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अनेकान्त
[किरण
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रण रूपसे मांस भक्षण करना हिंसा है तवदेपारकेन्तु भ स्पष्ट प्रमान है कि किस प्रकार परोपकारके हेतु उन्होंने मोग लेनेके पश्चात् वे उसे देव-प्रसादका रूप मानकर अपने व्यक्तिगत सखका त्यागकर साधनामें जीवन विताना उसका खाना धर्म मानते थे । वैदिक कर्मकाण्ड हिंसा स्वीकार किया। नेमिनाथ प्रभु रथ पर भारत हो राजुबसे प्रधान हो गया था। उसके विरोधमें उपनिषद् कालके विवाह करने जा रहे थे मार्गमें अनेक पशुओंको बन्धनसे विचारकोंने प्रात्मज्ञानकी स्थापना की। 'भारमानः वृद्धि' ग्रस्त देखकर उनका हृदय द्रवीभूत हो उठा ! उन्होंने पता अर्थात् अपनी प्रात्म.की उमति करो। यज्ञोंको उपनिषदमें किये तृण-भक्षक पशु यहाँ किस कारणसे प्रारूद किए फूटी नाव कहा गया है । 'यज्ञायते दृढ़ा प्लावा : ये यज्ञ गए हैं। पूछने पर उन्हें ज्ञात हा कि विवाहमें निमंत्रित निश्चय ही फूटी नाव हैं । वैदिक युगके ऋषि स्वर्ग- कुमारोंके सत्कारके निमित्त ये यहाँ लाए गए हैं। यह कामनासे यज्ञ करते थे, उपनिषद् कालके विचारक आत्म
सुनते ही उन्हें जगतसे वैराग्य हो गया। उन्होंने पशनोंको ज्ञानकी विपासासे भाकुल हो समस्त वैभव छोषकर वनमें
तत्काल पन्धनसे छुड़वाया और स्वयं उसी क्षण दीक्षा चले जाते थे।"
ग्रहण करनेके लिये बनकी ओर चल दिए। भागे चलकर नमक
पहिसाका उपदेश दिया।'x कर भगवान महावीर और महात्मा बुद्ध अवतरित हुए। दूसरा उदाहरण प्रभु पार्श्वनाथजी का है। उन्होंने वे वैदिक हिंसाके अथवा क्रियाकाम्बको सहन न कर सके। कठोरसे कठोर विरोध का प्रतिशोध सहिष्णुता और धैर्यके उन्होंने दुखित प्राणियोंकी करुण-ध्वनिको अपनी ध्वनिमें आधार पर किया । अनेक वर्षों तक हिंसाका अहिंसासे मिभित कर दयाका संचार किया। और यज्ञांकी बलिमे
सामना करते रहे, परन्तु कभी भी हृदय में प्रतिकूल भावोंकी पा समुदायकी रक्षा की। मनुष्योंको उपदेश देते हुए सृष्टि नहीं हुई। उपयुक्त उदाहरणोंसे स्पष्ट है कि जैनउन्होंने कहा कि विश्वकी शान्ति, अहिंसा और दया पर साहित्यमें अहिमाकी प्रतिष्ठा व्यक्तिगत साधना और ही अवलम्बित है। वीरप्रमुके उपदंशोंने प्राणियोंके अन्त- स्यागके बल पर ही जीवित एवं प्रतिष्ठित हुई है। स्तनको स्पर्श किया। स्थान-स्थान पर सभाएं कर अहिंसा तस्वका दिग्दर्शन कराया और उसकी महत्ता बताई। "The noble principle of Ahimia has संसारका प्रत्येक व्यकि अपना जीवन सुरक्षित रखना influenced the Hindn Vedic ntes. As चाहता है और जीवन वालोंके साथ रहना चाहता है, मत- a resuht ef Jain preachings. एव उन्होंने जियो और जीने दो' का उपदेश दिया। The animal sacrifices were comple
प्रोफेसर प्रायंगरने लिखा है-'महिंसाके पुण्य tely stopped by the Brahamens and सिद्धान्तने वैदिक हिन्दु धर्मकी क्रियाओं पर प्रभाव राला the inages of theasts made of flour
यानियोंके उपदेशका प्रभाव है जिससे ब्राह्मणोंने were substituted for the reat and पशुलिको पूर्णतया बन्द कर दिया था, तथा यज्ञोंके लिये veritable ones required in the conducसजीव प्राणियोंके स्थान में पाटेके पर बनाकर कार्य करना ting of yagas."(Prof. M.S. Rainaswami प्रारम्भ किया था।
Ayangar M.A.) -जैन शासन, पृ० १३४॥ श्री १०५ पूज्य शुल्लक गणेशप्रसादजी वर्णकि कथना- २. भगवान नेमिनाथके विवाह और वैराग्यका वर्णन नुसार 'अहिंसा तत्व ही इतना व्यापक है कि उसके उदरमें जस्टिस जैनीने बड़ा पाकर्षक किया है
माजाते है जैसे हिंसा पापमें सब पाप गर्भित हो "He Naminath) was a Prince born जाते हैं। अहिंसा जैनधर्मका मूल सिद्धान्त है। इसके of the Yadva clan at Dwarka and he प्रभाव में जैनधर्म निमाण हो जायगा।'
renounced the world when about to be अहिंसामें प्राणी, भूत जीव और शत्र की रचाके married to princess Rajimati, daughलिये पात्मोत्सर्गको प्रधानता दी गई है। जैनपुराणों में ter of the chief, Ugrasena. When the यदुकुमार 'नेमिनाथ' के वैराग्यकी घटना इस बातका marriage procession of Naminath app
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