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किरण ८)
वामनावतार और जैनमुनि विष्णुकुमार
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इस प्रकार स्वाभाविक रूपमें पानेके बाद विष्णुकुमा की तरह उनके चरित्र में बड़ा अन्तर है। भागवतके अनुसार रने राजा महापाको रामोके पायोग्य बताते हुए कैद बलिराजा एक दानी और हर प्रतिज्ञ भादर्श व्यक्ति था। कर उसके पुत्रको न्याय पूर्वक प्रजा पालन करनेका निर्देश गुणोजनाका भादर करने वाला था। पर नमुच दुभ था। किया भगवान विष्णु की कृपासे प्रजाने भी उस पुत्रको राजा उसके अस्याचारके कारण ही जैन मुनिको अपनी तपशकिस्वीकार किया। बलू किए जाते नमुचिको श्रमण संघने को प्रयोग करना पड़ा था। उसका कार्य उचित जान पड़ता बचा लिया। उसे देशसे निष्कासित कर दिया गया। है। इसीलिए नमुचिके प्रति पाठकोंकी सहानुभूति नही
विष्णु भणगार एक लाख वर्ष तक तप करके कर्म उत्पन्न हुई । बजि जैसे किसी धर्मिष्टका अकारणा केवल मलको दूर कर केवलज्ञान, केवजदर्शन प्राप्त कर निर्वाण इन्धको ही सहायताके लिये, वामन रूप धरके कष्ट दना लक्ष्मी पा मोच पधारे।
अनुचित लगता है जिके प्रति सहज सहानुभूति होतो हे
पुराणोंमें भो अवताराका कार्य दुष्टरमन और माधु रक्षण यहाँ दानों कथानकोंके साम्य वैषम्य पर भी संक्षिप्त "विचार करना पावश्यक है।
बताया है। जो विष्णु कुमारको कार्यको पुष्टि करता है। भागवत में बृहद् रूप धारणा करने वाले वामन, वासुदेव विष्णुके अवतार हैं। ऋग्वेदमे
वामनावतारको उस रूप में चित्रित नहीं किया गया यहाँ वामनको विवरण ही कहा है जैन कथामें नाम विष्णुकुमार
बक्षिक प्रकारण कष्ट दिया गया है। इस दृष्टिस जैनकथा है। अतः नाम एक ही है। २ भागवतमें वामनको ऐसा
अधिक संगत है । वामनके कार्यके अनौचित्यका उद्घाटन करनेका कारण इन्द्रका कष्ट हटाना और सहायता करना ब्रह्माकी स्तुतिसे भी भली भांति हो जाता है यदि वामनबतलाया है। ऋग्वेदके अनुमार भी वे इन्द्र के सखा थे। ने अपना बचाव करनेका प्रयत्न किया है। पर वह जनसाजेन विष्णुकुमारने मुनियों के कष्ट निवारणार्थ वृहद्रूप धारणको दृष्टिसे सफल नहीं प्रतीत होता, उच्च भूमिका धारण किया था। दोनों में कष्ट निवारणार्थ उद्देश्य तो वालोंको ही भले न ठोक जंचे कथामें पहले धन एवं एकसा ही है। व्यक्ति अलग अलग ३ जिस राजानं ऐश्वर्य पाकर बनिराना अनाचार और अत्याचार करने लगा, तीन डग भूमिकी मांगकी गई भागवतादिके अनुसार उस- ऐसा चित्रण किया जाता तो भी संगति बैठ जाती। पर का नाम बलि राजा था। जैन कथानुसार नमुचि x नाम- उसे तो प्रशंपनीय बतलाया गया है। तीन डग जितनी
दिगम्बर कथा ग्रन्थों में राजा महापद्मकी कद करने भूमि मांगने और मापते समय बृहद्रूप धारण कर छल. जैसी कोई भी भात नहीं है।
नेको बात दोनोंमें ममान है ही। वास्तवमें वहीं सबसे x दिगम्बर परम्परामे राजावलिस ही तीन डग
प्रधान साम्य माना जाना चाहिए। पृथ्वी मांगनेका उल्लेख है और बलिको ही दुष्ट कार्य इस तरह हम देखते है कि दोनोंक रूप एकसे हैं। करने वाला, नथा मात दिनका राज्य प्राप्त करने वाला अब विद्वानोंको इस सम्बन्धमें विशेष विचार प्रगट करनेक लिम्बा है।
-प्रकाशक अनुरोध है।
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