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करण
हमारी तीर्थ यात्राके संस्मरण
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एक गोल पात्र बना हमा है जिसका नाम 'ललितसरोवर' भोर भीति बनी हुई है जो १०० फुट लम्बी और २२५ है। अभिषेकका जल उसी में एकत्रित होता है।
मोम्मटेश्वर-दारकी बाई ओर एक पाषाण पर उत्कीय पाश्वनाथवस्ति-इसमें भगवान पार्श्वनाथकी हुए शक संवत् ११.२ के रोप्पनकविके कन्नर काग्यसे इस ५ फुट ऊँचीकायस्सर्ग सप्तफणान्वित मूर्ति विराजमान बातका पता चलता है कि गंगवंशीय राजा राचमलके है। इस पहाड़ी पर यह मूर्ति सबसे उन्नत है। इसके सेनापति राजा चामुण्डरायने गोम्मटेशकी इस विशाल नवरंगमें उत्कीणित शिलालेख नं. ६.सं प्रकट है कि मूर्तिका निर्माण करवाया था। इस बातकी पुष्टि बाहुबली- शक सं० १०५० सन् १२२६ में यहाँ मस्तिषेण मलधारीकी मूर्ति के घरण वाले चामुण्डरायके निम्न कमी लेखसे का समाधिमरण हुमा था। इसके सामने एक मानस्तम्भ भी होती है। 'श्री चामुगडराजे माडिसिदं'।
हैं जिसमें चारों तरफ मूर्तियां खड़ी हुई है। नीचे दक्षिण इस मूर्तिकी प्रतिष्ठा २३ मार्च सन् १,०२८ मे सम्पन
की भोर पद्मावतीदेवीकी पचासन मूर्ति है । पूर्वमे यह खदे हुई है। मूतिका प्रतिष्ठापक उस समयका सुयोग्य वीरगनानी
हुए हैं और उत्तरमें बैठी हुई कूष्मांदिनी देवी है क्या और धर्मनिष्ठ राजा था, साथ ही विद्वान और कर्तव्यनिष्ठ
पश्चिममें ब्रह्मदेव नामका क्षेत्रपाल है। अनन्त कविक ग्यक्ति था। वह अपनी कला कृतियोंके द्वारा अमर है।
गोम्मटेश्वर परितके अनुसार इस मानस्तम्भको मैसूरवह परचकोटिका लेखक भी था, यह उसके 'चामुण्डराय
नरेश चिकदेवराय प्रोडयरके समय (सन् १६७२नामक' कनही पुराणके अवलोकनसे स्पष्ट है।
१७.४) मे जैन व्यापारी पुट्टय्याने बनवाया था। विन्ध्यगिरि पर्वतका परकोटा गंगराजने शक सम्बत्
२ कत्तलेवस्ति-इसका नाम पद्मावतीवस्ति भी है। ०३६ सन् . में बनवाया था, जो होयसल नरेश इसम भगवान मादिनाथकी ६ फुट उसत मूर्ति चमरेंद्रहित विष्णुवर्द्धनका मन्त्री था। इस परकोटे भीतर जो चौवीस
विराजमान है। भासनके लेख (..)संज्ञात होता है तीर्थकरांकी मूर्तियां विराजमान हैं, जिनकी संख्या १३ है कि होय्यसल राजा विष्णुवर्द्धनके सेनापति गंजराजने इम और जिन्हें नयकीति सिद्धान्तदेव और उनके शिष्य बान- वस्तीको अपनी माता पचयम्वेके लिये मन् १11८ (वि.. चन्द सिद्धान्तदेवके शिष्य भिन्न भिन श्रेष्ठियों द्वारा
सं०110) में बनवाया था। और इसका जीर्णोद्धार प्रतिष्ठित किया गया है।
१६ वर्षके करीब हुए जब मैसूर राजघरानेकी स्त्रियांने,
जिनके नाम देविरम्मत्री और केम्पमती है। इस विम्यगिरि पर अन्य अनेक वस्तियाँ बनी हुई हैं जिनका केवल नामोल्लेख यहाँ पर किया जाता है। अन्य
३ चन्द्रगुप्तवस्ति-इस मन्दिरमें तीन कोठरी हैं ग्रन्थों में उनका परिचय निहित है पाठक वहाँसं देम्बनेका
जिनमे दाहिनी थोर पद्मावतीदेवी और बाई पार इष्मांबत्न करें । ये वस्तियाँ विभिन्न समयों पर अनेक व्यक्तियों
हिनी देवो है और मध्यमें भगवान पार्श्वनाथकी मृति। द्वारा निर्मित हुई हैं।
वरामदमे दाहिनी तरफ धरणे द्र और वाई तरफ मन्दि
यह है, ये सब मूर्तियाँ बैठ प्रासन है। इस वस्तीके __, सिद्धरवस्ति, २ अखंडवागिलु, ३ सिद्धग्गुण्ड, ४ भीतर द्वारों पर बहुत सुन्दर खुदाई की हुई है। इसमें गल्लकायजिवागिल. त्यागदब्रह्मदेवस्तम्भ ६ कारण जो दिन उस्कोणित हैं उनमें भववाह श्रतकवली और वम्ति, ७ भोदंगलवस्ति, ६ चौबीसतीर्थकर वस्ति, और मौर्य चन्द्रगुप्त के जीवन-सम्बन्धि अनेक दृश्य अंकित हैं। * ब्रह्मदेव मन्दिर।
इसमें दासजहनामके चित्रकारका नाम १२ वी शताब्दीके चंद्रगिरि-प्राचीन लेखो इस पर्वतका नाम कटवप्र' अक्षरांमें उत्कीर्ण किया हुआ है। मध्य कोठरीके सामने या 'करणप्पु' पाया जाता है। इस "चिक्कबेट्ट' या छोटा कमरे में खड़ी हुई क्षेत्रपालको मूर्तिक मासनका (१४०) पहाब भी कहा जाता है। तीगिर और ऋर्षािगरि लेख भी सम्भवतः उक्त चित्रकार द्वारा सन् ११४५ में नामस भी उस्लेखित होता है। इस पहायक सभी जैन- खोदा गया है। १७ वीं सदी मुनिवंशाभ्युदय नामक मन्दिर द्राविडी ढंगके बने हुए हैं। इन मन्दिरोंके चारों काव्यमें चिदानन्द कविने इस मन्दिरको चन्ट्रगुप्तके वंशजों