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________________ किरण ७] हमारी तीर्थयात्रा संस्मरण [२३० - विशालकीर्तिभी रहे हैं। कोल्हापुरसे चलकर हम लोग अतः खारा पानीका ही उपयोग करना पड़ा। और भोज' स्तवनिधि पहुँचे। मादिमे निवृत्त होकर बजेके करीब हमलोग चाराय स्तनिधि दक्षिण प्रतिका एक सुप्रसिद्ध अतिशय क्षेत्र पहनके लिए चलदिये । और 1 बजेके करीब चाराय है। यहां चार मन्दिर व एक मानस्तम्भ है। मन्दिरके पहन पहुंच गए। और सराय पहनसे ८॥ बजे चलकर । पीछेके महातेकी दीवाल गिर गई है जिसके बनाये जानेकी बजेके करीब श्रवणबेलगोल (श्वेतसरोवर) पहुँच गए, रास्तेमावश्यकता है। यहां लोग अन्य तीर्थक्षेत्रीकी भांति मान- चलते समय श्रवणबेल्गोल जैसे २ समीप पाता जाता मनौती करनेके लिये आते हैं। उस समय एक बरात आई भा। उस जाकप्रसिद्धमूर्तिका दूरसे ही भम्य दर्शन होता हुई थी, मन्दिरोमें कोई खास प्राचीन मूर्तियां ज्ञात नहीं जाता था। और गोम्मटेश्वर की जयके नारोंसे प्रकाश गूंज हुई। यह क्षेत्र कब और कैसे प्रसिबिमें पाया । इसका कोई उठता था रास्तेका दृश्य पदाही सुहावना प्रतीत होता इतिवृत्त ज्ञात नहीं हुमा । हम लोग सानंद यात्रा कर भा। और मूर्ति के दूरसे ही दर्शन कर हृदय गद्गद् हो बेलगांव और धारवाड होते हुए हुबली पहुंचे। और रहा था। सभीके भावों में निर्मलता, भावुकता और मूर्तिके हुबलीसे हरिहर होते हुए हमलोग दावणगिरि पहुँचे । संठ समीपमें जाकर दर्शन कर अपने मानवजीवनको सफल जीकी नूतन धर्मशालामें ठहरे । धर्मशालामें सफाई और बनानेकी भावना अंतरमें स्फूर्ति पैदा कर रही थी, कि पानाकी अच्छी व्यवस्था है। नैमित्तिक क्रियानासे इतने में श्रवणबेलगोला गया । और मोर अपने निवृत्त होकर मंदिरजी में दर्शन करने गये। यह मंदिर अभी निश्चित स्थान पर रुकगई । और सभी सवारियाँ गम्मटकुछ वर्ष हुए बनकर तय्यार हुआ है। दर्शन-पूजनादि देवकी जयध्वनिके साथ मोटरसे नीचे उतरीं । और यही करके भोजनादि किया और रातको यहां ही भाराम किया, निश्चय हुआ कि पहले ठहरनेको व्यवस्था करने बादमें सब और सबेरे चारबजे यहांसे चलकर एक बजेके करीब पार- कार्यों से निश्रित होकर यात्रा करें । अतः प्रयत्न करने पर सीकेरी पहुँचे, वहां स्नानादिसे निवृत्त हो मन्दिरजीमे दर्शन गाँवमें ही एक मुसलमानका बड़ा मकान सौ रुपये किये । पार्श्वनाथकी मूर्ति बनी ही मनोज्ञ है । एक शिला- किराये में मिल गया और हमलोगोंने " बजे तक लेम्व भी कनादी भाषामें उत्कीर्य किया हुमा है। यहां सामानमादिकी व्यवस्थासे निश्चित होकर स्थानीय समय अधिक हो जानेसे मीठे पानीके नल बंद हो चुके थे. मन्दिरों के दर्शनकर पाराम किया । क्रमशः परमानन्द जैन विवाह और दान श्रीबाला राजकृष्णजी जैनके लघु भ्राता लाला हरिश्चन्द्रजी जैनके सुपुत्र बाबू सुरेशचन्द्रका विवाह मथुरा निवासी रमणलाल मोतीलालजी सारावानीकी सुपुत्री १० सुशीला कुमारीके साथ जैन विधिसे सानन्द सम्पन्न हुभा। वर परकी भोरस १०००) का दान निकाला गया, जिसकी सूची निम्न प्रकार है:१०१) वीर सेवा मन्दिर, जैन सन्देश, ऋषभ ब्रह्मचर्याश्रम, मधुरा, अग्रवाल कालेज मथुरा अग्रवाल कालेज मथुरा, अग्रवाल कन्या पाठशाला मथुरा प्रत्येक को एक सौ एक। . २१) वाली संस्थाएं स्यावाद महाविद्यालय बनारस, उदासीनाश्रम ईसरी, अम्बाला कन्या पाठशाला, समन्द्रभद्र विद्यालय २५) जैन महिलाश्रम, देहली। अग्रवाल धर्मार्थ औषधालय, मथुरा, गौशाला मथुरा प्रत्येक को २५) २१) मन्दिरान मथुरा, जयसिहपुरा, वृन्दावन चौरासी, घिया मंडी, और पाटी। जैन अनाथाश्रम देहली। ___ भाचार्य नमि सागर औषधालव देहली हर एक को इक्कीस । ११) वाली संस्थाएं और पद जैन बाला विश्राम भारा, मुमुच महिलाश्रम महावीर जी, जैनमित्र सूरत । ७) परिन्दोंका हस्पताल, बालमन्दिर. देहली। २) अनेकान्त, जैन महिलादर्श, अहिंसा, वीर, जैन गजट देहली, प्रत्येक को पांच । ।) मनिवाडर फीस । बीरसेवामन्दिरको जो 1.1)रुपया विक्विग फंडमें और अनेकान्त को १) रुपया जो सहायता प्रदान किये हैं। उसके लिये दातार महोदय धन्यवादके पात्र है।
SR No.538012
Book TitleAnekant 1954 Book 12 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1954
Total Pages452
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size27 MB
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