SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 32
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ - किरण १] बंगीय जैन पुरावृत्त [२३ मालदा, राजशाही, दीनाजपुर और बोगदा जिबीका ५ चटगांव विभाग एक भाग वरेन्द्र भूमि कहलाता है। हरिषेणके वृहतकथा उत्तरमें प्रासाम, पूर्व में भासाम और वर्मा, दक्षिणमें कोषमें भी शोमशर्माकी कथामें प्रथम श्लोकमें भी 'वरेन्द्र शब्द इस प्रदेशके लिए भाया है वर्मा और बंगालकी खादी और ढाका विभाग । इसके पूर्वदेशे वरेन्द्रस्य विषये धनभूपिणे । जिले है-चटर्गाव, त्रिपुरा (टिपरा) और नोपाखाली। देवकोटपुरं म्यं बभूव भुवि विश्रुतम || त्रिपुराके निकट कोमिला है जो जैमशास्त्रोंमें कोमलाके इसके जिले है-राजशाही, दीनाजपुर, जलपाई गोडी. ' नामसे प्रसिद्ध है। यहाँ से ६ मील पर मैनामती नामक दार्जिलिंग, रंगपुर, बोगडा, पबना और मालदा । बोगडा स्थान - स्थानसे दो जैन मूर्तियां उपलब्ध हुई थीं। जिलेके महास्थानगढ़में ही पौण्ड्रवर्द्धन राजधानी थी, स्वामी विश्वभूषणकृत संस्कृत भकामर कथाका हिन्दी यहीं पहादपुर है जहाँ बड़ा प्राचीन मन्दिर निकला है अनुवाद (पद्य)पं विनोदीलालजीने सं० १७४७ में जिसमें जैन ताम्रलेख भी प्राप्त हुआ है। पुराने मालदासे किया था उसमें श्रीरन वैश्यकी कथामें पूर्वबंगालमें सभद्रा १०/११ मील दक्षिण-पश्चिममें गौर नामक ऐतिहासिक नगरीका उल्लेग्व है, जहाँ जैनमुनि भी थे। अब सन स्थान है। १९४७ से बंगालके दो भाग हो गए है-पर्व बंगाल ४ डाका विभाग (पाकिस्तान) और पश्चिमी बंगाल (हिन्दुस्तान)। अस्तु, उत्तर पूर्व में प्रासाम प्रान्त, पूर्वमें मेघना नदी और पूर्व पाकिस्तानमें अब है-२ प्रेसीडेन्सी विभागके नदियाचटगाँव विभाग, दक्षिणम बंगालकी ग्वाड़ी, दक्षिण-पश्चिम का बहुभाग, जैसोर और खुलना । । राजशाही विभागके में मधुमती (हरिनघाटा) नदी और प्रेसीडेन्सी विभाग, पूर्व दीनाजपुर, रंगपुर, बोगडा, पवना और मालदाका उत्तर-पश्चिममें जमुना नदी और राजशाही विभाग । इसके कुछ भाग। ४ ढाकाविभाग सम्पूर्ण और ५ चटगाँव जिल्ले हैं-ढाका, मैमनसिह, फरीदपुर और बाकरगंज। विभाग सम्पूर्ण । (क्रमशः) १४वीं शताब्दीकी एक हिन्दीरचना (६० कस्तूरचन्दकाशलीकाल एम०ए०) जैन शास्त्रभण्डारोंमें कितने प्रमूल्य रत्न छिपे हुये हैं समय पर उपलब्ध होने वाली हिन्दी रचनाओंके माधार यह हमें समय समय पर उपलब्ध रचनाओंके आधार पर पर और भी हद हो जाती है। ज्ञात होता है। इन ज्ञानभण्डारोंको यदि भाजले २० वर्ष अभी कुछ समय पूर्व राजस्थानके ज्ञान भण्डारीकी सूची पूर्व भी देख लिया जाता तो अपभ्रंश, संस्कृत एवं हिन्दी बनाते समय श्री दि. जैन वदा मन्दिर तेरपंथियोंक साहित्यके इतिहास लेखनमें पाशातीत सफलता मिलती शास्त्र भंडार में संवत् ११३४ का लिखा हुमा एक प्राचीन और जैन विद्वानों द्वारा लिखित माहित्यका अत्यधिक गुटका मिला है। इसी गुटकेमें संवत् १७१ की एक महत्वके साथ उस्लेम्व किया जाता। देशकी बोल-चाल- हिन्दी रचनाका भी संग्रह किया हुआ है। यद्यपि रचना की भाषा साहित्य निर्माणका सदा ही जैन विद्वानोंका शुद्ध हिन्दीमें नहीं है किन्तु रचनाकी दिन्दी, हिन्दीके ध्येय रहा है इसीलिये जैन भण्डारोंमें देशकी प्रायः सभी प्रादिकालकी अन्य रचनाओंके समान है। रचनाकी भाषा भाषाओं में महत्वपूर्ण साहित्य उपलब्ध होता है। पर अपभ्रशका स्पष्ट प्रभाव मसकता है। हिन्दी भाषाकी अपभ्रंश भाषाके साहित्यमें तो जैनाचार्यों का एकाधिपत्य इसी प्राचीन रचनाका परिचय प्राज पाठकोंके समक्ष हिन्दीके प्रायः सभी विद्वानों द्वारा स्वीकार कर लिया गया उपस्थित कर रहा हूँ। है किन्तु हिन्दीभाषामें भी प्रारम्भसे ही जैनविद्वानोंकी रचनाका नाम 'चउवीसी' है इसमें जैनोंके वर्तमान साहित्य-निर्माणमें प्रतिरुचि रही है और यह धारणा समय २४ तीर्थकरोंका अति संचित परिचय दिया गया है।
SR No.538012
Book TitleAnekant 1954 Book 12 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1954
Total Pages452
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size27 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy