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________________ २०] बंगदेशका प्रस्तर - शिश्प विज्ञोन हो गया मुसलमानों के अमानुषिक अत्याचारसे अनेक जैनमन्दिर और मूर्तियां नष्ट हो गई है। काला पहावने मन्दिरों और मूर्तियॉपर कितना गजब ढाया था, यह सभी जानते हैं। मुसलमानोने कमागत हिन्दुयोंकी प्राचीन कीर्तिको ध्वंसकर निःशेष कर दिया है। अस्तु, जैनधर्मकी इस वंगभूमिपर किस-किस समय कैसी-कैसी अवस्था थी यह ऐतिहासिक समस्या है। इस प्रश्नको हल करनेकी क्षमता वर्तमानयुगके ऐतिहासिकों की नहीं है और वह भूगर्भ में अथवा भविष्य के गर्भ मे निहित है । अनेकान्त बहुचायासलब्ध उद्र घुडखण्डप्रमाण योजना कर समसादन] इतिहास प्रस्तुत होता है। वनुसार मे भी उपलब्ध सामग्रीको पाठकोंके समक्ष उपस्थित करता हूँ । यहां यह भी बात ध्यानमें रखनेकी है कि एक समय मगध ही समस्त पूर्व भारतका एकमात्र आदर्श था और मगधेश्वरगया समस्त भारतके अद्वितीय सम्राट थे। मगध की शिक्षा-शिल्पकला आदि सभीने गोडमें प्रतिष्ठा प्राप्तकी थी, क्योंकि मगधकी अवनतिके बाद गौड ही उस देशके विनष्ट गौरवका उत्तराधिकारी हुआ था। भार्यावर्त में विशेषकर मगध में जो रीति-नीति प्रचलित थीं उनमें अनेक अभी तक बंगाल में प्रचलित हैं और वर्तमान बंगाली जाति मागधियांकी वंशधर है। पाटलीपुत्रके मानसिक और आध्यात्मिक वैभव सर्वापेक्षा अष्ठ उत्तराधिकारी बंगाली हैं। अस्तु, मगधको बाद देकर बंगालका इतिहास रचा नहीं जा सकता । इस प्रकार उड़ीसाका सम्बन्ध भी बंगालसे घनिष्ट था, यहाँतक कि चतुर्दश शताब्दी पर्यन्त बंगला चौर उडिया अक्षरोंमें x विशेष अन्तर नहीं था । एक समय उदियाका समसुक (ताम्रलिप्त) ही बंग वासियोकी समुद्रयात्राका प्रधान बन्दर था। उड़ीसा पंच गौरमण्ड लका अन्तर्वर्ती था । किन्तु इस लेखमें मगधका केवल प्रासंगिक विवरण ही जिला जायगा और उड़ीसाका विप रण पीछे मैं एक स्वतन्त्र लेख में लिखूँगा । [ किरण १ ! द्वारा शस्त्रादि निर्माण करनेके पूर्व जिस समय ती धार पाषाण खण्ड ही एक मात्र अस्त्र-शस्त्रादि थे उस समयको इतिहासकाराने प्रस्तरयुग ( Stone Age ) कहा है । इस प्रस्तरयुगको दो भागों में विभक्त किया गया है प्रस्तरयुग के प्रथम भागकी प्रत्नप्रस्तरयुग (Palacevithic Age) और दूसरे भागको मध्यप्रस्तरयुग ( Neolithic Age) कहते हैं। प्रग्नप्रस्तरयुग के श्रस्त्रांम मनुष्यके शिल्पचानुर्यका विशेष परिचय नहीं मिलता है और नयस्तरयुग के अस्त्र नानाविध सुदृश्य और सयान निर्मित हैं । जब धातुव्यवहार में आने लगी उस कालकी अर्थात् मध्यम स्तर के परवल कीलको ताम्रयुग (Copper Ag) कहते है । ताम्रयुग के शेष भागको मिश्रधातुव्यवहारकाल (Bronze Age) कहते हैं तथा इसके बाद कालको लोहयुग (Iron Age) कहते हैं। 1 प्रागैतिहासिक युग इतिहासके एक युगका नाम है प्रस्तरयुग । धातु x Origin of Bengali Script P. P. 5-6 इस बंगदेशकी मिट्टीके निम्नस्तरसे प्रस्तरयुग के अस्त्रशस्त्र कई जगह प्राप्त हुए हैं। मिन्मेन्ट बाल साहबको सन् १८७८ में बंगाल के प्रसिद पार्श्वनाथ पर्वत ( ( श्री सम्मेदशिखर) के पासून एक छेदनास्त्र मिला था। सन् 1830 में हजारीबाग के भीतीच लींको पारनाथ पर्वतके निकट और हजारीबाग के अभ्या न्य स्थानोंमें पाँच नव्य प्रस्तर युगक अस्त्र मिले थे । १९१० नवविक मत है कि आधुनिक भारतवर्षका उत्तरांशीय श्रावर्त प्रदेश यहाँ तक कि हिमालयका भी एक समय अस्तित्व नहीं था। विन्ध्यपर्वतके उत्तर में एक प्रकांड समुद्र था। पीछे किसी सुदूर अतीतकाल में हिमाजब समुद्र गर्भसे उत्थित हुआ और हिमालय निश्रित नदी वाहितमृतिका द्वारा आर्यावर्त प्रदेशकी सृष्टि हुई। जैन शास्त्रोंमें लिखा है कि पहले यहाँ कोई नगराद नहीं थे और सर्व प्रथम भगवान आदिनाथने नगरादिकी रचना इन्द्र से करवाई ( आ. पु.) । श्री जिनसेनाचार्य के आदि पुराण पर्व १६ श्लोक १२२-१२६ से मालूम होता है कि भगवान आदिनाथ Proceedings of the Asiatic Society of Bengal 1878 p. 125. * Catalogue Raisonne of the Prchistoric Antiquities in the Indian Musium p. 160.
SR No.538012
Book TitleAnekant 1954 Book 12 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1954
Total Pages452
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size27 MB
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