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________________ हिन्दी जैन साहित्यमें अहिंसा [२६३ - अहिंसाके द्वारा ही यह सम्भव हो सकती है न कि हिंसाके गान्धीकी एकनिष्ठतासे अहिंसाकी साधनाका प्रभाव है कि द्वारा । यह सम्भव हो सकता है कि कुछ व्यक्तियोंको १०० वर्षोसे पराधीनताकी बेदी में पड़े हुए भारतवर्षको युद्धसे लाभ हो जाय परन्तु यदि उन्हें विज्ञानसे पूर्ण मुक्त कराया । उनके कथनानुसार अहिंसा मन्दिरों अथवा बाम उठाना है तो भहिंसाको कार्यरूपमें परिणित करना प्रकोष्ठोंके एक कोने में बैठ कर प्रयोग करनेको बस्तु नहीं होगा और शान्तिके सिद्धान्तोंका अनुगमन करना होगा! वरन् जीवनके प्रत्येक क्षेत्रम तथा प्रत्येक सबमें उसका विश्वमें रामराज्य अहिंसाके द्वारा ही स्थापित हो सकता उपयोग होना चाहिये । तभी मानव जीवन सफल हो हैन कि हिंसाके द्वारा । यदि मनुष्य विश्वम शामिन सकता है। स्थापित करना चाहता है तो यह आवश्यक है कि विज्ञानका प्राज विश्व युदोंका कारण केवल पूजीका मासउचित प्रयोग किया जाय और अहिंसाकी महत्ताको मान वितरण है। जब तक दूसरोंकी भूमिका निर्दयता समझा जाय । विश्वमे समय समय पर समाज सुधारक . पूर्वक हरूप लेना न बन्द होगा और पूंजीका समान वित और धर्मोपदेशक अवतरित होते रहे हैं। जिन्होंने हिमाके रण न होगा, युद्ध होना निश्चित है। भाज कम्युनिज्म • उपद्रवसे विश्व को मुक्त किया और शान्ति तथा अहिंसाके और केपिलिज्मका ही संग्राम है। विश्वरूपी अखादेमें यह बादेशसे प्राणीमात्रकी रक्षा की। अहिंसाका उद्देश्य सर्व दानों पहलवान अपनी शक्तिकी परीक्षा हेतु उतरे है और प्रथम विशेषतया जैन तीर्थकरोंने गम्भीरता एष सुव्यवस्था जब तक इन समस्याओंका निर्णय न होगा यह भापति दूर पूर्वक बताया और उचित रीतिसं प्रचारित किया। अहिंसा न होगी। के विषयमें जैनधर्मका दृष्टिकोण वस्तुतः मौलिक है। विश्ववंच महात्मा गाँधीके प्रसिद्ध अनुयायी श्रीकाका यह मौलिकता इसमें है कि जैन विचारकॉन अहिंसकी कालेलकरके अहिंसाके विषयमे अत्यन्त उच्च विचार हैं। म्याख्याका विचारबिन्दु मारमाको माना है। जैनधर्मके उनके कथनानुसार 'जबसे मनुष्यने माताके पेटसे जन्म अन्तिम तीर्थकर श्रीवर्धमानस्वामी और बुद्धधर्मके प्रवर्तक लिया, तबसे अहिंसाका जन्म हुआ है। बलिदान तथा महात्मा बुद्ध तथा ईसाई धर्मके प्रवर्तक लौर जेमफ स्वार्पणके विना अहिंसा जीवित नहीं रह सकती।' क्राइस्ट इत्यादिने अहिंसाकी महत्ता पर विचार कर विश्व हिन्दी जैन-साहित्य में अहिंसाकी महत्ता और हिंसाके को उसका उपदेश दिया। इस प्रकार उन्होंने अपने समय निषेवक विषय पर साहिस्थिकोंने सुन्दर प्रकाश डाला है। के हिंसात्मक कार्योसे मनुष्योंको बचाया। कवियर बनारसीदासजीके कथनानुसार हिंसा करनेसे सम्राट अशोकने कलिंगके महायुद्धके पश्चात् महिमाकी कमा भा पुण्य फलका प्राप्त नही हातामहत्ता समझी और जब तक राज्य किया प्रेम और जो पश्चिम रवि उगै, तिरै पाषान जल, शान्तसे अपनी प्रजाको एक सूत्रमें बांधा। सन् १६८८ जो उलटे भूवि लोक होय शीतल अनल | में इग्लैंडमें रकहीन क्रान्ति हुई जो 'ग्लोरियस रेगूलेशन' जो सुमेरू डिगमगे, सिद्ध के होय पग, के नामसे प्रसिद्ध है। यह घटना इग्लैंड एवं यारोपके तबहु हिंमा करत, न उपजे पुण्य फल ॥१ इतिहासमें अत्यन्त महत्वपूर्ण है। इनसे स्टूअर्ट जैन-साहित्यके सुप्रसिद्ध कवि भूधरदासजीने हिसासे राजामोंके दैवी अधिकार मिद्धान्तका अन्त कर दिया बलि किये गये पशुओंके मुखसे अत्यन्त करुण भाव व्यक भार इंग्लंडमें' पालियामैंटको प्रधानता प्रदान कर दी। कराय है। यथाइस क्रान्ति द्वारा यह सिद्ध होता है कि महिमामें जो शक्ति कहै पशु दीन सुन यज्ञके करैया मोहि । विद्यमान है वह तलवार और पाम्ब मादिमें नहीं। हेमत हुताशनमें कौनसी बड़ाई है ।। हमारे अपने युगमें विश्वविभूति महात्मा गान्धीजीने स्वर्ग सुख में न चहों देह मुझे यों न कहों। जो महत्वपूर्ण कार्य कर विश्वके समस्त विचारकोंका ध्यान घास खाय रहौं मेरे यही मन भाई है। प्राकर्षित किया-वह है सार्वजनिक क्षेत्रमें अहिंसाके जो तू यह जानत है वेद यों बखानत है। सिद्धान्तोंका प्रयोग । उन्होंने अपने निशदिनके व्यवहारमें . श्रमन, वर्ष क. पृ. ।। अहिंसाको कार्यरूपमें परिणत किया। यह उन्हीं महात्मा- १. प्राचीन हिजै. कवि पु.१०।
SR No.538012
Book TitleAnekant 1954 Book 12 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1954
Total Pages452
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size27 MB
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