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________________ करण ] वामनावतार और जैन मुनि विष्णुकुमार [२५१ अन्तर्धानी और गगनगामिनी चार लब्धियाँ प्राप्त हुई। कुमारने कहा-भरत भादि नरेशोंने साधुनीका पूजन और महापद्म राजाके नमुचि नामक पुरोहित था जो महा संरक्षण किया है, तुम यदि उन्हें पूज्य नहीं मानी तो ठीक जनोंके बीच साधुनोंसे शास्त्रार्थ में पराजित होकर उनके किन्तु 'साधु मेरे लिए वध्य है।' ऐसा बोलना राजाके प्रति द्वेष रखने जगा था। एक बार नमुचि राजाको प्रसन्न योग्य नहीं. ऐसा तो दम्युमोको शोभा नहीं देता। अतः कर वरदान पाकर स्वयं राजा हो गया । राज्याभिषेकके शान्त हो व वर्षा काल बीतने पर साधु लांग स्वयं अन्यत्र सम्मानसे सम्मानित नमुचिने साधुओंको बुलाकर कहा चले जायेंगे।' नमुचिने कहा तुम कहते हो पूर्व पुरुष साधु'तुम लोग मेरा जयकार नहीं बोलते.ससे ज्ञात होता की पूजा करते थे. यह तो उस राजाका चरित्र होगा, जो कि मैं तम्हें माम्य नोमानमानसे राज पुत्र हो पीढ़ियांसे राज करता पाया हो, उसका धर्म आपकी जय-पराजय थोड़े ही हाती है. स्वाध्याय ध्यानमें है। मैं तो अपने वंशम पहला ही राजा हूँ। अतः मुझे लीन होनेके कारण हमें आपके अभिषेकका वृत्तान्त भी दूपराम काई प्रयोजन TEA से दूपरोंमे कोई प्रयोजन नहीं । सात रातके बाद जो साधु मालूम नहीं हुमा । नमुचिने कहाअधिक क्या? मेरे राज्य में दिखाई दगा वह जीवित नहीं रह सकेगा। आप जाइये । तुम लोग नहीं रह सकोगे । साधुश्रांने कहा- राजन्, मापका कुछ नहीं कहता। दूसरे साधुरामोका जीवन पाजसे वर्षाऋतुमें विहार करना शास्त्र विरुद्ध है अतः हम जोग खतरेम ही समझिए। शरद् ऋतुमें चले जायेंगे | नमुचिने कहा--सात रातसे अधिक जो यहाँ रहेगा उसका में वध कर दूंगा । साधुनोंने विष्णु कुमारने कहा नमुचि ।' जब तुम्हारा यही निश्चय है तो ऐसा करो-मुझे एकान्त प्रदेशमें तीन डग कहा--संघ एकत्र करके हम भापको कहेंगे।' भूमि दी । जहाँ रह कर साधु लोग प्राण त्याग करेंगे । स्थविरोंने एकत्र होकर कहा-'मार्यो ! श्रमणसंघपर क्योंकि वर्षाकालम उन्हें विहार करना योग्य नहीं। इससे विपत्ति पाई हुई है अतः जिनके पास जो शक्ति हो, कहो मेरा वचन भी रह जाएगा। और तुम्हारी साधुनोंकी एक साधूने कहा-'मुझमें प्राकाश मार्गमें गमन करनेकी वध्य करनेकी प्रतिज्ञा भी पूरी हो जायगी।' नमुचिने शक्ति है अतः जो कार्य हो भाज्ञा कीजिये।' संघस्थविरों- सन्तुष्ट होकर कहा, यदि यह सत्य हो, कि वे उस भूमिमें ने कहा पार्य ! तुम अंगमन्दर पर्वतस्थ श्रमण विष्णुको से जीते बाहर न निकलें, तो मैं देता हूँ।' विष्णुकुमार कल ही यहाँ ले पात्रो वह साधु आकाशमार्गमें जाकर तीन ग जमीन लेना स्वीकार कर नगरके बाहर चजे गए। दूसरे दिन विष्णुकुमारको साथ लेकर हस्तिनापुरमें भा पहुँचा । साधुनोंको देश-निकालेका नमुचिका निश्चय ज्ञात नमुचिने विष्णु कुमारमं कहा, मैंने जो तीन डग भूमि कर विष्णुने कहा-'संघ निश्चित रहे, अब मैं यह उत्तर आपको दी है, माप कर ले ला, विष्णुकुमार रोष प्रज्वलित दायित्व अपनेपर लता हूँ।" थे। श्रमण संघके संकटको दूर कर नमुचिको शिक्षा देने की भावना उनके चित्तको उद्वेलित कर रही थी। उन्होंने विष्णु नमुचिके पास गये उसने उनका खड़े होकर तीन डग भूमि नापने लिए अपना विराट रूप विकुर्वण स्वागत किया। विष्णुने कहा -'साधु लोग वर्षाकालमें किया और पेरको ऊँचा किया । नमुचि भयये त्रस्त होकर यहाँ भले ही रहें नमुचिने कहा आप स्वामी हैं तो महा- विष्णु के चरणों में पढ़ कर क्षमा याचना करने लगे। विष्णुने पद्म राजके हैं इनसे मुझे क्या! मैं आपको कुछ भी नहीं ध्र पद पढ़ा जिससे क्षयाभरमें वे दिव्य रूपधारी हो गए। कहता, मुझे तो श्रमणोंको अवश्य ही देशसे निकालना है। उनके मुकटमणियोंकी किरण ज्योतिम दिशाएं रंगीन विष्णुने कहा-'वर्षाकालमें पृथ्वी जीव जन्तुओंसे भरी मालूम होने लगी। ग्रीष्म ऋतुके सूर्यको भाँति उनका तेज होने के कारण श्रमणोंको विहार करना निषिद्ध है, अतः असा हो रहा था । कानों पर कुण्डल संपूर्ण मगरल शशांउम्हारी प्राज्ञासे यदि वे उद्यानगृह में वर्षाकाल बिता कर नगर. ककी भौति चमकते थे,वक्षस्थल सेवतहारसं शरदऋनुके धवल ने प्रवेश किए बिना ही विदेश चले जाय तो भी मेरा वचन मेघालंकृत मन्दराचलकी भांति शाभायमान था। कदा और तुमने मान्य किया, समझूगा । नमुचिने कहा जो मेरे लिए केयूर पहिने हुए हाथ इन्द्र सुषकी भांति भासित होते थे। ध्य हैं, वे मेरे उद्यानों में भी कैसे रह सकते हैं ? विष्णु- मुक्कामोंके पालम्ब और प्रवचूत सूर्य मंडलको माला
SR No.538012
Book TitleAnekant 1954 Book 12 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1954
Total Pages452
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size27 MB
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