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किरण ८]
वामनावतार और जैन मुनि विष्णु कुमार
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१८ लकीडोन-यह दूसरा सरोवर है इसे लक्की तीन बार । महामस्तिकाभिषेकके दिन जनताकी अपार भीड नामकी एक स्त्रीने बनवाया था। इसमें ३. शिलालेख थी। जैन समाजके अतिरिक्त इतर समाजकी उपस्थिति भी उस्कीणित हैं जो वी १० वीं शताब्दीके हैं। अनेक अधिक तादादमें थी। उस समय दोनों पहाड़ों पर जनता यात्रियों जैनाचार्यों, कवियों, आफिसरों और उच्च मस्तकाभिषेकका अपूर्व दृश्य देखने के लिये उत्सुक थी। पदाधिकारियोंके नाम भी अंकित हैं। इसका संरक्षण मैंने स्वयं चन्द्रगिरी पर्वत परसे अभिषेकका वह रमणीय आवश्यक है
श्य देखा, उस समय जो आनन्दातिरेक हुआ वह वचना१६ भद्रबाहगुफा-इस गुफामें भद्रबाहुश्रुत केवलीके तीतर।
तीत है। दुग्धसे अभिषेक होने पर मूर्तिका सर्व शरीर
अभिषेक चरण अंकित हैं। इसकी मरम्मत करते समय सन् १.. शुक्ल प्राभासे दैदीप्यमान हो रहा था। अम्य द्रव्योंसे का एक लेख नष्ट हो गया है।
अभिषेक करने पर उसका वह रूप परिवर्तित हो गया था। २० चामुण्डराय चट्टान-इस पहाड़ के नीचे खुदा और ऐसा जान पड़ता था कि उस प्रकृत रूपमें कुछ विकृति हुमा एक पाषाण है। कहा जाता है कि चामुण्डरायने सी आगई, किन्तु मुखाकृतिको वह स्निग्ध सौम्यता अपनी गोम्मटेशकी मूर्तिको उदाटित करनेके लिए इस परमे बाण आभासे और भी उसे उद्दीपित कर रही थी। ता.मार्चकी चलाया था। इस पर जैन गुफाओंके चित्र हैं और उनके रात्रिको वीरसेवा मन्दिरका नैमित्तिक अधिवेशन बाबू मिश्रीनीचे नाम भी अंकित हैं।
लाजजी कलकत्ताकी अध्यक्षतामें सानन्द सम्पन्न हुआ। श्रवणबेलगोल में हम लोग ६ दिन ठहरे मैंने भगवान और ता. . के प्रातःकाल हम लोग श्रवणबेलगोलसे माहवलीकी ६-७ बार दोनों वक्त यात्रा की,और चन्द्रगिरीकी हासनके लिये चल दिये।
-क्रमश:
वामनावतार और जैन-मुनि विष्णुकुमार
[ लेखक: श्री अगरचन्द्र जी नाहटा ] अनुकरण-प्रियता, प्राणियोंका सहज स्वभाव है। हृदय में घर कर चुकी हैं ! उनका प्रभाव उसके जीवन में बुद्धि का विकास आयु और शारीरिक स्थिति पर निर्भर और स्वभावमें अवश्य विद्यमान रहता है। बड़े होने पर होता है, उसमे पूर्व प्रत्येक प्राणधारी अनुकरणके जरिये ही भी वेशभूषा, रीति, रिवाज, प्राचार विचार एवं प्रवृत्तियों आगे बढ़ता है । जीवन व्यवहारकी शिक्षाए सब अनुकरण- में अधिकतर अनुकरणता ही प्रधान रहती है। अधिकांश प्रियताके कारण ही प्राप्त होती है। पशुओंका जीवन तो जनसाधारणका व्यवहार,उन्हीं पर निर्भर रहता है, विचारोंप्रायः इसी पर भाधारित रहता है। क्योंकि उनमें बुद्धिका की गहराई बुद्धिकी विलक्षणता कितने व्यक्तियोंको मिलती विकास,स्वतन्त्र विचार व रक्षणके योग्य नहीं हो पाता वे सोच है और इनके विना स्वतन्त्रपथ निर्माण कठिन ही है। नहीं सकते । मनुष्यमें भी बालकका स्वभाव व विकास भादान-प्रदान विश्वका सनातन नियम है मनुष्य जो इसो अनुकरण वृत्तिपर ही अवलम्बित है। वह अपने प्रास- विचार और चिन्तन करता है, उसका प्रचार भी करता पास जैसा देखता है, सुनता है, अनुभव करता है तदनुरूप रहता है, वह अपने में ही सीमित नहीं रहता। उसका उसका जीवन इनसा है । भावी जीवनके निर्माणकी तैयारी प्रभाव भासपासके व्यक्तियों पर पड़ता है। वैसे ही दूसरों इसी समय हो जाती है उस समय जो स्वभाव, वृत्तियां, का उन पर । जिसका व्यक्तित्व अधिक भाकर्षक और तरीके, बालक अपना लेता हैं उनका प्रभाव उसके जीवन प्रभावशाली होता है। उसका प्रभाव अधिक पदना स्वाभाभर दिखाई देता। विवेककी परिपक्वता अथवा प्रबलता विक ही है। एक प्रतिभाशाली व्यक्ति अपने विचारोंको होने पर यदि वह सुधरता है, नये रास्ते पर मुबता भी है, ऐसे ढंगसे व्यक्त करता है, कि दूसरा व्यक्ति या सहस्त्रों वो भी बहुत सी बातें जो दूसरों के अनुकरण द्वारा उसके व्यक्ति उसके विचारोंस तत्काल प्रभावित होजाते हैं, यावद