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अनेकान्त
[किरण
और सरल रहे साथ ही अन्य व्यक्तियोंके जीवन में कोई पश्चात् दूसरा और दूसरेके पश्चात् तीसरे युबके काले बाधा न पड़े। वे अपनी प्रावश्यकताओंके हेतु किसीके काले मेघ उनके मस्तक पर मरा रहे है। वास्तवमें अर्थका शोषण न करें।
युद्धकी समाप्ति तभी सम्भव है जबकि मनुष्य में मानवबोरिक हिसा-मान विश्व में स्वार्थक साथ साथ ताका पर्याप्त विकास हो । डा. तानका यह कथन है, विचारोंका संघर्षमी चल रहा है। इसी कारण माधुनिक
मानवताका पर्याप्त विकास नहीं हो पाया है इससे यह युगको बौद्धिक युगकी संज्ञा प्रदान की गई है। जैनदर्शन
अग्यवहार्य भले ही प्रतीत होता है, किन्तु जब मानवतास्थावादके रूपमें बौद्धिक महिसाका प्रदर्शन करता है। की वशेष उन्नति होगी तथा वह उच्च स्तर पर पहुंचेगी स्वाहाका अर्थ है अपनी दृष्टि,विचार और कथनको तब अहिंसाका विशेष प्रत सबको पालन करना होगा। . संकृषित हवपक्षपात पूर्वक न बनाकर उदार, निष्पक्ष सम्भव है विश्वके व्यक्ति तृतीय युबमें शामिल हों: एवं विशाल बनाना है। अपनी विचार धाराका उदार परन्तु यह निश्चय है कि उन्हें इस निर्णय पर पाना होगा
और निष्प बनानेके साथ उसका यह मुख्य कर्तव्य है कि कि वे युद्धको अच्छा समझते है या शान्तिको । वास्तवमें वह अपनी नीति सत्यको ग्रहण कर प्रसस्यको त्यागनेकी विज्ञान और नाश एक हलमें नहीं जोवे जा सकते उनका बनाये। अतः संक्षेप में यह कहा जा सकता है कि सम्पूर्ण क्षेत्र और उद्देश्य विक्कुल भिक्ष है। विज्ञानकी उमतिके जगतको प्रात्मसात् करनेके लिये अग्रसर होनाही बौद्धिक साथ साथ मनुष्यको समस्या भी बढ़ती जा रही है। सन् महिंसा है।
१७१७ का भारतवर्षका प्लासीका विश्वविख्यात युद्ध दोनों
ओर केवल कुछ ही सहस्त्र सिपाहियों में सीमित था। देशके आधनिक विश्व प्रशान्त है। प्रशास्तिका मूल है अन्य लोगों पर इसका प्रभाव न पड़ा और पढ़ाई की जड़ व्यक्तित्ववाद क्योंकि व्यक्तिकी सामाजिकता नष्ट हो
का भी कुछ ही घण्टों में निर्णय हो गया। किन्तु माधुनिक ग अथवा व्यक्ति अधिक असमाजिक हो गया है । वह कालका युद्ध विज्ञानको उत्पति के साथ प्रतिभयानक है। समाजसे पृथक रहकर अपना प्रभुत्व स्थापित करना चाहता कोरिया, जो कि विश्यका एक छोटासा भाग है, के युद्ध में है। समाजके स्थायित्वकी चिता न कर अपने स्वार्थ
इतनी बड़ी हिंसा हो सकती है जो कि प्रत्यक्ष ही है तो मापनोंकी पर्तिके हेतु चेष्टा करता है। मानवने क्या न यह विषय विचारयीय है कि विश्वव्यापी युद्ध में कितनी किया। मनुष्यने विज्ञानकी गहरी खाईयाँ खोदी तथा अधिक हिंसा होती होगी। इससे यह स्पष्ट है कि भाज भाना प्रकारकी गैसोंका निर्माण किया। किन्तु इन सबका का विज्ञान कितना हानिकारक हो गया । अतः प्रत्येक दुष्परिणाम स्वयं उन्हींको सहन करना पड़ा और पड़ेगा। प्राणीका कर्तव्य यह होना चाहिये कि वह इस प्रश्न पर
अतः अर्वाचीन काल में मनुष्य समाजको विश्वव्यापी विचार करे कि विश्व में शान्ति हो या युद्ध । क्योंकि यदि युद्ध और महिलाके मध्य अपनी रुचिके अनुकूल चुनाव इन दोनोंका परस्पर सम्बन्ध रहा तो यह निश्चय है कि करना है।बाज विश्वके सामने मुख्य समस्या यह है कि मनुष्य समाजका अन्त हो जायेगा। जिस प्रकार रोटीको किस प्रकार विज्ञानको नाशात्मक कार्योसे पृथक रक्खा खाना और बचाकर भी रख लेना असभव है इसी प्रकार जाय । अब भी इस विश्वमे ऐसी जाति और व्यक्ति विद्य युद्ध होते हुए शान्ति स्थापित करना भी असंभव है। मान हैं जो यह कल्पना करते हैं कि विज्ञान और युद्धका यदि विज्ञानका उद्देश्य मनुष्य समाजकी उसति है तो परस्पर सम्बन्ध है अथवा एक दूसरेके विरुद्ध नहीं है।
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09 Humanity hos not yet progreइस ऐसे भी व्यक्ति है जो सोचते हैं कि विश्व युद्ध होकर
seed enough. When the bumanity has हीरहेगा और शांति तथा अहिंसाके कोई भी उस प्रयत्नको रोक नहीं सकेंगे। एक अहिंसा प्रेमी व्यक्तिके लिये विश्वयुद्ध
sufficently developed and reached in क्या अन्य कलहके छोटे-छोटे कारण मात्रोसे घृणा होती है।
curtain higher stage this law of परन्तु यह मत्व न खेदका विषय है कि विश्वव्यापी युद्ध होते
Ahimsa should be and would be follo
wed by ael. -जैन शासन, पृ० १४६ । हुये भी जाति और मनुव्यके मेव नहीं खुलते और एक युवक
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