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अनेकान्त
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द्वारा निर्मित बतलाया है। यह वस्ती इस पहार पर सबसे मजियणवस्ति-इस मन्दिरमें अनन्तनाथ पुरानी ज्ञात होती है।
स्वामीको साढ़े तीन फुट उसत मूर्ति है। बाहरी ४ शातिनाथवस्ति-इस मन्दिरमें भगवान दीवारके मामपास फूलदार चित्रकारीके पत्थरोंका शान्तिनाथकी " फुट ऊँची कायोत्सर्ग मूर्ति विराज. वेरा भी है।
१० परडुकट्टेवस्ति--इसमें भादिनाथ भगशनकी सुपार्श्वनाथवम्नि--इस मन्दिरमें . तीर्थंकर
५ फुट ऊँची एक मूर्ति चमरेन्द्र सहित विराजमान है। सपार्श्वनाथकी कण वाली ३ फुटी ऊँची मूर्ति चमरेन्द्रों इस मन्दिरको सन 1916 में सेनापति गंगराजकी भार्या सहित विराजमान है।
लक्ष्मीने बनवाया था। ६ चन्द्रप्रभवस्ति-इसमें चन्द्रप्रभ भगवानकी ३
११ सवतिगन्धवारणवस्ति-इस मन्दिरको सन् कुट ऊँची पद्मासनमूति विराजमान है । मन्दिरमें गर्भगृह,
११२३ में विष्णुवर्द्धनकी महारानी शान्तलदेवीने बनवाया सुखनासि, नवरंग और एक ड्योढ़ी है। सुग्वनासिमें उक्त
था। इसका नाम भी उक्त रानीके उन्मत्त एक हाथीके तीर्थकरके यक्ष और यक्षिणी श्यामा तथा ज्वालामालिनी विराजमान है। बाहरको भीतपर एक लेख उस्कोर्श
कारण पड़ा है। इसमें शान्तिनायकी ५ फुट उन्नत प्रतिमा है जिससे ज्ञात होता है कि इसका निर्माण प्राठवों
चमरेन्द्र सहित प्रतिष्टित है।। शताब्दीके गंगवंशी राजा श्रीपुरुषके पुत्र शिवमारने
१२ तेरिनवस्ति-इसके मन्मुख रथाकार इमारत बनी किया है।
हुई है, इसे बाहुबलि वस्ति भी कहा जाता है, क्योंकि चामुण्डरायवस्ति-यह मन्दिर बहुत सुन्दर है, इसमें बाहुबलीकी ५ फुट ऊँची मूर्ति है। सामने रथाकार इसके ऊपर भी मदिर तथा गुम्मट है। इसमें गर्भगृह, सुख मन्दिर पर चारों ओर जिन मूर्तियां उत्कीर्णित है। इसे नासि और नवरंग भी। नीचे नेमिनाथजी फुट उंची विष्णुवर्द्धनके समय पोयसबसेठकी माता माचिकच्चे और पल्पकासन मूर्ति चमरेन्द्रसहित विराजमान है। गर्भग्रहके नेमिमेठकी माना शान्तिकम्वेने बनवाया था। बगबमें सर्वान्हयक्ष और कृष्मांडिनी यक्षिणी प्रतिष्ठित १३ शानीश्वरवस्ति-इसमें शांतिनाथ भगवानहैं। बाहरी द्वारके बगल में भीतपर जो शिलालेख अंकित की मूर्ति है। है उससं ज्ञात होता है कि इस मन्दिरका निर्माण चांमुण्ड- १४ कूगे ब्रह्मदेव स्तम्भ-यह स्तम्भ गंगवंशी गयने सन् १८२के बगभग कराया है। नेमिनाथ भगवान
राजा मारमिह द्वितीयकी मृत्युका (सन् १७४) की मूर्तिके पासनपर जो लेख सन् ११३८ का उत्कोणित है उससं जान पड़ता है कि गंगराज सेनापतिके पुत्र एचनने
१५ महानवमी मंडप-कट्टले वस्तिके दक्षिण दो त्रैलोक्यरंजन या बाप्पण नामक चैत्यालय निर्माण कराया
सुन्दर चार खम्भे वाले मंडप पूर्व मुख पास-पास हैं। हर था, जो इस समय नहीं है। नेमिनाथ की यह मूति बींसं
एक स्वम्भे पर लेख अंकित हैं। नं. ६६ (४२) के लेखसे जाकर विराजमान की गई। उपरके खण्डमें पार्श्वनाथकी
जान पड़ता है कि यह जैनाचार्य नयकीर्तिका स्मारक है जिसे एक ३ फुट ऊँची मूर्ति है।
मन् १७६ में स्वर्गवास होने पर उनके शिष्य राज मंत्री ८ शासनवस्ति-इस मन्दिरको सेनापति गंगराजने
नागदवने स्थापित किया था। इस प्रकारके कई स्तम्भ इस बनवाया था गर्भगृह ५ फुट ऊँची भगवान मादिनाथको
पहार पर मौजूद हैं। चमरेन्द्र महित मूनि विराजमान है। द्वारपरके लेखसे ज्ञात होता है कि गंगराजने सन् ११३८ में 'परमप्राम' नाम
१६ इरुवे ब्रह्मदेव मन्दिर इसमें ब्रह्मदेवकी मूर्ति का एक गांव भेंट किया था, जो उस विष्णुवर्द्धन प्राप्त हुमा है, यह सन् १६० का बनवाया हुआ है। था। सुखनासिमें गोमुख यच और चक्रेश्वरी नामक १७ कन्डुन दोन-ऊपरके मन्दिरके उत्तर-पश्चिम यक्षिणीकी मूतियां हैं। बाहरी दीवारों और स्तम्भों में कहीं एक सरोवर है जिसे बेलसरोवर कहते है। यहाँ कई कहीं प्रतिमाएं उत्कीर्ण की हुई है।
शिलालेख है।