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________________ हमारी तीर्थ यात्राके संस्मरण (गत किरण कसे भागे] कोल्ह पुर दक्षिण महाराष्ट्रका एक शक्तिशाली नगर कई शिलालेख पाये जाते है.जो जैनियोंकि गत गौरवके रहा है इस नगरका दूसरा नाम सुनकपुर शिलालेखों में परिचायक है। उनसे उनकी धार्मिक भावनाका भी संकेत रविवखित मिलता है। कोल्हापुरका प्रतीत गौरव कितना मिलता है। ये शिवालेख, मूर्तिलेख मन्दिर और प्रशसमृह एवं शक्ति सम्पद रहा है इसकी कल्पना भी प्राज स्तियाँ प्रादि सब पुरातन सामग्री जैनियोंके पतीस गौरवकी एक पहेली बना हुआ है। कोल्हापुर एक अच्छी रियासत स्मृति स्वरूप है। पर यह बडे म्वेद के साथ लिखना पड़ता थी जो अब बम्बई प्रान्तमें शामिल कर दी गई है। यह है कि कोल्हापुर राज्यके कितने हो मन्दिरों और धार्मिक नगर पंचगंगा नदी के किनारे पर बसा हुआ है। और स्थानों पर वैष्णव-सम्प्रदायका कब्जा है अनेक भाज भी समृर-सा बगता है। परन्तु कोल्हापुर स्टेटके मन्दिरोंमें शिवकी पिगडी रख दी गई है। ऐसा उपद्रव कम मूर्ति और मन्दिरोंके वे पुरातन खण्डहरात तथा साम्प्रदा- हुमा इसका कोई इतिवृत्त मुझे अभीतक हात नहीं हो यिक उथल पुथल्ल रूप परिवर्तन हृदयमें एक टीस उत्पन सका । कोल्हापुरसे १ मील पलटाके पास पूर्वी भोर एक किये विना नहीं रहते, जो समय-समय पर विद्यार्थियों द्वारा प्राचीन जैन काजिज ( Jain College) था जिस पर उत्पातादिके विरोध स्वरूप किए गए हैं। कोल्हापुर स्टेटमें ब्राह्मणोंने अधिकार कर लिया है। कितने ही कलापूर्ण दिगम्बरीय मन्दिर शिव या विष्णु इसी तरह अंबाबाईका मन्दिर, नवग्रह मन्दिर और मंदिर बना दिये गए है। और कितने ही मन्दिर और शेषशायी मन्दिर वे तीनों ही मन्दिर प्रायः किसी समय मूर्तियाँ मर-अकरदी गई है। कोल्हापुर कितना प्राचीन जैनियोंकी पूजाको वस्तु बने हुए थे। इनमेंसे अंबाबाईका स्थान है इसका कोई प्रमाणिक उस्लेख अथवा इतिवृत्त मन्दिर पद्मावती देवी के लिए बनवाया गया था। कोल्हामेरे अवलोकन में नहीं पाया । परन्तु मन् १८८० में पुरके उपलब्ध मन्दिरोंमें यह मन्दिर सबसे बड़ा और एक प्राचीन बड़े स्तूपके अन्दर एक पिटारा प्राप्त हुभा था, महत्वपूर्ण है। यह मंदिर पुराने शहरके मध्यमें है। और जिसमें ईस्वीपूर्व तृतीय शतानीके मौर्यसम्राट अशोकके कृष्णपाषाणका दो खनका बना हमा है। यहांके निवासी समयके पक्षर ज्ञात होते हैं। इससे स्पष्ट हो जाता है कि जैनीलांग इस मन्दिरको अपना मन्दिर बतलाते हैं। इतना कोल्हापुर एक प्राचीन स्थल है। ही नहीं; किन्तु मन्दिरकी भीतों और गुबजों पर बहुतसी इस राज्यको सबसेपदी विशेषता यह है कि कांव्हा नग्न मूर्तियां और लेख अब भी अंकित है, जिनसे स्पष्ट पुर राज्यमें बत्तीस हमार जैन सैविबर (कृषक) है, जो प्रमाणित होता है कि यह मन्दिर जैन मंधका है। उक्त अपनी स्त्रियोंके साथ खेतीका कार्य करते है। बेतिहर मंदिरोंके पाषाण स्थानीय नहीं है किन्तु वे दूसरे स्थानोंसे अपने धर्मके सण उपासक और नियमोंके संपाकरे, बाकर लगाये गये हैं। उनमें कलात्मक खुदाईका काम तथाबदेही ईमानदार है। वह अपने मागदाको अदाबतो. किया हुधा है, जो दर्शकको अपनी ओर आकृष्ट किए बिना में बहुत ही कमलेशाते है।वना हो नहीं किन्तु अप- नहीं रहता। राध बनजाने पर भी अपवा निपटारा बाप ही कर लेते कोल्हापुर के पास-पास बहुतसी सविडत जैनमूर्तियाँ है। प्रकृतिवः पद और साइसी एवं परिश्रमी है, उन्हें उपलब्ध होती हैं। मुसबमान बादशाहोंने वीं वी अपने धर्मसे विशेष प्रेम है।कोल्हापुर राज्यके पास-पास शताब्दी में अनेक जैनमन्दिर बोरे और मूर्तियोंको संक्षित स्थानों जैनियोंने अनेक मन्दिर बनवाए है जिनमेंसे किया। जिससे उनका यश सदाके लिए कलंकित हो गया। कितने ही मन्दिर पाल भी मौजा है। वहाँ पर शक संवत् जब जैन बोग बाबापुरी पर्वत पर अंबाबाईका मंदिर बनवा १०१८ (विक्रम सम्बत् ११३) से कर सक सम्बत् .. हे। उसी समय राजा जयसिंहने अपना एक किला भी २८ (विक्रम सम्बत् ११)तको उत्कीर्द किये हुए बनवाया था। कहा जाता है कि यह सभा कोल्हापुरसे
SR No.538012
Book TitleAnekant 1954 Book 12 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1954
Total Pages452
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size27 MB
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