष्टके निरवशेष रूपसे मारमासे दूर होने
रूपसे उन तीन विशेषणोंसे प्रबदम्पष्ट अनन्य-विशेष या पय होनेको जाने तबमात्मा के प्रबद्धस्पृष्ट स्वरूपका अविशेष-सामान्यरूपमे जानता है-वह प्रयोजनभूत ठीक बोध हो बंध प्रकृतमें मजीवक माथ जीवका है, अतः जिनशासनका पूर्ण रूपस जा
म
न जिनशासनको पूर्ण रूपसे जानता है अर्थात् जो समयमजोबका ज्ञान होना भी अत्यावश्यक है--उनके लक्षणों
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सारक सम्पण
सारके मम्पूर्ण प्रयोजनभूत अधिकारीको सामान्य विशेष को विशेष प्रकारसे जानने पर ही श्रात्माका अनन्य रूपसे रूपम जानता है वास्तवम वह समयसारका तत्वतः जानता बोध होता है-जब यह अविशेषकी निष्ठाको जान
है और जो समयसारको तत्वतः जानता है वह निस्ताग्रह लेता है तब वह अविशेष रूप प्रात्माको जानना ई
मरे जिनशासनको कुछ गुणपर्यायों महित जानता है चाहे चंकि सामान्य विशेष-मिष्ठा प्राश्रय में रहता है-इस वह इन तम कहा गया हो या स्याद्वादरूपसं बतलाया प्रकार प्रयोजन भून मात तत्व जोकि जिनशामन रूप है गया हो या भावच तसे जाना गया हो। या जिन शासनम बतलाये गये है-इनको गुगाम्यान
भाव अ नज्ञान प्रामाका पर्याय है अत: आमाको मार्गणास्थान आदिको विवेचनसे-या दया, दम,
जानने वाला सम्यग्दृष्टि छमस्थ अवश्य उस (अ तज्ञान) ग्याग समाधिप विवेचनम-जो मानता है वह तत्वार्थ
के द्वारा जाने गये प्रयोजनभूत पूर्ण जिनशासनको घन करने वाला होने पर वाम्न में प्रात्मा को जानने
जानता है-प्रकृतमें आत्माको जानने वाला ज्ञान वाला मारे जिनशासनको जानता है-जो भी द्रव्य
परोक्ष है-वह न्यायशास्त्रकी अपेक्षा छमस्थका पात्मानु
भव या ज्ञान सांज्यवहारिक प्रत्यक्ष हो सकता है। अनरूप ग्यादवाद शासन में या भावश्रतमें जो भी प्रकाशित होता, वह सान तत्व रूपसे बतलाया जाता है ( समाधान-स्यावाद जिनशासनम बह ग्य, या जाना जाता है-जा प्रयोजन भूत पारमाको जानता पंचाम्तिकाय, मान तत्व भौर नौ पदार्थ बतलाए गये है वर प्रयोजनभृत मात तत्वको बतलाने वाले जिन है-ये सब जीव और अजीवके विशेष हैं। जीव और शासनको भी प्रयोजनभूत रूपसे अवश्य पूर्णरूपमै अजीवके विशेष प्रास्रव, बंध, संवर, निर्जरा और मोष है। जानता है। जो प्रयोजनभून जिनशामनको पूर्णतया सात तत्त्वांका विवेचन करने वाला तत्त्वार्थसूत्र इनमें पा नहीं जानता है वह प्रमावा भी नहीं जानता है गया है और उस सत्रद्वारा निर्दिष्ट सम्पूर्ण प्रमेय भी यो यथार्थ रुपये नहीं जानता है-'पदेशसुत्तममं सात तत्वका प्रति वर्तन नहीं करते हैं। सब सामान्यजिनसासणं' द्रव्य तमें बतलाये गये जिन
.विशेषात्मक जास्यन्तर है-इन सातोंमेंसे प्रयोजन भूत एक शासनको, मामाको यथार्थरूपमे जाननेवाला या
तत्वका पूरा ज्ञान तब होता है जब सातांका ज्ञान हो, प्रतः अनुभव करने वाला या देखने वाला अवश्य पूर्णरूपसे
भारमा सम्यग्बोध उसीको होता है जो प्रयोजन भूत जानता है जो कि प्रयोजन भूत है-मात्माको पूर्ण रूपसंसब गुणपर्यायों सहित जो जान लेता है वह सर्वज्ञ है
रूपसे इन साताको जान कर श्रद्धान करता है। वह द्रव्य, च कि किसी भी पदार्थका पूर्ण ज्ञान सर्वज्ञको होता है- पचास्तकाय भार नौ पदार्थ इन्हा सात तवाम अन्तरभूत उसने तो अवश्य ही सारे जिनशासनको जाना ही है- हैं-स्यावाद श्रुतज्ञान इनको जानता है और स्यावाद किन्तु तज्ञानमे युक्त छद्मस्थ भी सारे जिनशासनको द्रव्यश्रुत इनका विवेचन करता है । स्यावाद और उसका कुछ गुणपर्याय सहित प्रयोजनभूत रूपसे अवश्य जानला अन्यतम प्रमेय सामान्य विशेषात्मक है अतः सम्पूर्ण जिन है यदि वह सम्यक्रवी है, जो सम्यक्त्वी है वही मात तस्व- शासन सामान्य विशेषषात्मक है-कहा भी है 'अभेद को जानने वाले अपने भारमाका बास्थ अवस्थामै अनुभव भेदात्मकमयतत्त्वं, तब स्वतन्त्रमंत्रायत्तरत्ख पुष्पम इस