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________________ साहित्य परिचय और समालोचन तीर्थकर बदमान-लेखक श्री रामचन्द्रजी राम- है। अबकी बार समुदत वाक्योंके नीचे उस प्रन्यका नाम पुरिया बी. कॉम. एस. । प्रकाशक, हम्मीरमा पूनम मय उद्देशादिके दे दिया गया है। प्रस्तावना गाक्टर भगचन्द गमपुरिया, सुजानगढ़ (बीकानेर) । पृष्ठ संख्या वान दासजी लिखी है। छपाई-सफाई अच्छी है। ४७० । मूल्य जिन्द प्रतिका) रुपया। कुण्डजपुर लेखक'नीरज' जैन । प्रकाशक पं. मोहनलाल प्रस्तुत पुस्तकका विषय उसके नामसे ही स्पष्ट है। जने शास्त्री, पुरानी घरहाई जवनपुर (मध्यप्रदेश) इस पुस्तक में तीर्थकर बईमानका श्वेताम्बरी मान्यतान- पृष्ठ संख्या २८ मूल्य पांच माना। साप परिचय दिया गया है। इस पुस्तकके दो भाग अथवा प्रस्तुत पुस्तकमें 'नीरज' जीने ५२ बखित पोंमें खगड हैं। जिनमें से प्रथममें महावीरका जीवन परिचय है कुण्डलपुर क्षेत्रका परिचय देते हुए वहां की भगवान् और दूसरेमें उत्तराध्ययनादि सूत्रयोंपरसे उपयोगी महावीर की उस सातिशय मूतिका परिचय दिया है। विषयोंका संकलन सानुवाद दिया गया है और उन्हें शिक्षा- कविता सुन्दर एवं सरल है। और पढ़ने में स्फूर्ति दायक पद, निर्गन्धपद, दर्शनपद और कान्तिपदरूप चारविभागो- है। कविता के निम्न पोंको देखिये जिनमें कविने में यथाक्रमविभाजित करके रक्खा है। इन दोनोंमें जो मूर्ति भंजक प्रारंगजेब की मनोभावना का, जो टाकीलेकर सामग्री दी गई वह उपयोगी है। मूर्तिके भंग करने का प्रयत्न करने वाला थापरन्तु यह खास तौरसे नोट करने लायक है कि तीर्थ- वईमानका जीवन-परिचय अपनी साम्प्रदायिक सबसे आगे औरंगजेब, करमें टाँको लेकर पाया। मान्यतानुसार ही दिया गया है। उसमें कोई नवीनता पर जाने क्योंकर अकस्मात उसका तन भौ' मन बर्राया मालूम नहीं हाती । दि प्रस्तुत ग्रन्थमें भगवान महापोरके जीवनको असाम्प्रदायिक रूपसे रक्खा जाता वह बोतराम छवि निनिमेष, अब भी पैसी मुस्काती थी तो यह अधिक सम्भव था कि उससे पुस्तक उपयोगी हो थी अटल शाँति पर लगती थी उसको उपदेश सुनाती थी नही होती, किंतु असाम्प्रदापी जनोंके लिए भी पठनीय और संग्रहपीय भी हो जाती। पुस्तककी प्रस्तावना सुन पड़ा शाहके कानोंमें, मिट्टीके पुतले सोच जरा, बाबू यशपालजीने लिखी है। यह भावार, धनधान्य सभी-कुछ,रह जावेगा यहीं धरा फिर भी श्रीचन्द्रजी रामपुरियाने उक्त पुस्तकको २१ सरल और उपयागी बनानेका भरसक प्रयत्न किया है। 'जीवनकी पारामें भव मी, तू परिवर्तन ला सकता है इसके लिए ये बधाइके पात्र हैं। पुस्तकको बपाई और अप भी भवसर है भरे मूढतू'मानव'कहला सकता है गेटअप, सुन्दर है। २ महावीर वायी-सम्पादक, पं पेचरदासजी दोशी, अहमदाबाद । प्रकाशक, भारत जैन महामान बर्षा। सुनकर कुछ चौका बादशाह, मस्तक भन्नाया सारा पृष्ठ संख्या सब मिला कर २७०, साइज छोटा, मूल्य सवा अब तक कृत्यों पर उसके, मनने उसको ही विकारा दो रुपया। उक्त ग्रन्धका विषय उसके नामसे स्पर प्रस्तुत यह भ्रम या अथवा सपना थाया मेरीहोमविभूलीथी पुस्तक श्वेताम्बरीय मागम अन्योंपरसे उपयोगी विषयों प्रतिमा कडबोली नहीं, किन्तु-यह सदा-गैर मामलीथाः का चयनकर उन सानुवाद दिया गया है। और पीसे पुस्तक प्रकाशकसे मंगाकर पड़ना चाहिये। उनका प्रथम परिशिष्ट संहत अनुवाद भी दिया गया -परमानन्द शास्त्री
SR No.538012
Book TitleAnekant 1954 Book 12 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1954
Total Pages452
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size27 MB
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