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________________ हमारी तीर्थ यात्राके संस्मरण (परमानन्द जैन शास्त्री) श्रवणबेलगोल नामका एक छोटासा गांव है, वहाँ की भक्ति तत्पर रहते थे। जैनधर्मके संपोषक और जैन जैनियोंके मन्दिरों भादिके अतिरिका अन्य कोई वस्तु देखने साधुओंको माहारादि देने, जैनमन्दिरोंका निर्माण एवं जीणोंयोग्य नहीं है। इस प्रामके दक्षिणकी ओर वियागार वार करने और मैन पुराणोंको सुनने के विशेष उत्साहको खिचे और उत्तरकी भोर चन्द्रगिरि मामक पहाब हैं। इन पर्व हुए थे। इसकी उपाधि सम्यक्त्व चूडामणि थी। इनके गुरु तांके मध्यमें श्रवणबेलगोल ( श्वेत सरोवर ) नामका गाँव कुक्कुटासन मलधारीदेव थे। हुल्लराजकी धर्मपत्नीका नाम बसा हुआ, जिसे जैनबद्री भी कहा जाता है। यह गांव पदमावतीदेवी था। मंत्री हुल्लराजने नयकीर्तिमुनिके शिष्य मैसूरराज्यके हासन जिलेका प्रसिद्ध ऐतिहासिक स्थान है। भानुकीर्तिको नरसिंहदेवके विजययात्रासे लौटने पर इस यह स्थान कितना सुरम्य है इसे बनानेकी अावश्यकता मन्दिरकी रक्षार्थ 'सवणूरु' नामका एक गाँव घारापूर्वक नहीं।, यह स्थान अनेक महर्षियोंकी तपोभूमि और समा- दान में दिया था। कोपण में नित्यदानके लिये वृत्तियोंका घिस्थान रहा है। यहाँ अनेक शिक्षालेख, विशाल मूर्तियाँ प्रबन्ध किया । गङ्गनरेशों द्वारा संस्थापित प्राचीन 'केलंप्राचीन गुफाएँ और अनेक भन्यमन्दिर विद्यमान है। यह गैरे' में एक विशाल जिनमन्दिर, और अन्य पाँच जिनपही स्थान है जहाँ ईसाकी तीसरी शताब्दी पूर्व भद्रबाहु मन्दिर निर्माण कराये । श्रवणबेल्गोल में परकोटा रंगशाला अतकेवलीने समाधिमरण पूर्वक दहोत्सर्ग किया था। तथा दो पाश्रमों सहित इस चतुर्विशति तीर्थंकर मंदिरका और उनके शिष्य मौर्यसाम्राट चन्द्रगुप्तने अपने गुरु भन्द- निर्माण कराया । इस वस्तिमें चतुर्विशति तीर्थकरोंकी प्रतिबाहुकी चरण पूजा करते हुए अपना शेष अन्तिम जीवन माएं प्रतिष्ठित हैं। इसी कारण इस मन्दिरको चतुर्विशति म्यतीत किया था। प्राचार्य भद्रबाहुने इन्हें दीक्षित किया वसति भी कहा जाता है यह मन्दिर बड़ी विशालताको था, इनका दीक्षा नाम प्रभाचन्द्र रक्खा गया था। इसी लिए हुए है, और बड़े-बड़े पाषाणोंसे निर्मित है। इस स्थान पर मंगवंशी राजा रायमल द्वितीयके सेनानी, वैरी- मन्दिरमे गर्भगृह, नवरंग, द्वारमाप और उसके चारों कुखकालदण्ड रणराजसिह, समरधुरधर आदि अनेक पद और एक प्राकार (कोट ) बना हुमा ।इस मन्दिरके विभूषित महामात्य राजा चामुण्डायने बाहवनीकी विशाल सामने एक मानस्तम्भ और एक पाएकशिना भी मूर्तिको उद्घाटित कर सन् १०२८ में उसका प्रतिष्ठा बनी हुई है जिसे वहकि साहूकार चन्द्रव्याने बनवाया था कार्य सम्पस किया था। ऐसा प्रवणबेगोलके शिलालेखोंसे भडारबस्तिके पश्चिमकी मार जो शक सं. १08 ज्ञात होता है। राजा चामुण्डरापप्राचार्य भजितसनके शिष्य का शिलालेख अंकित है। उसमें होय्यसल नरेश नरसिंहके थे । गोम्मटसारके कर्ता आचार्य नेमिचन्द्र सिद्धान्त- वंशका विस्तृत परिचय दिया हुआ है और चतुर्विशति चक्रवर्तीने कर्मकाण्डकी अन्तिम प्रशस्तिमे भगवान् मन्दिरकी वन्दनाकर 'सवणूस' प्रामके दानके उलेखके साग नेमिनाथको एक हस्त प्रमाण इन्द्रनीलमणिमय प्रतिमाके उनके लघुभ्राता लक्ष्मण और अमरका नाम भी उत्कीवि चामुण्डराय द्वारा बनाये जानेका उल्लेख किया है।x है। नरसिंहदेवने इस मन्दिरका नाम 'भव्य चूडामणि' इस गांवम उक्त दोनो पहाबोंके अतिरिक्त अनेक जैन रक्खा था। इस लेख में हुल्लय्याटेगडे, और बोकय्य बसदि अथवा मन्दिर विद्यमान हैं जिनका परिचय निम्न आदिके द्वारा प्रार्थना पत्र देकर गोम्मटपुरके कुछ टैक्सोंका प्रकार है: दान इस चतुर्विशति कम्तिको करानेका उल्लेख भी उत्की१ भण्डारवसदि-यह मन्दिर होयसल वंशके प्रथम र्णित है। लेखका अन्तिम भाग बहुत घिस गया है वह राजा नरसिंह राजके कोषाध्यक्ष अमात्य (भण्डारी) हुल्ल साफ नहीं पढ़ा जाता। दर्शन मण्डपमें ब्रह्मदेव और राजमे शकसं. 10. वि. सं.२ में बनवाया था पद्मावतीकी मूर्तियां प्रतिष्ठित है। इस पसदि में कई शिलाइस कारण इसका नाम भंडारवस्ति पदा। हुल्लराज वानि लेख भी अंकित हैं जिसमें इस मन्दिरके बनवाए जाने पीपराज और लोकाम्बिकाके पुत्र थे। वे सदा जिनेन्द्र प्रादिका उक कथन दिया है। शकसं० १२०.वि. देखो, चन्द्रगिरि पर्वतका शिलालेख नं.१ सं० १३३५ के एक शिलालेखमें इसी भयडारियवसतीके देखो, गोम्मटसार कर्मकाण्ड गाथा नं. १२ देवर वस्लमदेवके निस्य अभिषेकके लिए उदयचन्ददेवके
SR No.538012
Book TitleAnekant 1954 Book 12 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1954
Total Pages452
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size27 MB
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