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________________ किर १ बंगीय जैन पुरावृत्त [२१ (प्रथम तीर्थकरकी भाज्ञासे इन्दने ५२ देशोंकी रचना वर्तमान उडीसा और उदोसाके दक्षिण भोर अवस्थित की। उनमें पुण्डू, उपद, कलिंग भंग, बंग, सुहा, मगध गोदावरी-पर्यन्त विस्तृत भूभागको प्राचीन कालमें कलिंग भी थे। भगवान आदिनाथने इन देशोंमें अर्थात् मुला, कहते थे । परवर्तिकालमें जब उडीसाका 'उर' या 'उत्कल' पुण्डू, अंग, बंग, मगध, कलिगमें भी विहार कर धमोपदेश नाम प्रचलित हुभा और प्राचीन कलिंगका दक्षिण भाग दिया था। (प्रादि पु. पर्व २. श्लोक २८७)। और ही केवल कलिंग नामसे अभिहित होने लगा तब भी इस पुराणके पर्व २६ श्लोक से मालूम होता है कि उत्कल 'सकल कलिंग या कलिंग' एक कलिंगको लेकर आदिनाथके पुत्र महाराज 'भरत' के थाधान पुगडू और गण्य होता था। प्लीनो ( मेगस्थिनिसका अनुसरण कर ) गौड देश भी थे। इन प्रमाणोंसे बंग देशकी प्राचीनता और लिख गया है कि गंगा नदीका शेष भाग गंगारिड़ी. उनके साथ जैन धर्मका सम्बन्ध स्पष्ट हो जाता है। कलिंग राज्यके भीतर होकर प्रवाहित हुभा है इस राज्यकी जैन हरिवंशपुराण (रचना काल सन् ७८३) में भारत- राजधानी पलिस है। पलीनी द्वारा गंगारिदिौर कलिंग वर्षके पूर्वके देशोंमें निम्नलिखित देशांको गिनाया गया को एकत्र उक्लिखित देख यह धारणा होती है कि कलिंग है (सर्ग ११, श्लाक ६४-७६) उस समय गंगारिकी राज्यके ही अन्तर्भूत था। डिउडो___ खाग, प्रांगारक. पौण्ड, मल्लप्रवक, मस्तक, प्रायोनिय, रसने भी मेगस्थिनिमका अनुसरन कर लिखा है कि गगा बंग, मगध, मानवतिक. मलद और भार्गव । हरिवंश पु. नदी गंगारिको देशकी पूर्व सीमासे प्रवाहित होकर मागरके सर्ग १७ श्लोक २०-२१ में लिखा है कि राजा ऐलयने में गिरती है। टालेमी के समय भार्यावर्त में कुषाण साम्राज्य ताम्रलिप्ति नामक नगर बसाया था। प्रतिष्ठित था। उस समय वारगोसा (भगु कच्छ या भरोंच) और गंगारिडीका प्रधान नगर 'गंगे' भारतवर्ष के प्रधान भारतवर्षके पूर्वभागमे बंग दश अवस्थित है। आज- बन्दर थे और इन दोनों बन्दरोंसे भारतका बहिर्वाणिज्य कल बंग दशकी जो सामा है पहले वह नही थी। प्राचीन सम्पादित होता था। काल में कितनी ही बार इस बंगदंशकी राष्ट्रीय सीमाका एक बात यह भी विचारणीय है कि गिरीक लोगोंने परिवर्तन हुआ है इसलिए इसकी सीमा निर्देश करनी पहज जिम गंगारिदी राज्यका उल्लेग्व दिया है उसकी उत्पति नहीं है। गौड साम्राज्य, पंचगौड़, द्वादश बंग आदिक 'गंगा और राढ' इन शब्दोंके योगसे 'गंगाराद' बन जाता अन्तर्गत समस्त पार्यावर्त ही गर्भित होता रहा है। है और गंगारादी शब्द एक ग्रीकगणों द्वारा विकृत भावसे ऐतिहासिक युगके प्रारम्भमें बंगदेशका बहभाग तमलुक उच्चारित होकर 'गंगारीबी हो मकनेकी सम्भावना है। (ताम्रलिप्ति) के अन्तर्गन था। बंगालका जो अंश भागी- अतः प्राचीन राढ़ देश हो प्रीक गणोका गंगारीड़ी हो रथी पश्चिमकी ओर अवस्थित है उसका नाम राढ है। सकता है। यहांका ताम्रलिप्ति बन्दर भी उस समय लोक आचारांग सूत्र में लान या राढ देशका उल्लेख हश्रा है। प्रसिद्ध था । प्राचीन सुम्ह ही पीछे राठ देश एवं काशिक-कच्छ बंग गंगा और ब्रह्मपुत्रके कछार प्रदेशके अधिवासियों तथा और पुड्ने वरेन्द्रदेश नाममं प्रसिद्धि लाभ की थी उससे निम्नतर नदी मुग्वस्थ प्रदेश अर्थात् बंगाल, विहार प्राचीन बंगदेश मगध, मिथला, पौंड गौड, अंग, सुम्ह, के प्रधान भागके निवासियों में सदेवसे न्यूनाधिक घनिष्ठ कौशिक, कच्छ, बंग एवं त्रिपुरा राज्यको लेकर गठिन सम्बन्ध चला आता है। प्राचीनकालमें बंगाल और हुया था। त्रिपुरा-व्यतीत इन सब देशोंकी मम्मिलित- विहारका राजनैतिक सम्बन्ध भी धनिष्ट था। इनका भावसे गंगारिती राज्य कहते थे ऐसा कई विद्वानोंका मत विभिन्न राजनैतिक और भौगोलिक विभाग जैसे मगध है। वृष्ट्रीय (ईमाकी) द्वितीय । शताब्दीमें प्रादुर्भू प्रसिद्ध विदेह, अंग, बंग, समतट, पुण्डू गौर, राह, सुझा श्रादिभौगोलिक टालेमि लिख गया है कि गंगाके मुहानासमूहके के इतिहासका अनुसन्धान करें तो ज्ञात होगा कि ईस्वी समीपवर्ती प्रदेशमें गंगारिडिगण वास करते है । सन पूर्व चतुर्थ और पंचम शताब्दीमें साम्राज्यवाद (Im XMcCrandle's Ancient Indiaasperialism) के प्रारम्भ कालसे ये प्रदेश प्रायः एक described by Ptolemy p. 172. राज्य शासनाधीन रहे है मौर्योंने इन प्रदेशों पर शासन
SR No.538012
Book TitleAnekant 1954 Book 12 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1954
Total Pages452
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size27 MB
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