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________________ २५01 अनेकान्त तो पाप प्रकार परिडत थे। गौतमीवकाग्य एवं कई होता है। गौतमीय काध्यकी प्रशस्तिमें रूपचन्दजीने स्वोत्रादि आपके काव्य प्रतिभाके परिचायक है। सिद्धा- अपनेको जोधपुरके महाराजा अभयसिहसे सम्मान प्राप्त मत-चन्द्रिकात्ति आपके व्याकरण ज्ञान एवं गुणमाला करने वाला लिया है। इन महाराजाका समय १७८1 प्रकरण मादि जैन सिद्धान्तोंके गंभीर ज्ञानको सूचना देते से १८०५ सका है। प्रशस्तिका ह वो इस है। हेमी माममाखा, अमरू शतक, भतृहरि. शतकत्रय, प्रकार है। बापस्तवन भक्तामर, कल्याणमन्दिर, शतश्लोकी, सखिपात' रिलशिष्योऽभयसिंह नाम नपते बलिया महा कक्षिका मादि संकृत प्रन्योंकी भाषा टीका मापने राज- गाम्भीरार्थ, मईशास्त्रवत्वरसिकोऽहम् रूपचन्द्रा हृदयान् स्थानी व हिन्दोभाषामें की। प्रथम वार भाषाटीका हिन्दी प्रख्यातापर नाम रामविजयो, गश्वेशदत्ताशयाः। गय में लिखी गई है इससे प्राकृत संस्कृत हिन्दी व काम्ये कार्यमिमं कवित्व कसया श्रीगौतमीये शुभम् । राजस्थानी इस चारों भाषाओंके माप ज्ञाता व लेखक काम्य प्रतिभा प्रस्तुत काव्य मौका है इसकी टीका पापकी विद्यमानतामें ही समाकल्याणने बनानी प्रारम्भ की बाकरण, कोश, काम्य, वैयक और जैन सिद्धान्तके थी और उसकी पूर्णाहुति आपके स्वर्गवास होने के बाद विद्वान होने के साथ साथ भापका ज्योतिष सम्बन्धि ज्ञान भी हुई । यह ग्रन्थ टीका सहित बप चुका है। इस प्रन्यकी मलेखनीय हैं। मुहूर्त मणिमाला व विवाह पटल प्रापके प्रस्तावनामें पति नारायणराम प्राचार्य काम्यतीर्थने इस योतिष प्रन्थ है। आपके प्रशिष्य रामचन्द्र के रचयिता रचयिता काव्यकी प्रशंसा करते हुए लिखा है। पापके स्तुति अष्टकमें प्रापको पशास्ववादजयिका, प्रकृतमिदं काम्यमनेनैवोद्देश्येन जैनसारस्वतभांडागारे अष्टावधान करने में कुशन, इच्छाविपिके माविष्कारक, रत्नमिव चमकुरुते । जैन संप्रदाय प्रतिप्रमेयानुन्मखी कतुम् सकर समस्त वाङ्मय पारंगत, जीवनपर्यन्त, शीबधारक अहिंसादयावतानुगामिनं दानं दृढीकतु मेव च कवि सौम्बत मादि विशेषयोंसे युक्त बनाया है। गगनचन्द्रेण श्रीमतापारकेन रूपचंद्रण तदिदं काव्यउपाध्याय पद मुपानिबद्धम् । नामतस्तदिदं काम्यम् , किन्तु जैनसंप्रदाय पापकी विद्वत्ताके कारण ही प्राचार्य जिनसामसूरिने रहस्यबोधने प्रमाण संथा, वादग्रंथ महाकाव्यम् सिद्धान्तसंवत् १८१0 से पूर्व पापको उपाध्याय पदसे अलंकृत किया बोधने सम्यक् प्रभवति । था: खरतरगच्छकी परम्परा अनुसार जिस समयमें जो काम्य गगन रवैः श्री रूपचन्द्र कदै कवितानि गुम्फन उपाण्याव सबसे अधिक दीचा पर्याय में वृद्ध होता है। उसे पाटव तथा विद्यते पेन हि क्लिष्टोऽपि विषयोनीरसोपिच महोपाध्याय लिखा जाता है। आपने लंबी आयु पाई और वयों लोकानां हृदयावर्जनचमो भवति । ऋतु उपवनादि बोटी उम्र में ही दीक्षा लेनेके कारण चारित्र पर्याय भी खूब वर्णने तु कर्मधरा रचनास्त्येव, परं सिद्धान्त वववोधनेपाला। प्रतः पाप अपने समयके महोपाध्याय पद पर प्रति. ऽपि सैव वै शैली एकान्तभावेन प्रचंडनीतिमहदेव ठित हुये। गोरवं कथयितुः। बिहार राजस्थानी भाषाके काव्योंमें भापकी चित्रसेन यमावति पापका विहार प्रधानतया बीकानेर, जोधपुर, जैसल- रास (रचना सम्बत् १८१४ बीकानेर) नेमिनाथरासो, मेर राज्यमें हुमा। बीकानेर जोधपुर, पाली, सोजत, गोडीकन्द, मोशवाबरास, फलोदी स्तवन, मावस्तवन, विल्हावास, कासाकुम्ता बीदासर मादि स्थानों में पापके समुद्रबंध कविच आदि उल्लेखनीय है। जिन सुख सरि रचे प्रन्य उपलब्ध है। मजलश हिन्दीभाषामें तुकान्त गद्यकी विशिष्ट रचना जिन सुखसूरि मजलस संवत् 2008 में मापने बनवाई है। पापकी ज्ञात समस्त रचनामोंकी नामावली भागे दी जिसमें उत्' शब्दोंकी प्रधानता है। 'भक्ति सूरिसिंहप बाबा पद पाएकी पंजाबी भाषाकी रचना है। इन दोनों एक .देशमें संस्कृत पच और गरबा मण्ख रूपमें है नामोंसे पापका बिहार, पंजाब और सिंघमें होना भी सिद से यहां उसी रूपमें दिया जा रहा है। -प्रकाशक
SR No.538012
Book TitleAnekant 1954 Book 12 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1954
Total Pages452
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size27 MB
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