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अनेकान्त
[किरण
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पत्रिम 1 मील दूर बीडनामक स्थानपर किया कोल्हापुरसे उत्तरमें बस मील दूर वर्ती एक नगर है करता था ।
जिसका नाम बदगांव है। यहां एक जैन मन्दिर है। जिसे साकी १२वीं शताब्दी में कोल्हापुरमें कलचूरियोंके आदप्पा भग सेठीने सन् १६६५ में चालीस हजार रुपया साथ जिन्होंने कल्य के चालुक्योंको पराजित कर दक्षिण खर्च करके बनवाया था। देशपर अधिकार कर लिया था। चालुक्यराजाभोंके साथ इसी तरह कोल्हापुर स्टेटमें और भी अनेक ग्रामों में शिलाहार राजाओंका एक युद्ध हुआ था। उस समय सन्. प्राचीन जैन मन्दिरोंके बनाये जानेके समुल्लेख प्राप्त हो
(विक्रम सं० ११)से १२०६ (वि० सं० १३. सकते हैं। कोल्हापुर और उसके पास पासमें कितनेही १४ में शिलाहारराजा भोज द्वितीयने कोल्हापुरको अपनो शिलालेख और मूर्तिलेख है जिनका फिर कभी परिचय राजधानी बनाया था। और वहमनी राजाओंके वहाँ भाने कराया जावेगा। तक कोल्हापुरमें उन्हींका राज्य रहा।
इस नगरमें चार शिखर बंद मंदिर है और तीन चैत्या इस प्रदेशपर अनेक राजवंशोंने-अश्वभृत्य, कदम्ब, लय है । दिगम्बर जैनियोंकी गृह संख्या दिगम्बर जैन राष्ट्रकूट, चालुक्य, और शिलाहार राजाओंने-राज्य किया डायरेक्टरीके अनुसार २०१ और जन संख्या १०४६ है। है। चालुक्यराजाओंसे कोल्हापुर राज्य शिलाहार राजाओं वर्तमानमें उक संख्यामें कुछ हीनाधिकता या परिवर्तन नहीन लिया था। १३वीं शताब्दीमें शिलाहार नरेशोंका होना सम्भव है। शहरमें यात्रियोंके ठहरनेके लिये दो धर्मबन अधिक बढ़ गया था, इसीसे उन्होंने अपने राज्यका शाजाएँ हैं जो जैन मन्दिरोंके पास ही है । एक दिगम्बर यथेष्ट विस्तार भी किया। ये सब राजा जैनधर्मके उपासक मैन बोरिंग हाउस भी है, उसमें भी यात्रियोंको ठहरनेकी थे। इन राजाभोंमें सिह, भोज, बल्लाल, गंडरादिस्य, सुविधा हो जाती है। विजयादित्य और द्वितीय भोज नामके राजा बड़े पराक्रमी जैन समाजके सुप्रसिद्ध ऐतिहासिक विद्वान् डाक्टर
और वीर हुए हैं जिन्होंने अनेक मंदिर बनवाए और ए. एन. उपाध्ये एम. ए. हो. लिट् उक्त जैन बोर्डिङ्ग उनकी पूजादिके लिए गांव और जमीनोका दान भी हाउस में ही रहते हैं। भाप स्थानीय राजाराम कालिजमें दिया है।
प्राकृत और अर्धमागधीके अध्यापक है । बड़े ही .. कोल्हापुरके 'भाजरिका' नामक स्थानके महामण्ले- मिलनसार और सहृदय विद्वान है, जैन साहित्य और श्वर गण्डरादित्यदेवद्वारा निर्मापित त्रिभुनतिलक नामक इतिहामके मर्मज्ञ सुयोग्य विचारक, लेखक तथा भनेक चैत्यालयमें शक सं० ११२७ (वि. स. १२६.) में अन्योंके सम्पादक है। आप अध्यापन कार्यके साथ-साथ मूलसंघके विद्वान मेषचन्द्र विद्यदेवके द्वारा दीक्षित सोम साहित्य सेवामें अपने जीवनको लगा रहे हैं। श्रीमुख्तार देव मुनिने शब्दार्गवर्चान्द्रका नामक वृत्ति रची थी, जो साहव और मैंने अापके यहां ही भोजन किया था। प्राप प्रकाशित हो चुकी है।
उस समय अन्य कार्यमें अत्यन्त व्यस्त थे, फिरभी आपने शिलाहार राजा विजयादिस्यके समयका एक शिला चर्चाके लिये समय निकाला यह प्रसन्नता की बात है। लेख वमनी प्राममें शक सम्वत् १०७३ वि. सं. १२०८ मापसे ऐतिहासिक चर्चा करके बदी प्रसपता हुई। समाजका प्राप्त हुआ है, जो एपिग्राफिका इंडिकाके तृतीयभागमें को मापसे बड़ी प्राशा है। पाप चिरायु हों यही हमारी मुद्रित हुआ है, यह लेख ४४ लाइनका पुरानी कनदी मंगल कामना है। संस्कृत मिश्रित भाषामें उत्कीर्ण किया हुआ है, जिसमें कोल्हापुरमें भट्टारकीय एक मठ भी है, और भट्टारक बतलाया गया है कि राजाविजयादित्यने चोडहोर-काम- जी भी रहते हैं। उनके शास्त्रमंडारमें अनेक ग्रन्थ है। गावुन्द नामक प्रामके पारवनाथके दिगम्बर जैन मन्दिरकी अभी उनकी सूची नहीं बनी है। केशववर्गीकी गोम्मटअष्टद्वन्यसे पूजा व मरम्मतके खिये नावुक गेगोल्ला जिलेके सारको कर्नाटकटीका इसी शास्त्रभंडारमें सुरक्षित है, मूदलूर ग्राममें एक खेत और एक मकान श्रीकुन्दकुम्दान्वयी और भी कई अन्योंकी प्राचीन प्रतियां अन्वेषण करने पर श्रीकुलचन्दमुनिके शिष्य श्रीमाधर्नान्दसिद्धांत देवके शिष्य इस मंहार में मिनेगी। यहांका यह मठ प्राचीन समयसे भीमनिन्दि सिद्धान्तदेवके चरव धोकर दान दिया। प्रसिद्ध है। यहां पर पं. माशापरजीके शिय वादीन्द्र