________________
किरण]
हिन्दी जैन-साहित्यमें अहिंसा
[२५४
है। तचासत्रके टीकाकार शिवकोटि x 'जिनस्तुति' विद्वानों और रचनामोंका उल्लेख यहाँ होना मावश्यकीय
और विवक्षण कदर्थन' नामक प्रन्योंके रचयिता पात्र है। केशरी, जिनका 'जिन तुति' नामका अन्य पात्रकेशरी यगसारके कर्ता अमितगति प्रथम, भारमानुशासन, स्तोत्र नामसे प्रकाशित हो चुका है, 'नव-तोत्र' के कर्ता उत्तरपुराण और जिनदत्तचरनके कर्ता (जिनसेनाचार्य वजनन्दी, + जिन्होंने किसी प्रमाण ग्रन्थकी भी रचनाकी के प्रधान शिष्य) गुणभद्राचार्य, समपसार, प्रवचनसार थी। 'वाद-याय' के कर्ता कुमारनन्दी, जिनका उल्लेख और पंचास्तिकामाप प्राभृतत्रयके टीकाकर तथा पुरुषार्थ'तत्वायरलोकवार्तिक' 'प्रमाव परीक्षा' और 'पत्र परीक्षा' सिद्धयुपाय, तत्त्वार्थसार भादि प्रन्योंके रचयिता अमृतमें प्राचार्य विद्यानन्दने किया है। 'लोकविभाग' प्राकृतके चन्द्राचार्य, धर्मरत्नाकरके कर्ता जयसेनाचार्य, काम्यानुकर्ता 'सर्वनन्दी जिन्होंने अपना उक्त ग्रंथ शक स. ३८० शासन और छन्दोनुसानके कर्ता नेमिकुमारके पुत्र वाग्भट्ट, में बना कर समाप्त किया है। 'सुलोचनाकथा' के कर्ता अध्यात्मकमलमार्तण्ड, जम्बूस्वामिचरित्र, बाटोसंहिता, महासेन, इन्दोनुशासन' के कर्ता जयकीर्ति, और 'श्रत- समयमारकलशाटीका, बन्दाविद्या और पंचाध्यायी नामक विन्दु' के कर्ता चन्द्रकीत्याचार्य, * 'वागर्थसंग्रह' पुराण अन्योंके कर्ता कवि राजमल्ल । के कर्ता कवि परमेष्ठी इन विद्वानोंकी अधिकांश रचनाएं इसी तरह अपभ्रंश माहित्यके भी कई प्रमुख विद्वानों यद्यपि इस समय अनुपलब्ध हैं फिर भी उनके स्पष्ट को भी छोड़ दिया गया है यथाउल्लेख तथा वाक्यांके उद्धरण तक मिलते हैं। इनके
पार्श्वनाथ पुरायके कर्ता कवि पद्मकीर्ति, जिनकी उक्त सिवाय जिन पाचोंकी महत्वपूर्ण कृतियाँ उपलब्ध हैं उनका
रचनाका काल वि० सं० है। जंबूस्वामिचरित्रके भी नामोल्लेख नहीं किया गया है। उदाहरणके तौर पर
कर्ता कवि 'वीर' जिनकी उक्त रचनाका समय वि. सं. पात्रकेशरी और उनके प्रसिद्ध स्तोत्रको छोड़कर निम्न
प्रसिद्ध स्तोत्रका बावकर निम्न १०७६ x तस्यैव शिष्यः शिवकोटिसूरिस्तपोलतालम्बन देहयष्टिः। इस तरह जैन साहित्यका उक्त विहंगावलोकन भनेक संसारवाराकरपोतमेतत्तत्वार्थ सूत्र तदलंचकार ॥ दोषों, बटियों, म्खलनों और साम्प्रदायिकनीतिके दृष्टि
-शिलालेख सं० भा० १,१८५ कोणको जिये हुए है। यदि वस्तुतः तालिकाके निर्माणामें + नवस्तोत्र येन व्यरचि सकलाहस्प्रवचन । साम्प्रदायक नीतिका कोई रष्टिकोगा नहीं है-वैसे ही प्रपंचान्तर्भावप्रवण-वरसम्दर्भ सुभगम् ॥ फतेचन्द वेलानीकी उक्त पुस्तकका अनुसरण करके उसे
-शिलालेख सं० भाग १,५४ ६७ दे दिया गया है-तो खुले दिलम उमका शीघ्रही संशोधन * देखो, शिलालेख संग्रह भाग 1,५४,६७) होकर उस प्रकाशमे लाना चाहिये ।
= हिन्दी-जैन-साहित्यमें अहिंसा :
[वे. कुमारी किरणवाला जैन ] प्रमत्तयोगात प्राणव्यपरोपणं हिंसा।
प्राचीनकाल में यज्ञोंकी प्रधानता थी। यज्ञ देवताओंको -प्राचार्य उमास्वामी प्रसन्न करने के लिए किये जाते थे। यज्ञको विष्णु और अर्थात् प्रमाद और करायके योगसे प्राणोंका म्यरोपय प्रजापति भी कहा जाना था। जब वैदिक सम्प्रदायका जोर करना-बात करना, दुख देना-हिंसा है, और इनका पढ़ा और यज्ञोंका भारतमे अधिक प्रचार होने जगा तब म होना अहिंसा है। प्रमाद शब्दका एक विशेष लाक्षणिक उनकी प्रतिक्रिया होना स्वाभाविक ही था । उपासनाकी अर्थ भी है जिसका भाव है कि संकल्प द्वारा काम, क्रोध, अपेक्षा ये यश विशेषतः स्वार्थ-साधनाकी पूर्ति हेतु किये स्वार्थ क्या जोमादिके वशीभूत होकर कार्य में सावधानीसे आते थे। इनमें व्यक्तियोंके स्वार्थकी भावना अन प्रवृद्धि करना।
थी। उन्होंने उसे धर्म तक कह दिया था, क्योंकि साधा